यूक्रेन से सुरक्षित लौटने के बाद जो सबसे बड़ा सवाल इन छात्रों के सामने खड़ा हो रहा है, वह है उनके करियर और भविष्य का. अधिकांश छात्र मेडिकल स्टूडेंट हैं. इन्हें अब पता नहीं कि आगे क्या होगा? जंग कितनी लंबी चलेगी. वे यूनिवर्सिटी नहीं लौट पाए तो उनकी पढ़ाई कैसे होगी और डिग्री कैसे मिलेगी? इतना ही नहीं, तुरंत मेडिकल छात्रों का भारत के कॉलेजों में ट्रांसफर भी मुमकिन नहीं है, जिसके चलते वतन लौटे छात्र परेशान हैं.
यूक्रेन की बुकोविनीयन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी में थर्ड ईयर की एमबीबीएस की छात्रा रिद्धि शर्मा 28 फरवरी को ही वह भारत लौटी हैं और अब परिवार के सामने सबसे बड़ी चिंता है कि उनका आगे क्या होगा? डिग्री कैसे पूरी होगी?
छात्रा के चाचा सुमित शर्मा ने कहा कि हम फंस गए हैं, वहां (यूक्रेन में) पता नहीं क्या होगा. यहां तो डॉक्टर की पढ़ाई के लिए करीब एक करोड़ खर्च होता है, वहां बीस से तीस लाख. तो बहुत बड़ा फ़ासला है. सरकार से गुज़ारिश है कि फ़ीस कम करिए और इन बच्चों को यहीं एडमिशन दिलाने की कोशिश करिए. इसका स्थाई समाधान निकालिए.
वहीं अभिभावकों की चिंता को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि वो जल्द ही यूक्रेन और रूस के मेडिकल पाठ्यक्रमों और उनकी फीस का अध्ययन करेगी. साथ ही केंद्र के साथ मिलकर इसका कोई हल निकालेगी.
इस बाबत महाराष्ट्र के चिकित्सा शिक्षा मंत्री अमित देशमुख ने कहा कि हम यूक्रेन, रूस और बाक़ी मेडिकल शिक्षण संस्थानों की फ़ीस समझ रहे हैं. हमारी सरकार इस ओर देख रही है. इसपर विस्तारित जानकारी आने के बाद आगे की जानकारी दी जाएगी. जो छात्र देश के बाहर पढ़ाई के लिए जाते हैं, इसके कारण क्या हैं और उनकी व्यवस्था अगर हम यहां उपलब्ध कर दें, इस सन्दर्भ में कुछ काम होना जरुरी है. राज्य और केंद्र को मिलकर इसपर काम करना पड़ेगा.
भारत के मुकाबले यूक्रेन में पढ़ाई कई गुना सस्ती
जानकारी के लिए बता दें कि यूक्रेन में एमबीबीएस की पढ़ाई 25 से 30 लाख में पूरी हो जाती है. वहीं भारत में इसमें अमूमन 80 लाख से एक करोड़ लग जाते हैं. भारत में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ऐडमिशन के लिए नीट में अच्छे नंबर चाहिए, जबकि यूक्रेन में बस नीट पास कर जाने से दाखिला हो सकता है. भारत में इंटर्नशिप सहित पढ़ाई 5.5 साल में पूरी हो जाती है. रूस, चीन या यूक्रेन में 6 साल लग जाते हैं. भारत में एमबीबीएस की क़रीब 85000 सीटें हैं जबकि हर साल औसतन 15 लाख छात्र ऐडमिशन चाहते हैं.
'विशेष प्रावधानों के तहत हो सकता है एडमिशन'
भारत में नेशनल मेडिकल कमीशन की गाइडलाइन के अनुसार दूसरे देशों के छात्र यहां की यूनिवर्सिटी में ट्रांसफ़र नहीं ले सकते, पर मौजूदा स्थिति में विशेषज्ञ कई सुझाव दे रहे हैं. महाराष्ट्र आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ अविनाश भोंडवे का कहना है कि सैकेंड टर्म में एडमिशन देना चाहिए. विशेष प्रावधानों के तहत ऐसा पहले भी हुआ है. यूक्रेन और भारत की पढ़ाई काफ़ी अलग है, यहां प्रैक्टिकल ज़्यादा होता है और वहां केस स्टडीज़ पर ध्यान देते हैं. दवाइयां, बीमारी, सब अलग हैं. स्पेशल सेशन यहां कराया जा सकता है.
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