मध्य प्रदेश में फसल बीमा के 'सिंगल क्लिक' वाले दावों की क्या है हकीकत? क्यों बैंकों के चक्कर काट रहे किसान?

किसानों को कर्ज देने वाली सहकारी बैंक और सोसाइटी भी परेशान है. उनका कहना है कि उनके पास अभी तक फसल बीमा की राशि के पात्र किसानों की सूची ही नहीं पहुंची है. ये स्थिति मध्य प्रदेश के कई जिलों की है.

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किसानों को कर्ज देने वाली सहकारी बैंक और सोसाइटी भी परेशान है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
भोपाल:

सरकार आजकल सिंगल क्लिक यानी बटन दबाते ही हितग्राहियों के खाते में पैसे ट्रांसफर की खूब चर्चा करती है. मध्य प्रदेश में ऐसी ही एक चर्चा सुर्खियां बनीं जब फरवरी में सरकार ने दावा किया कि 49 लाख किसानों के खाते में 7600 करोड़ रुपए फसल बीमा के ट्रांसफर हो गये. खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैतूल में बटन दबाया, लेकिन महीने भर बाद भी लाखों किसानों के खाते में एक पैसा भी नहीं आया, ये आरोप किसानों का है.

12 फरवरी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैतूल में बटन दबाकर ऐलान किया था कि 49 लाख 85000 से अधिक किसानों के खाते में 7,618 करोड़ रुपये से अधिक फसल बीमा राशि पहुंच गई है. इस योजना से प्रति किसान 15,282 रुपये का लाभ मिलेगा. मुख्यमंत्री ने बैतूल में कहा था कि करोड़ों की राशि भेज दी गई. लेकिन उसी बैतूल में कुछ दिनों पहले किसानों ने फसल बीमा की रकम को लेकर प्रदर्शन किया था. किसानों ने 25 किलोमीटर पैदल चलकर एक घंटे तक चक्का जाम किया था.

जब NDTV ने कुछ किसानों से बात की, तो उनमें से पप्पू पानसे नाम के किसान ने कहा कि, "अधिकारियों ने बोला कि बीमा कटवाओ तो आगे मुआवजा मिल जाएगा. मक्का कहीं डूब ना जाए, तो हमने बीमा कटवा दिया. लेकिन हमें बीमा का कोई रकम नहीं मिला है." वहीं, एक और किसान अकरम पटेल का कहना है कि, "यहां 11 पंचायत ऐसी है जिन्हें निरंक बता दिया गया है. हमें एक पैसा भी नहीं मिला है." एक अन्य किसान रामू बारसकर ने कहा कि, "2014 से बीमा राशि भरते आ रहे हैं. लेकिन अभी तक बीमा का फायदा नहीं मिला है. बीमा का लाभ तीन पंचायत के लोगों को नहीं मिला है."

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वहीं, धार जिले के गरड़ावद के रामसिंह कहते हैं कि, "उन्हें सिर्फ डमी चेक मिला है. लेकिन अब तक पैसे नहीं मिले हैं." इसके अलावा, सादलपुर के तूफान सिंह का भी दावा है कि उन्हें सिर्फ डमी चेक मिला है. लेकिन पैसे नहीं मिले हैं.

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राजधानी भोपाल से करीब 200 किलोमीटर दूर आगर मालवा जिले के भदवासा गांव के लाल सिंह और चिकली गोयल गांव के शिवलाल अपनी पारिवारिक जमीन पर पुश्तैनी खेती करते हैं. दोनों ही किसानों ने बीमा की राशि का प्रीमियम भी जमा किया. मुख्यमंत्री के ऐलान के बाद उम्मीद थी कि दम तोड़ती खेती को कुछ सहारा मिलेगा, लेकिन किसानों की आस टूट गई.

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किसानों को कर्ज देने वाली सहकारी बैंक और सोसाइटी भी परेशान है. उनका कहना है कि उनके पास अभी तक फसल बीमा की राशि के पात्र किसानों की सूची ही नहीं पहुंची है. ये स्थिति मध्य प्रदेश के कई जिलों की है. यही हाल भोपाल से सटे होशंगाबाद, जो कि अब नर्मदापुरम हो गया है. यहां दावा किया गया था कि करीब डेढ़ लाख किसानों के खाते में 273 करोड़ की राशि डाली गई है. लेकिन पिपरिया तहसील के कुम्भावड के किसानों का कुछ और ही कहना है.

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यहां के किसान मेहरबान सिंह ने NDTV को बताया कि, "मैंने सोयाबीन लगाया था जो मौसम की वजह से खराब हो गया, पर फसल बीमा की राशि उन्हें आज तक नहीं मिली. जब मैं बैंक गया तो बैंक कर्मियों ने भी इसको लेकर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया." इसी तरह, कोमल सिंह का कहना है कि, "मौसम की मार के चलते फसल खराब हो गई है. फसल का बीमा भी कराया था, लेकिन आज तक पैसे नहीं मिले. जब मैंने बैंक में पता किया तो कोई कुछ बताने को तैयार नहीं है." एक और किसान छोटेबीर रघुवंशी ने कहा कि, "नेताओं और सत्तादल से जुड़े लोगों को लाखों का बीमा मुआवजा मिलता है और गरीब किसान बस बैंक के चक्कर काटते रह जाते हैं."

उल्लेखनीय है कि भिंड जिले में 1485 किसानों के खाते में फसल बीमा के 1.17 करोड़ रुपये सिंगल क्लिक के जरिये देने की बात कही गई थी. लेकिन हकीकत में किसान दावा राशि के लिये भटक रहे हैं. इसको लेकर अफसरों के पास भी सूची नहीं पहुंची है, जिससे कुछ पता लग सके कि दावा स्वीकृत हुआ या खारिज.

सरकार की अपनी दलील है, विपक्ष के अपने सवाल

कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा कि, "आज 48 लाख से अधिक किसानों के खाते में 7500 से अधिक राशि जा चुकी है. जिनके खाते में नहीं गई है वो 1.15000 हैं, वो भी खाता गलत होने के कारण ऐसा हुआ है. हालांकि उनके लिए निर्देश दिए जा चुके हैं."

कृषि मंत्री कमल पटेल के बयान पर कांग्रेस नेता जीतू पटवारी का कहना है कि, "शिवराज सरकार ने 1 क्लिक में बीमे के मुआवजे की बात कही है. आज तक वो पैसा नहीं पहुंचा है. 17000 करोड़ रुपये देनदारी है. इस बीच किसान डिमांड कर रहे हैं. कुल मिलाकर शिवराज सरकार में झूठ की पराकाष्ठा है."

खैर आरोप-प्रत्यारोप के बीच कहीं किसानों को पैसे मिले ही नहीं, तो कहीं पुराने कर्ज में एडजस्ट कर लिया गया. राज्य में 4 अलग-अलग कंपनियों ने किसानों का बीमा किया
लेकिन कहीं कंपनी ने सूची कृषि विभाग और बैंक को नहीं भेजी, तो कहीं आधार लिंक में गड़बड़ी तो कहीं संयुक्त खाते को कारण बता दिया गया.

सरकारी कर्मचारी हों या हितग्राही पहले भी सरकार घर-घर जाकर चेक या नकदी नहीं देती थी. पैसे सिंगल क्लिक से ही मिलते थे लेकिन नये निजाम में ये भी उत्सव है. सिंगल क्लिक सुर्खी. हालांकि इसके पीछे हकीकत यही है कि हर जिले में फसल बीमा के भुगतान की अलग-अलग कहानी है. बस एक तस्वीर एक जैसी कि किसान भटक रहे हैं और नाराज हैं.

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