Explained: क्या है परिसीमन और जम्मू-कश्मीर के लिए इसके क्या हैं मायने

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बैठक के बाद जम्मू-कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के केंद्र के कदमों का विरोध करते हुए कहा कि इसकी आवश्यकता नहीं है.

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हमारी प्राथमिकता जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना : प्रधानमंत्री
नई दिल्ली:

जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) का विशेष राज्य का दर्जा वापस लिए जाने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) की जम्मू और कश्मीर के 14 शीर्ष नेताओं के साथ गुरुवार को हुई पहली बैठक में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन (Delimitation) या पुनर्निर्धारण पर जोर दिया गया. पीएम मोदी ने नेताओं से परिसीमन प्रक्रिया या लोकसभा तथा विधानसभा सीट की सीमाओं के पुनर्निर्धारण में भाग लेने का आग्रह किया. 

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘हमारी प्राथमिकता जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना है. परिसीमन तेज गति से होना है ताकि वहां चुनाव हो सकें और जम्मू-कश्मीर को एक निर्वाचित सरकार मिले. जो जम्मू-कश्मीर के विकास को मजबूती दे.''

हालांकि, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बैठक के बाद जम्मू-कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के केंद्र के कदमों का विरोध करते हुए कहा कि इसकी आवश्यकता नहीं है. उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि जम्मू-कश्मीर को परिसीमन के लिए क्यों चुना गया है? हमने कहा कि परिसीमन की आवश्यकता नहीं थी. अन्य राज्यों में, 2026 में परिसीमन किया जाएगा तो जम्मू और कश्मीर को क्यों चुना गया है? अब्दुल्ला के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में अधिकांश दल परिसीमन के खिलाफ हैं.

क्या है परिसीमन?  
आबादी का सही प्रतिनिधित्व करने के लिए लोकसभा अथवा विधानसभा की सीटों के क्षेत्र को दोबारा से परिभाषित किया जाता है, जिसे परिसीमन कहते हैं. परिसीमन आयोग एक स्वतंत्र निकाय है और कार्यपालिका तथा राजनीतिक पार्टियां इसके कामकाज में हस्ताक्षेप नहीं कर सकती हैं. 

आयोग का नेतृत्व सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश करते हैं और इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त और राज्य चुनाव आयुक्त शामिल होते हैं. जम्मू-कश्मीर के पांच सांसद सहयोगी सदस्य हैं, लेकिन उनकी सिफारिशें मानने के लिए आयोग  बाध्यकारी नहीं है. 

फारूक अब्दुल्ला समेत नेशनल कॉन्फ्रेंस के तीन सांसदों ने परिसीमन आयोग की बैठकों का बहिष्कार किया था. उन्होंने संकेत दिया है कि यदि आयोग के अध्यक्ष उनकी चिंताओं को दूर करते हैं तो ही वे बैठकों में शामिल होंगे, चूंकि एक मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है. नेशनल कांफ्रेंस और अन्य पार्टियों ने 5 अगस्त के फैसले और परिसीमन की कवायद को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी हुई है.

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जम्मू-कश्मीर के लिए परिसीमन के क्या हैं मायने?
विशेष दर्जा वापस लिए जाने के बाद, भारत के संविधान के तहत, लोकसभा और विधानसभा दोनों की सीटों का सीमांकन किया जाना है. पिछले साल एक नया परिसीमन आयोग गठित किया गया था. कोरोना संकट के चलते आयोग को परिसीमन का काम पूरा करने के लिए दिए गए समय को बढ़ा दिया गया है. 

जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के मुताबिक, निर्वाचन क्षेत्रों के नए सिरे से सीमांकन के बाद नई विधानसभा में 90 सीटें होंगी, जो पिछली विधानसभा की तुलना में सात अधिक हैं. 2019 से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा में लद्दाख की चार सीटों को मिलाकर 87 सीटें थीं. 

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क्यों है विवाद? 
87 सीटों में से 46 कश्मीर में और 37 जम्मू में हैं. चूंकि परिसीमन जनगणना पर आधारित है, इसलिए जम्मू में कई समूह 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन का कड़ा विरोध कर रहे हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, जम्मू में 53 लाख के मुकाबले कश्मीर की आबादी 68 लाख से अधिक है. इसका मतलब है कि कश्मीर को जनसंख्या अनुपात के हिसाब से ज्यादा सीटें मिलेंगी.

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