ये तो सब जानते हैं कि बिहार से लाखों श्रमिक हर साल देश के कई शहरों ख़ासकर सूरत, मुंबई, लुधियाना, दिल्ली जैसे शहरों में पलायन कर नौकरी की तलाश में जाते हैं. लेकिन अब पश्चिम चंपारण के ज़िला अधिकारी कुंदन कुमार ने कोरोना काल में वापस लौटे उन्हीं श्रमिकों की मदद से एक स्टार्टअप ज़ोन बनाया है. जिसे 'चनपटिया मॉडल' के नाम से जाना जा रहा है. इस मॉडल का असर यह है कि कल तक किसी और की कंपनी में जो मज़दूर थे वो अब अपने उद्योग के मालिक हैं और दूसरो को रोज़गार दे रहे हैं.
'चनपटिया मॉडल' के तहत स्वरोजगार में लगी अर्चना कुशवाहा ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि दस साल से सूरत में थीं फिर यहां वापस आए हैं. यहां के लोगों को हमारा काम काफी पसंद आया है. हम सस्ते दर पर लोगों को उपलब्ध करवा रहे हैं इस कारण लोग हमारे काम को पसंद कर रहे हैं.
इस स्टार्टअप जोन में आपको अर्चना की तरह 50 और उद्यमी मिल जाएंगे. जैसे गुलशन जो अपने पिता के साथ दिल्ली में स्टील के बर्तनों का कारोबार करते थे और अब उन्होने अपने गांव के नज़दीक ही ये काम शुरू कर दिया हैं. सबका मानना है कि उन्होने यहां आने के लिए इसलिए सोचा क्योंकि यहां बिजली, पानी या बैंक लोन वगैरह के लिये
माथापच्ची नहीं करनी पड़ती.
लुधियाना से लौटे श्रमिकों ने स्वेटर जैकेट बनाने का काम भी शुरू कर दिया हैं और इस साल तो कश्मीर तक इन्होंने अपना सामान भेजा है. जहां इनकी बिक्री बहुत अच्छी रही है. जितेंद्र कुमार ने कहा कि मैं 2004 से लुधियाना में काम कर रहा था हम लोग कोरोना के कारण घर वापस आए थे. तब इसकी शुरुआत हुई.
पश्चिम चंपारण के जिला अधिकारी कुंदन कुमार ने कहा कि काम सबके एकजुट प्रयास का फल है. यहां काम कर रहे उद्यमियों का कहना हैं कि अब तक सभी स्टार्ट अप क़रीब पच्चीस करोड़ का टर्नओवर कर रहे हैं इसी तरह से सहयोग मिलता रहे तो इसे अगले एक साल में दुगुना किया जा सकता है.
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