वाराणसी के ज्ञानवापी शृंगार गौरी परिसर को लेकर उठा विवाद और पूजा स्थल कानून...

राम मंदिर पर बढ़ रहे विवाद को देखते हुए 1991 में पूजा स्थल कानून बनाया गया था. अब इस कानून को लेकर भी नई चर्चा ने जन्म ले लिया है.

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कोर्ट ने कहा है, याचिकाकर्ताओं की मांग के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी की जा सकती है
नई दिल्‍ली:

साल 2019 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ ही अयोध्या का राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद थम गया, लेकिन इन दिनों देशभर के कई धर्मस्थलों को लेकर फिर नए विवाद ने जन्म ले लिया है. काशी के ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर शृंगार गौरी मंदिर से लेकर ताजमहल और कुतुब मीनार तक में हिंदू देवी;देवताओं की मूर्तियों के होने के दावे के साथ इसे लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. साल 1990 में राम मंदिर पर बढ़ रहे विवाद को देखते हुए 1991 में पूजा स्थल कानून बनाया गया था. अब इस कानून को लेकर भी नई चर्चा ने जन्म ले लिया है. एक समूह मौजूदा समय में चल रहे कानूनी मामलों को इस कानून का उल्लंघन बता रहा है. आइए जानते हैं कि 1991 का पूजा स्थल अधिनियम क्या है और ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी परिसर और बाबरी मस्जिद से इसका कनेक्शन क्या है.

क्या है पूजा स्थल अधिनियम 1991
1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पूजा स्थल अधिनियम लेकर आई थी.  पूजा स्थल कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आ चुके किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी भी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. अगर कोई भी ऐसा करने का प्रयास करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना देना होगा. चूंकि अयोध्या का मामला उस समय कोर्ट में था इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था. राम मंदिर आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के चलते उस समय अयोध्या के साथ ही कई और मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगे थे. इन विवादों पर लगाम लगाने के लिए ही नरसिम्हा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी.

बाबरी मस्जिद और ज्ञानवापी शृंगार गौरी परिसर से संबंध

इस विवाद की जड़ें 1990 के दशक से जुड़ी हुई हैं. दरअसल, ये वो दौर था जब अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन चरम पर था, उसी दौरान बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की भी शुरुआत हो गई थी. साल 1992 में अयोध्या में बाबरी विध्वंस की घटना हुई तो इसके बाद देशभर में सामाजिक सौहार्द बिगड़ने लगा था. माहौल को गंभीरता को देखते हुए वाराणसी पुलिस-प्रशासन भी अलर्ट मोड में आ गया था.  काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद चूंकि बिल्कुल सटे हुए हैं इनके आसपास सुरक्षा कड़ी की जाने लगी.

सर्वे का आदेश
साल 1993 में सुरक्षाकर्मी पूजा-अर्चना करने पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के साथ टोका-टाकी करने लगे थे. इसके बाद 1996-97 में जब हिंदू और मुस्लिम, दोनों धर्मों के त्योहार एक ही दिन पड़ गए थे. पुलिस प्रशासन ने एहतियातन केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की एक टुकड़ी की तैनाती वहां कर दी जिससे कानून-व्यवस्था बनाए रखी जा सके. हालांकि अधिकारियों के तबादले हुए और रिजर्व पुलिस के तौर पर की गई सीआरपीएफ की तैनाती वहां स्थायी हो गई.  गुजरते समय के साथ श्रृंगार गौरी जाने वाले रास्ते को भी पुलिस-प्रशासन ने बंद कर दिया. हाल ही में पांच हिंदू महिलाओं द्वारा किए केस की सुनवाई करते हुए निचली अदालत ने मस्जिद में सर्वे की कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया.

कानून के उल्लंघन का आरोप
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने का ये ऑर्डर 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का खुला उल्लंघन है, जो धार्मिक स्थलों में बदलाव को रोक लगाता है. मामले में AIMIM के चीफ और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अयोध्या फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि अधिनियम भारतीय राजनीति की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा करता है जो संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है. ऐसे में यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना हो रही है. वहीं केस करने वाली महिलाओं का कहना कि 90 के दशक तक ज्ञानवापी परिसर में मां गौरी की पूजा होती रही है, ऐसे में एक बार फिर उन्हें पूजा का अधिकार मिलना चाहिए.

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