आमतौर पर हड्डी के दर्द या सूजन को लोग साधारण समझते हैं लेकिन असल में ये गंभीर बीमारी का संकेत हो सकते हैं - जैसे कि बोन टयूमर (Bone Tumor). इस बीमारी को अक्सर गलत समझा जाता है, जिससे इसका इलाज भी सही नहीं होता है. यही वजह है कि ये बीमारी स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों और रोगियों दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं.
सर गंगा राम अस्पताल में ऑर्थोपेडिक्स और मस्कुलोस्केलेटल ऑन्कोलॉजी में वरिष्ठ सलाहकार डॉ. ब्रजेश नंदन कहते हैं, "बोन ट्यूमर अस्थि कोशिकाओं की असामान्य और अनियंत्रित वृद्धि को संदर्भित करता है, जो हड्डी के अंदर एक गांठ या मास का निर्माण करते हैं." उन्होंने कहा, " ज्यादातर ट्यूमर नुकसान नहीं पहुँचाते हैं, लेकिन अगर ये मैलिग्नेंट यानी कैंसरस हों, तो शरीर के अन्य हिस्सों में फैल सकते हैं.”
किसे खतरा है?
बोन ट्यूमर किसी भी उम्र में हो सकता है, बच्चों और किशोरों में बिनाइन (सौम्य) ट्यूमर आम हैं, और वृद्ध वयस्कों में मेटास्टेटिक अस्थि कैंसर अधिक आम है. पूर्व विकिरण जोखिम, आनुवंशिक सिंड्रोम और अनुपचारित बोन मास जैसे कारक जोखिम को बढ़ा सकते हैं.
बोन ट्यूमर के क्या हैं लक्षण?
बोन ट्यूमर के लक्षण इतने सामान्य होते हैं कि कई बार मरीज इसे थकान, चोट या बढ़ती उम्र का हिस्सा मानकर टाल देते हैं. ये अक्सर दर्द रहित या दर्दनाक सूजन के रूप में दिखाई देते हैं और कुछ मामलों में, असामान्य फ्रैक्चर भी हो सकते हैं. रात में दर्द, तेज़ सूजन और प्रभावित क्षेत्र के आसपास की मांसपेशियों का क्षय जैसे लक्षण आम हैं.
डॉ. नंदन ने कहा, “डायग्नोसिस में देरी सबसे बड़ा खतरा है. अगर लक्षण लंबे समय तक बने रहें, तो एक्स-रे, एमआरआई और बायोप्सी जैसी जांचें आवश्यक हो जाती हैं.”
जरूरी नहीं अब हर बार करवाना हो सर्जरी
डॉ. ब्रजेश नंदन ने बताया कि पहले बोन कैंसर के गंभीर मामलों में अम्प्यूटेशन (अंग हटाना) आम बात थी लेकिन कीमोथेरेपी और शल्य चिकित्सा तकनीकों में प्रगति के कारण आज 95% मामलों में लिंब-साल्वेज सर्जरी संभव है, जिससे अंग को बचाया जा सकता है. "
कैसे होगा इलाज?
सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी और कुछ मामलों में क्रायोसर्जरी (बेनाइन आक्रामक ट्यूमर के लिए) की जा सकती है.
जल्द इलाज से मिलेगी सफलता
डॉ. नंदन के अनुसार, "हड्डी के ट्यूमर का इलाज एक मल्टीडिसिप्लिनरी एप्रोच की मांग करता है, जिसमें ऑर्थोपेडिक सर्जन, ऑन्कोलॉजिस्ट, रेडियोलॉजिस्ट और पैथोलॉजिस्ट की भूमिका अहम होती है." उन्होंने कहा कि बीमारी की जल्द पहचान कर डायग्नोसिस शुरू करने से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं इसलिए फॉलो अप जांच जरूर करानी चाहिए.