हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं का एक्सपर्ट्स ने क्या कारण बताया?

विशेषज्ञों के अनुसार, तलहटी में चट्टानों के कटाव और जल निकासी की उचित व्यवस्था की कमी के कारण हिमाचल में ढलानें भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो गई हैं.

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शिमला:

विशेषज्ञों का कहना है कि पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील हिमालय में अवैज्ञानिक निर्माण, घटते वन क्षेत्र और नदियों के पास पानी के प्रवाह को अवरुद्ध करने वाली संरचनाएं हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं का कारण बन रही हैं. भूगर्भ विशेषज्ञ प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह धर ने कहा कि सड़कों के निर्माण और चौड़ीकरण के लिए पहाड़ी ढलानों की व्यापक कटाई, सुरंगों और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए विस्फोट में वृद्धि भी भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं के मुख्य कारण हैं.

विशेषज्ञों के अनुसार, तलहटी में चट्टानों के कटाव और जल निकासी की उचित व्यवस्था की कमी के कारण हिमाचल में ढलानें भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो गई हैं और उच्च तीव्रता वाली वर्षा राज्य में हालात को बदतर बना रही है. वैज्ञानिक (जलवायु परिवर्तन) सुरेश अत्रे ने पहले कहा था कि बारिश की तीव्रता बढ़ गई है और भारी बारिश के साथ उच्च तापमान के कारण तलहटी में नीचे की ओर कटान वाले स्थानों पर परत कमजोर होने के कारण भूस्खलन हो रहे हैं.

मौसम विभाग के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में इस साल अब तक राज्य में 742 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है. राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र के अनुसार, हिमाचल में मानसून की शुरुआत के बाद से 55 दिनों में भूस्खलन की 113 घटनाएं घटी हैं. अधिकारियों ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया कि इन घटनाओं से लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को 2,491 करोड़ रुपये और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को लगभग 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.

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आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा एकत्र आंकड़ों के अनुसार, 2022 में बड़े भूस्खलन की घटनाओं में छह गुना चिंताजनक वृद्धि देखी गई. 2020 में 16 की तुलना में 2022 में 117 बड़े भूस्खलन की घटनाएं हुईं. आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 17,120 भूस्खलन के जोखिम वाले स्थल हैं, जिनमें से 675 महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और बस्तियों के करीब हैं. एक पूर्व नौकरशाह ने कहा कि बढ़ती मानवीय गतिविधि और विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बड़ा खतरा है, जो गंभीर रूप ले रहा है.

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हिमाचल प्रदेश में एनएचएआई के क्षेत्रीय अधिकारी अब्दुल बासित ने कहा कि बारिश से पहाड़ जलमग्न हो गए हैं और बादल फटने तथा भूस्खलन से सड़कों को व्यापक नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा कि सबसे अधिक प्रभावित हिस्सों में शिमला-कालका, शिमला-मटौर, मनाली-चंडीगढ़ और मंडी-पठानकोट मार्ग शामिल हैं. उन्होंने कहा कि जहां चट्टानों को नहीं काटा गया वहां भी भूस्खलन और सड़क धंसने की घटनाएं देखी गई हैं.

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बासित ने कहा कि निर्बाध कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए सुरंग ही एकमात्र समाधान है. हिमाचल प्रदेश के लिए 68 सुरंगें प्रस्तावित की गई हैं, जिनमें से 11 का निर्माण किया जा चुका है जबकि 27 निर्माणाधीन हैं और 30 विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के चरण में हैं.

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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