सुप्रीम कोर्ट ने आधार सहित विभिन्न विधेयकों को मोदी सरकार द्वारा धन विधेयक (मनी बिल) के रूप में पारित कराने की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए एक संविधान पीठ के गठन पर अपनी सहमति जताई है. अब इस मामले को लेकर जल्द ही कोर्ट में सुनवाई हो सकती है. वरिष्ठ वकील एवं सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रमुख कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ से आग्रह किया था कि दलीलें पूरी हो चुकी हैं और याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने की जरूरत है. इसपर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जब मैं संविधान पीठ का गठन करूंगा, तब ही इस पर फैसला सुनाएंगे.
इसके पीछे का तर्क ये दिया जा रहा है कि राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार अल्पमत में थी. राज्यसभा में बहुमत का आंकड़ा 123 है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 86 और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के 101 सदस्य हैं. आपको बता दें कि राज्यसभा में NDA को बहुमत नहीं होने के कारण स्पष्टतया उसे दरकिनार करने के लिए आधार विधेयक और धनशोधन निरोधक संशोधन विधेयक जैसे विधेयकों को धन विधेयक के रूप में पारित कराना प्रमुख राजनीतिक एवं कानूनी विवाद रहा है. ऐसे में ये जानना बेहद जरूरी है कि आखिर ये धन विधेयक यानी मनी बिल है क्या ? और इसे राज्यसभा में अल्पमत वाली सरकार का ब्रह्मास्त्र क्यों कहा जाता है ?
क्या होता है मनी बिल ?
संविधान के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक की परिभाषा दी गई है. धन विधेयक में खास अधिनियम शामिल होते हैं, जिनमें टैक्स खत्म करने, उधार लेने, संचित निधि से धन की निकासी, लेखा परीक्षा और लेखा से संबंधित अधिनिय शामिल होते हैं. आपको बता दें कि धन विधेयक को सिर्फ मंत्री पेश कर सकता है. ऐसे विधेयकों पर राज्य सभा में तो चर्चा हो सकती है लेकिन उस पर कोई वोटिंग नहीं सकती. कोई बिल मनी बिल है या नहीं है, इसका फैसला हमेशा से ही स्पीकर करते हैं. इसे लेकर स्पीकर का ही निर्णय हमेशा से अंतिम होता है.
इसकी चर्चा अनुच्छेद 110 (3) में की गई है. मनी बिल पर राज्यसभा सिर्फ सलाद दे स कती है. वहीं, लोकसभा उनकी सलाहों को मानने और ना मानने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होता है. इस पर अंतिम फैसला हमेशा से ही लोकसभा ही लेती है. धन से जुड़े हुए प्रस्तावों के अंतरर्गत राजस्व और खर्च के अलावा और भी प्रस्ताव उसमें शामिल हैं तो फाइनेंशियल बिल होगा. इसे साधारण बिल की तरफ पेश किया जाता है. अगर 14 दिनों में राज्यसभा मनी बिल को लोकसभा वापस नहीं भेजती है तो उसे पारित मान लिया जाता है.
अगर कोई मौजूदा सरकार राज्यसभा में अल्पमत में हो तो उसके लिए मनी बिल एक ब्रह्मास्त्र साबित हो सकता है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस बिल के तहत हमेशा से अंतिम फैसला लोकसभा में ही लिया जाता है. ऐसे में अगर लोकसभा में मौजूदा सरकार बहुमत में है तो राज्यसभा में उसके दल या गठबंधन के नेताओं ने जो स्टैंड लिया था. उसी के आधार पर लोकसभा में मौजूदा सरकार बिल को लेकर अपना फैसला लेती है. ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि इस बिल को लेकर राज्यसभा में जो भी सलाह दी जाती है उसे मानने या मानने के लिए लोकसभा पूरी तरह से स्वतंत्र है. इस बिल को लेकर अंतिम फैसला लोकसभा में ही होता है.
क्या होती है सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ?
संविधान पीठ की अगर बात करें तो ये सुप्रीम कोर्ट यानी सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ होती है जिसमें पांच या उससे अधिक न्यायाधीश शामिल होते हैं. इस पीठ का गठन नियमित तौर पर नहीं किया जाता है. किसी विशेष मामले में ही इस पीठ का गठन किया जाता है. आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में अधिकतर मामलों की सुनवाई के लिए आम तौर पर दो या फिर तीन न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया जाता है. संविधान पीठ के गठन के लिए अनुच्छेद 145 (3) में विशेष प्रावधान का जिक्र किया गया है. इसके तहत किसी मामले की सुनवाई के उद्देश्य से कानून के एक महत्वपूर्ण प्रश्न से जुड़े किसी भी मामले के निर्णयन के उद्देश्य से शामिल होने वाले न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पांच होगी.
2018 में आधार ऐक्ट पर सरकार के पक्ष में फैसला दे चुका है सुप्रीम कोर्ट
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट 2018 में आधार ऐक्ट पर अहम फैसला सुनाया था. उस दौरान कोर्ट ने कहा था कि आधार के पीछे की सोच तार्किक है. आपको बता दें कि प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 38 दिनों तक चली लंबी सुनवाई के बाद 10 मई को मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. मामले में उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के एस पुत्तास्वामी की याचिका सहित कुल 31 याचिकाएं दायर की गयी थीं. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आधार से समाज के बिना पढ़े-लिखे लोगों को पहचान मिली है और आधार का डुप्लीकेट बनाना संभव नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूनिक का मतलब सिर्फ एक से है.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह माना था कि आधार आम आदमी की पहचान है और कहा कि आधार की वजह से निजता हनन के सबूत नहीं मिले हैं. सुप्रीम कोर्ट ने आधार की अनिवार्यता पर फैसला सुनाते हुए आधार की संवैधानिकता कुछ बदलावों के साथ बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा था कि आधार के बायोमीट्रिक डेटा की नकल नहीं की जा सकती. साथ ही कोई प्राइवेट पार्टी भी डेटा नहीं देख सकती है. कोर्ट ने था कहा कि आधार का ऑथेंटिकेशन डाटा सिर्फ 6 महीने तक ही रखा जा सकता है. कोर्ट ने कहा था कि यूजीसी, सीबीएसई और निफ्ट जैसी संस्थाएं आधार नहीं मांग सकती हैं. साथ ही स्कूल भी आधार नहीं मांग सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अवैध प्रवासियों को आधार न दिया जाए.