वायनाड में भूस्खलन से हुई तबाही का बारिश से क्या कनेक्शन? वैज्ञानिकों की रिसर्च ने बताया

30 जुलाई को वायनाड के कई क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ जिससे ये क्षेत्र लगभग पूरी तरह तबाह हो गए. राज्य सरकार के अनुसार, भूस्खलन से मरने वालों की संख्या सोमवार तक 200 पार पहुंच चुकी है और 130 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं.

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नई दिल्ली:

केरल के वायनाड में कुदरत ने ऐसा कहर बरपाया, जिसकी शायद ही कभी ने कल्पना की हों. वायनाड में आए भूस्खलन में कई 200 से अधिक लोगों की जान चली गई. वायनाड में जिस तरफ नजर जा रही है. उस तरफ बस तबाही का खौफनाक मंजर दिख रहा है. इलाके के ज्यादातर घर, इमारतें, स्कूल अब मलबे के ढेर में तब्दील हो चुके हैं. भूस्खलन में कई घर उजड़ गए. वायनाड प्राकृतिक लिहाज से देश के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में आता है. वैज्ञानिकों की एक वैश्विक टीम की रिसर्च के मुताबिक वायनाड जिले में घातक भूस्खलन भारी बारिश के कारण हुआ, जो जलवायु परिवर्तन के कारण 10 प्रतिशत अधिक थी. भारत, स्वीडन, अमेरिका और ब्रिटेन के शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती जाएगी, ऐसी घटनाएं आम होती जाएंगी.

बारिश की तीव्रता में 10 प्रतिशत का इजाफा

शोधकर्ताओं ने कहा कि रिसर्च मॉडल ने संकेत दिया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश की तीव्रता में 10 प्रतिशत का इजाफा हुआ. मॉडल यह भी भविष्यवाणी करते हैं कि यदि औसत वैश्विक तापमान 1850-1900 के औसत की तुलना में 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, तो वर्षा की तीव्रता में 4 प्रतिशत की और वृद्धि होगी. हालांकि, वैज्ञानिकों ने कहा कि मॉडल के परिणामों में अनिश्चितता का उच्च स्तर है क्योंकि इसका अध्ययन क्षेत्र छोटा और पहाड़ी है. वैज्ञानिकों के अनुसार, वैश्विक तापमान में हर 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के लिए वायुमंडल की नमी धारण करने की क्षमता लगभग 7 प्रतिशत बढ़ जाती है.

मॉडल यह भी भविष्यवाणी करते हैं कि यदि औसत वैश्विक तापमान 1850-1900 के औसत की तुलना में 2°C बढ़ जाता है, तो वर्षा की तीव्रता में 4 प्रतिशत की और वृद्धि होगी.

बदलता मौसम क्यों मचा रहा तबाही

ग्रीनहाउस गैसों, मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन की तेजी से बढ़ती सांद्रता के कारण पृथ्वी की वैश्विक सतह का तापमान पहले ही लगभग 1.3 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यही कारण है कि दुनिया भर में सूखा, गर्मी की लहरें और बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाएं बढ़ रही हैं. WWA के वैज्ञानिकों ने कहा कि वायनाड में लैंड कवर, भूमि उपयोग में परिवर्तन और भूस्खलन के जोखिम के बीच संबंध मौजूदा अध्ययनों से पूरी तरह स्पष्ट तो नहीं है, लेकिन निर्माण सामग्री के लिए खुदाई और वन आवरण में 62 प्रतिशत की कमी जैसे कारणों ने भारी वर्षा के दौरान ढलानों पर भूस्खलन की संभावना को और भी बढ़ा दिया है.

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वायनाड में क्यों बरपा कुदरत का कहर

अन्य शोधकर्ताओं ने भी वायनाड भूस्खलन को वन आवरण में कमी, नाजुक इलाकों में खनन और लंबे समय तक बारिश के बाद भारी वर्षा से जोड़ा है. कोचीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (CUSAT) में वायुमंडलीय रडार अनुसंधान के उन्नत केंद्र के निदेशक एस अभिलाष ने पहले पीटीआई को बताया था कि अरब सागर के गर्म होने से डीप क्लाउड सिस्ट का निर्माण हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप केरल में थोड़े समय में अत्यधिक भारी वर्षा हो रही है और भूस्खलन का खतरा भी बढ़ रहा है.

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केरल के 10 जिलों में भूस्खलन का अधिक खतरा

इसके साथ ही उन्होंने कहा, "हमारे शोध में पाया गया कि दक्षिण-पूर्व अरब सागर गर्म हो रहा है, जिससे केरल के ऊपर का वातावरण थर्मोडायनामिक रूप से अस्थिर हो रहा है. यह अस्थिरता घने बादलों के निर्माण को बढ़ावा दे रही है." पिछले साल इसरो के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा जारी किए गए भूस्खलन एटलस के अनुसार, भारत के शीर्ष 30 भूस्खलन के जोखिम वाले जिलों में से 10 केरल में हैं, जिसमें वायनाड 13वें स्थान पर है. स्प्रिंगर द्वारा 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि केरल में सभी भूस्खलन हॉटस्पॉट पश्चिमी घाट क्षेत्र में हैं और इडुक्की, एर्नाकुलम, कोट्टायम, वायनाड, कोझीकोड और मलप्पुरम जिलों में केंद्रित हैं.

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इसमें कहा गया है कि केरल में कुल भूस्खलन का लगभग 59 प्रतिशत बागान क्षेत्रों में हुआ है. केवल वायनाड में घटते वन क्षेत्र पर 2022 के एक अध्ययन से पता चला है कि 1950 और 2018 के बीच जिले में 62 प्रतिशत वन गायब हो गए, जबकि वृक्षारोपण क्षेत्र में लगभग 1,800 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

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