Explainer : बांग्लादेश, पाक और चीन की बढ़ती नजदीकी से भारत को क्या नुकसान; यहां विस्तार समझें

बांग्लादेश और पाकिस्तान के क़रीब आने से भारत की सामरिक और रणनीतिक चिंताएं इसलिए भी बढ़ रही हैं कि चीन के साथ मिलकर ये तीनों देश जो त्रिकोण बनाएंगे वो भारत को घेरने की कोई कोशिश नहीं छोड़ेगा. चीन पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों के ही साथ अपने रक्षा संबंध और मज़बूत कर रहा है. ची

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नई दिल्ली:

5 अगस्त, 2024 का दिन पड़ोसी देश बांग्लादेश ही नहीं भारत के लिए भी काफ़ी अहम और चिंता भरा दिन रहा. उसी दिन बांग्लादेश में शेख हसीना का तख्ता पलटा, वो भागकर भारत आईं जहां उन्हें शरण मिली. उसी दिन भारत ने बीते 53 साल से अपने क़रीबी मित्र रहे बांग्लादेश को गंवाना शुरू कर दिया. बांग्लादेश जिस राह पर निकल पड़ा है वो भारत के लिए एक पड़ोसी देश के तौर पर राजनीतिक और सामरिक चिंता की वजह बन गया है. काहिरा में हाल में आठ मुस्लिम बहुल देशों के संगठन D-8 की बैठक हुई. इस बैठक के दौरान बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की दोस्ताना मुलाक़ात की तस्वीर काफ़ी चर्चा में है. मुलाक़ात में मोहम्मद यूनुस ने शहबाज़ शरीफ़ से कहा कि पुराने गिले शिकवे भुला दिए जाएं और 1971 के मुद्दों को दरकिनार कर नए रिश्ते बनाए जाएं. उन्होंने दोनों देशों के रिश्तों की बेहतरी पर ज़ोर दिया. मोहम्मद यूनुस जानते हैं कि ये वही पाकिस्तान है जिससे आज़ाद होने के लिए 1971 में उन्होंने अमेरिका में एक नागरिक कमेटी बनाई थी और बांग्लादेश इन्फॉर्मेशन सेंटर चलाया था. ये भी वो भूले नहीं होंगे कि जिस पाकिस्तान के साथ वो दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं, उसके ही ज़ुल्मो सितम से तंग आकर बांग्लादेश में मुक्ति का लंबा संग्राम चला और 1971 को पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बन गया. लेकिन अब वो पाकिस्तान और बांग्लादेश के रिश्तों को रिसेट करना चाहते हैं. एक नई शुरुआत करने की बात कर रहे हैं.

बांग्लादेश और पाकिस्तान में क्यों बढ़ रही नजदीकियां

बांग्लादेश की आज़ादी में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले भारत को भुला कर वो क्यों पाकिस्तान की राह पर चल पड़े हैं. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पाकिस्तान को एक के बाद एक रियायत दे रही है. पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीज़ा आसान कर दिया गया है जैसा शेख हसीना के दौर में नहीं था. बांग्लादेश में पाकिस्तान का हाई कमीशन काफ़ी सक्रिय है. सवाल ये है कि भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देता रहा पाकिस्तान बांग्लादेश को क्या देने जा रहा है. क्या पाकिस्तान से क़रीबी बांग्लादेश को भी कट्टरपंथ की ओर तेज़ी से नहीं धकेल देगी. वैसे भी जब अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश की कमान संभाली और उनकी ही नाक के नीचे लंबे अर्से तक अल्पसंख्यकों ख़ासतौर पर हिंदुओं के ख़िलाफ़ हिंसा का दौर शुरू हो गया. ऐसी हिंसा का विरोध कर रहे पुजारी चिन्मॉय कृष्ण दास समेत कई लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया. भारत ने इन तमाम घटनाओं पर सख़्त प्रतिक्रिया जताई. मोहम्मद यूनुस को याद दिलाया कि अल्पसंख्यकों के प्रति उनकी ज़िम्मेदारियां क्या हैं.

बांग्लादेश में कट्टरपंथियों को खुली छूट

मोहम्मद यूनुस एक तरफ़ अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के मुद्दे पर ज़ुबानी जमाखर्च करते रहे और उधर अपने देश में कट्टरपंथियों को खुली छूट दे दी. बंग बंधु शेख मुजीबुर्रहमान की विचारधारा पर यकीन रखने वाले लोग बांग्लादेश में हाशिए पर हैं, कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं. बांग्लादेश में जो माहौल बदला उसका असर वहां के तमाम संस्थानों पर दिख रहा है. बांग्लादेश के सेंट्रल बैंक ने वहां कि मुद्रा पर मुजीबुर्रहमान की तस्वीरों को हटाने का फ़ैसला किया है. वहां की अदालत ने कहा है कि जॉय बांग्ला अब वहां का राष्ट्रीय नारा नहीं रहेगा. ये नारा बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन के दौरान बना था और अब जो बांग्लादेश में हो रहा है उससे ये साफ़ लग रहा है कि मुक्ति के उस दौर की विरासत, तमाम चिन्हों, संकेतों को मिटाने की कोशिश तेज़ हो गई है.

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बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ बढ़ रही हिंसा

विचारधारा में उदारता से मुंह मोड़ लिया गया है. विदेश मंत्रालय ने संसद में जानकारी दी कि बांग्लादेश में हिंदुओं समेत अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ घटनाओं में 628 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. यानी छह गुना से ज़्यादा बढ़ोतरी हुई है. साल 2024 में 8 दिसंबर तक 2200 घटनाएं हिंदू और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुई हैं. जबकि साल 2023 में 302 घटनाएं सामने आई थी. विदेश मंत्रालय के मुताबिक बांग्लादेश ही नहीं पाकिस्तान में भी हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा बढ़ी है. साल 2024 में वहां ऐसी 112 घटनाएं हुईं जबकि साल 2023 में 103 घटनाएं हुई थीं. अल्पसंख्यकों ख़ासकर हिंदुओं के प्रति संवेदनहीन रवैया रखने वाले इन दोनों देशों का क़रीब आना क्या बताता है. क्या भारत को अब एक और मोर्चे पर लगातार सतर्क रहना होगा. ख़ासकर आतंकियों की गतिविधियों को लेकर.

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी पर लगी पाबंदी हटा दी है. मोहम्मद यूनुस को अब जमात-ए-इस्लामी की कठपुतली के तौर पर देखा जाने लगा है. तख़्ता पलट के फौरन बाद ही बांग्लादेश की जेलों से कई कट्टरपंथी आतंकी रिहा कर दिए गए. ऐसे कम से कम 70 खूंखार आतंकवादी हैं जो अब आज़ाद घूम रहे हैं और इस्लामी कट्टरपंथ को तेज़ करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. आतंकी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला और हिज़्बुत ताहिर पर कई देशों में पाबंदी है. शेख हसीना के दौर में इन संगठनों से जुड़े आतंकियों को जेलों में डाल दिया गया था लेकिन अब वो आज़ाद है. सूफ़ी इस्लाम पर चलने वाला बांग्लादेश अब वहाबी इस्लाम की ओर चल पड़ा है. हिज़्बुत ताहिर के समर्थक मानते हैं कि बांग्लादेश जल्दी ही कट्टरपंथ इस्लाम को अपना लेगा. बांग्लादेश में ऐसे कट्टरपंथी संगठनों को नई ताक़त मिल गई है.

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मोहम्मद यूनुस क्या कठपुतली बन कर रह जाएंगे?

भारत के लिए एक और मोर्चे पर इस्लामी कट्टरपंथी ताक़तों से निपटने की चुनौती ही नहीं है. सामरिक, रणनीतिक चुनौती भी बढ़ गई है. बांग्लादेश और पाकिस्तान के क़रीब आने से भारत की सामरिक और रणनीतिक चिंताएं इसलिए भी बढ़ रही हैं कि चीन के साथ मिलकर ये तीनों देश जो त्रिकोण बनाएंगे वो भारत को घेरने की कोई कोशिश नहीं छोड़ेगा. चीन पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों के ही साथ अपने रक्षा संबंध और मज़बूत कर रहा है. चीन पाकिस्तान के बाद दूसरे स्थान पर सबसे ज़्यादा हथियारों की सप्लाई बांग्लादेश को करता रहा है. चीन ने बांग्लादेश को लड़ाकू विमान, ट्रेनर एयरक्राफ्ट, टैंक, समुद्री जहाज़ और मिसाइल तक बांग्लादेश को सप्लाई किए हैं और अब वो बांग्लादेश एयरफोर्स को आधुनिक बनाने में भी भूमिका निभा सकता है.

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बांग्लादेश के एयरचीफ मार्शल के चीन दौरे की क्यों चर्चा

बांग्लादेश के एयरचीफ़ मार्शल ने हाल ही में चीन का दौरा किया ताकि मल्टीरोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट और अटैक हेलीकॉप्टर्स की ख़रीद से अपनी वायुसेना को आधुनिक बना सकें. रिपोर्ट्स के मुताबिक बांग्लादेश चीन से 16 J-10CE लड़ाकू विमान ख़रीदने पर विचार कर रहा है जो चीन के अपने J-10C विमान का एक्सपोर्ट वेरिएंट है. 4.5 जनरेशन का लड़ाकू विमान भारत के लिए भी एक चुनौती बन सकता है. इसकी तुलना अमेरिका के F16 लड़ाकू विमान से की जाती है. उधर पाकिस्तान ने भी एलान किया है कि वो जनवरी में चीन के FC-31 स्टेल्थ फाइटर जेट्स को ख़रीदने जा रहा है. ये फिफ्थ जनरेशन का फाइटर है जो स्टेल्थ तकनीक समेत कई खूबियों से भरा है और अमेरिका के F35 से उसकी तुलना की जाती है.

पाकिस्तान के पास पहले से ही चीन से ख़रीदे गए J-10C, JF-17 and HQ-series missile systems मौजूद हैं. साफ़ है एक त्रिकोणीय चुनौती भारत के इर्द गिर्द बुनी जा रही है. जो बांग्लादेश अभी तक भू सामरिक रणनीति में भारत और चीन के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता था, उसने अब वो कोशिश छोड़ दी है. बांग्लादेश मामलों के जानकर और जेएनयू  प्रो. संजय भारद्वाज ने कहा कि जो भी देश भारत विरोधी होगा, चीन उसके साथ जाएगा. दक्षिण एशिया में ये बदलता शक्ति संतुलन अमेरिका के लिए भी चिंता की वजह है जो पहले ही एशिया प्रशांत क्षेत्र के पूर्व में ताइवान के आसपास चीन के वर्चस्व को चुनौती देने में जुटा है. अब बांग्लादेश में चीन, पाकिस्तान के बढ़ते दखल से बदलती भूसामरिक परिस्थितियां अमेरिका और भारत के लिए नई चुनौती बन गई हैं. 

क्या बांग्लादेश के लिए पाकिस्तान ज्यादा अहम

कट्टरपंथी ताक़तों के हाथ में खेल रहा पड़ोसी देश बांग्लादेश अब अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में पाकिस्तान के साथ रिश्तों को नए सिरे से तय करने की कोशिश कर रहा है. वो रिश्ते जो 1971 में पाकिस्तान के कब्ज़े से पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश की आज़ादी के साथ लगभग ख़त्म हो चुके थे. लेकिन क्या पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश अपने इन रिश्तों को भारत की कीमत पर बनाने जा रहा है. अगर ऐसा है तो बांग्लादेश 1971 और उससे पहले पाकिस्तान के तत्कालीन हुक्मरानों और सेना के हाथों लाखों अपने लोगों के क़त्ले आम और भेदभाव को भूल रहा है तब पाकिस्तान भारत के पूर्वी और पश्चिमी दो छोर पर स्थित था. जनसंख्या में कम होने के बावजूद सत्ता पर लगातार पश्चिमी पाकिस्तान के सैनिक तानाशाहों का कब्ज़ा था. जो बंगाली मुसलमानों को हेय दृष्टि से देखते थे. उनकी भाषा, परंपरा, नस्ल सबको अपने से कमतर समझते थे. उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान के साथ हर लिहाज से अन्याय किया. उर्दू को राष्ट्रीय भाषा बनाने की कोशिश की. जबकि पूर्वी पाकिस्तान की 10% से भी कम आबादी उर्दू बोलती थी. भेदभाव का आलम ये था कि नवंबर 1970 में आए भयानक चक्रवाती तूफ़ान में पूर्वी पाकिस्तान में क़रीब तीन लाख लोग मारे गए. पश्चिमी पाकिस्तान ने कारोबार में भी भेदभाव किया.

1947 से 1970 तक पूर्वी पाकिस्तान को कुल औद्योगिक निवेश का महज़ 25% दिया. आयात में भी सिर्फ़ 30% हिस्सा दिया गया. जबकि तब पूरे पाकिस्तान के निर्यात में पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा 59 फीसदी होता था. चुनावों में भी पूर्वी पाकिस्तान का हक़ मार दिया गया. 1970 में हुए पहले आम चुनावों में पश्चिमी पाकिस्तान के पास 138 सीटें थी और ज़्यादा जनसंख्या वाले पूर्वी पाकिस्तान के पास 162 सीटें. पश्चिमी पाकिस्तान की सीटें कई पार्टियों में बंटी. जबकि पूर्वी पाकिस्तान में बहुमत शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग को मिला. मुजीबुर्रहमान हमेशा बंगाली स्वायत्तता के हिमायती थे. नतीजों से हैरान पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह जनरल याहया ख़ान ने मार्शल लॉ लगा दिया. पूर्वी पाकिस्तान में हड़ताल और दंगे होने लगे. 7 मार्च, 1971 को मुजीबुर्रहमान ने नागरिक अवज्ञा आंदोलन का एलान किया. लेकिन 25 मार्च की रात को उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और साठ से अस्सी हज़ार पाकिस्तानी सैनिक जो कई महीनों से पूर्वी पाकिस्तान में आ रहे थे.

बांग्लादेश की आज़ादी में भारत की अहम भूमिका

उन्होंने आम बंगाली नागरिकों का कत्लेआम शुरू कर दिया. इसे ऑपरेशन सर्चलाइट के नाम से जाना जाता है. कितने लोग मारे गए इसके अलग अलग अनुमान लगाए जाते हैं. पांच लाख से लेकर 30 लाख तक. मई 1971 में क़रीब 15 लाख शरणार्थियों ने भारत में शरण मांगी जो नवंबर तक बढ़कर एक करोड़ तक पहुंच गए. भारत के लिए भी ये बड़ी चिंता की बात थी. वहां की लाखों महिलाओं को बलात्कार का शिकार बनाया गया. पाकिस्तान के ज़ुल्मो सितम से लड़ने और आज़ादी के लिए शेख मुजीबुर्रहमान के आह्वान में बनी मुक्तिवाहिनी ने हथियारबंद विद्रोह तेज़ किया. इसी बीच 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने भारत के ख़िलाफ़ युद्ध का एलान कर दिया लेकिन भारत के क़रारे जवाब से पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी. 16 दिसंबर तक पाकिस्तान के 93 हज़ार सैनिकों के आत्मसर्मपण के साथ बांग्लादेश पर पाकिस्तान के ज़ुल्म की कहानी का अंत हुआ. पाकिस्तान युद्ध हार गया, भारत के 3900 सैनिक जवानों ने भी बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई में शहादत दी. अब सवाल ये है कि क्या बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस भारत की क़ीमत पर पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारेंगे या फिर किसी तरह का संतुलन रखेंगे ये आने वाले दिनों में साफ़ होगा... 
 

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