नायडू और नीतीश की मांगों का तोड़ कैसे निकालेंगे मोदी, पढ़ें इनसाइड स्टोरी

नतीजों के बाद बदली परिस्थितियों में बीजेपी को अपनी सरकार में सहयोगियों की संख्या के हिसाब से मंत्री बनाने होंगे. इसका मतलब होगा कि मंत्रिपरिषद में बीजेपी के मंत्रियों की संख्या घटेगी और सहयोगियों की संख्या बढ़ेगी, लेकिन कुछ शर्तों पर बीजेपी शायद ही समझौता करे. सीसीएस के चार मंत्रालयों में सहयोगी को जगह नहीं देगी, वो हैं रक्षा, वित्त, गृह और विदेश.

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Modi 3.0: नतीजों के बाद अब देश में NDA सरकार बनने जा रही है. मोदी 3.0 और 8 जून को शपथ ग्रहण की तैयारी की जा रही है. उधर, एनडीए के सहयोगियों (Nitish Kumar) ने साफ कर दिया है कि उनका पूरा समर्थन प्रधानमंत्री की अगुवाई में बनने जा रही एनडीए सरकार के साथ है, लेकिन ट्विस्ट भी है इसमें कि अब मंत्रालयों को लेकर खींचतान शुरू हो चुकी है. कल एनडीए की बैठक के बाद ही बीजेपी के सहयोगी दलों ने मंत्रीपद के लिए अपनी डिमांड रखनी शुरू कर दी है.

मोदी 3.0 से क्या चाहते हैं नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू

बता दें कि  मोदी 3.0 में सहयोगी दलों की भूमिका महत्वपूर्ण है. TDP, JDU, शिवसेना, लोक जनशक्ति पार्टी चिराग पासवान की भूमिका महत्वपूर्ण है. इन चार पार्टियों के मिलाकर 40 सांसद हैं. टीडीपी और जेडीयू अपने लिए मनपसंद मंत्रालय चाहती हैं. हर चार सांसद पर एक मंत्री की मांग है. इस लिहाज से टीडीपी (16) चार, जेडीयू (12) 3, शिवसेना (7) और चिराग पासवान (5) को दो-दो मंत्रालयों की उम्मीद कर रहे हैं.  टीडीपी स्पीकर पद भी चाहती है, हालांकि बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं है.  ज्यादा जोर देने पर डिप्टी स्पीकर पद टीडीपी को मिल सकता है. जेडीयू के पास पहले से ही राज्यसभा में डिप्टी चेयरमैन का पद है. अभी तक मोदी के दो कार्यकाल में सहयोगी दलों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व मिला है, यानी उनकी संख्या के अनुपात में मंत्री पद देने के बजाए केवल सांकेतिक नुमाइंदगी दी गई, जबकि जेडीयू ने 2019 में संख्या के हिसाब से नुमाइंदगी की मांग की थी और ऐसा न होने पर सरकार में शामिल नहीं हुई थी.

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रक्षा, वित्त, गृह और विदेश मंत्रालय पर समझौता नहीं करेगी बीजेपी

बदली परिस्थितियों में बीजेपी को संख्या के हिसाब से ही मंत्री बनाने होंगे. इसका मतलब होगा कि मंत्रिपरिषद में बीजेपी के मंत्रियों की संख्या घटेगी और सहयोगियों की संख्या बढ़ेगी, लेकिन कुछ शर्तों पर बीजेपी शायद ही समझौता करे. सीसीएस के चार मंत्रालयों में सहयोगी को जगह नहीं देगी, वो हैं रक्षा, वित्त, गृह और विदेश.

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युवा और कृषि भी सहयोगियों को देकर सुधार की रफ्तार धीमी नहीं करना चाहती बीजेपी

 इंफ्रास्ट्रक्चर, गरीब कल्याण, युवा से जुड़े और कृषि मंत्रालयों को भी बीजेपी अपने पास ही रखना चाहेगी. यह मोदी की बताई गई चार जातियों- गरीब, महिला, युवा और किसान के लिए योजनाओं को लागू करने के लिए अहम है. रेलवे, सड़क परिवहन आदि में बड़े सुधार किए गए हैं और बीजेपी इन्हें सहयोगियों को देकर सुधार की रफ्तार धीमी नहीं करना चाहेगी.

रेलवे सहयोगियों को देने से बंटाधार हुआ, बड़ी मुश्किल से पटरी पर लौटा है

रेलवे जिस किसी भी सरकार में सहयोगियों के पास रहा, तब लोकलुभावन नीतियों के चलते उसका बंटाधार हुआ. बड़ी मुश्किल से उसे पटरी पर लाया जा रहा है. अगर मोदी एक और मोदी दो कार्यकाल देखें तो सहयोगियों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व में नागरिक उड्डयन, भारी उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, स्टील और खाद्य, जन वितरण और उपभोक्ता मामले जैसे मंत्रालय दिए गए. खाद्य, जन वितरण एवं उपभोक्ता मामले 2014 में  राम विलास पासवान के पास था, नागरिक उड्डयन टीडीपी के पास रहा, भारी उद्योग एवं पब्लिक एंटरप्राइज शिवसेना के पास रहा, खाद्य प्रसंस्करण अकाली दल और बाद में पशुपति पारस के पास रहा और स्टील जेडीयू के पास रहा.

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बीजेपी को कुछ हद तक झुकना होगा, ये मंत्रालय दे सकती है बीजेपी

वाजपेयी सरकार में उद्योग, पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक, कानून एवं विधि, स्वास्थ्य, सड़क परिवहन, वन एवं पर्यावरण, स्टील एंड माइन्स, रेलवे, वाणिज्य और यहां तक कि रक्षा मंत्रालय भी सहयोगियों के पास रहा, लेकिन अब बीजेपी को सहयोगियों के आगे कुछ हद तक झुकना होगा. पंचायती राज्य और ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालय जेडीयू को दिए जा सकते हैं. नागरिक उड्डयन, स्टील जैसे मंत्रालय टीडीपी को मिल सकते हैं. भारी उद्योग शिवसेना को मिल सकता है. महत्वपूर्ण मंत्रालयों  जैसे वित्त, रक्षा में सहयोगियों को राज्य मंत्री पद दिया जा सकता है. पर्यटन, एमएसएमई, स्किल डेवलपमेंट, साइंस टेक्नॉलॉजी एंड अर्थ साइंसेज, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता जैसे मंत्रालय सहयोगियों को देने पर बीजेपी को समस्या नहीं होनी चाहिए, हालांकि टीडीपी MEITY जैसा मंत्रालय भी मांग सकती है.

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