- हर्षिल घाटी में भागीरथी नदी पर मलबे से बनी कृत्रिम झील लगभग बीस फीट गहरी है
- मलबे ने नदी के प्राकृतिक बहाव को रोक दिया है जिससे धाराली और हर्षिल के बीच नदी का प्रवाह धीमा हो गया है
- झील का पानी हर्षिल हेलिपैड तक पहुंच चुका है और गंगोत्री रोड के कई हिस्से डूब चुके हैं
उत्तराखंड के हर्षिल घाटी में इन दिनों आसमान के बादल से नहीं, बल्कि धरती पर जमा पानी से खतरा मंडरा रहा है. भागीरथी नदी पर मलबा और पत्थरों के जमाव से बनी 1200 मीटर लंबी और करीब 100 मीटर चौड़ी कृत्रिम झील को विशेषज्ञ 'वॉटर बम' कह रहे हैं. यह झील लगभग 20 फीट गहरी है और इसमें करीब 7 लाख क्यूबिक मीटर पानी जमा हो चुका है. अगर यह टूट गई तो निचले इलाकों में भारी तबाही मच सकती है.
लगातार बारिश के चलते झील में पानी का स्तर तेजी से बढ़ रहा है और सोमवार रात हुई मूसलाधार बारिश के कारण इसे ‘पंचर' कर पानी निकालने की योजना फिलहाल टाल दी गई है. विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर झील टूटती है तो पूरे हर्षिल घाटी में भीषण तबाही हो सकती है. सेना और आपदा प्रबंधन दल झील के लिए वैकल्पिक रास्ता बनाने में जुटे हैं, ताकि पानी का दबाव कम किया जा सके और संभावित खतरे को टाला जा सके. यह स्थिति घाटी में रहने वाले लोगों के लिए डर और अनिश्चितता का माहौल पैदा कर रही है, जबकि प्रशासन लगातार हालात पर नजर बनाए हुए है.
बादल फटने से बना वॉटर बम
हाल ही में हुई भीषण बारिश और बादल फटने के बाद, धाराली और हर्षिल के बीच भागीरथी नदी में मलबा भर गया. यह मलबा खासतौर पर खीर गाड़ और भागीरथी नदी के संगम पर जमा हुआ है, जिसने नदी का प्राकृतिक बहाव रोक दिया है. उपग्रह तस्वीरों से साफ दिख रहा है कि इस संगम पर पंखे के आकार का मलबे का ढेर बन गया है, जिसने पानी को रोककर झील का रूप दे दिया है. इस कारण नदी का प्रवाह कई जगहों पर धीमा या लगभग बंद हो गया है.
हर्षिल हेलिपैड तक पहुंच रहा है पानी
स्थिति इतनी गंभीर है कि झील का पानी हर्षिल हेलिपैड तक भर आया है और गंगोत्री रोड के कई हिस्से भी डूब चुके हैं. स्थानीय प्रशासन का कहना है कि अगर पानी का स्तर और बढ़ा या अचानक दबाव बढ़ने से झील का किनारा टूटा, तो नीचे बसे गांवों और कस्बों पर पानी का सैलाब टूट पड़ेगा.
सेना की मदद से झील को फोड़े जाने की है योजना
खतरे को देखते हुए प्रशासन ने सेना को बुलाने का फैसला किया . आर्मी की इंजीनियरिंग कोर और अन्य कॉलम मिलकर इस कृत्रिम झील में नियंत्रित तरीके से निकासी मार्ग बनाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि अचानक बाढ़ का खतरा टाला जा सके. फिलहाल टीम मौके का मुआयना कर रही है और तय कर रही है कि किस तरह से झील को "पंक्चर" किया जाए.
हो सकती है भयंकर तबाही
विशेषज्ञों के अनुसार झील में जमा 7 लाख क्यूबिक मीटर पानी अगर एक साथ बह निकला, तो यह नीचे के इलाके में कुछ ही मिनटों में बाढ़ ला सकता है. इतनी मात्रा में पानी न सिर्फ घरों और सड़कों को बहा ले जाएगा, बल्कि पुल और अन्य ढांचों को भी भारी नुकसान पहुंचा सकता है.
क्यों इसे कहा जा रहा है'वॉटर बम'?
यह कृत्रिम झील स्थायी नहीं है, और इसका किनारा मलबे और पत्थरों से बना है, जो पानी के दबाव में कभी भी टूट सकता है. ऐसे में इसे 'वॉटर बम' कहा जा रहा है यानी एक ऐसा जल-बम जो फूटते ही तबाही मचा देगा. इस तरह की झीलें हिमालयी क्षेत्रों में पहले भी बनी हैं और कई बार इनके फूटने से बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ है.
लोगों में दहशत
हर्षिल घाटी और आसपास के गांवों में लोग डर के साए में जी रहे हैं. कई परिवारों ने घर छोड़ने की तैयारी शुरू कर दी है. दुकानदारों का कहना है कि अगर झील टूटी तो उनका सारा सामान और घर पानी में बह जाएगा. अब सबकी निगाहें सेना और इंजीनियरिंग टीम की कोशिशों पर टिकी हैं. अगर झील को नियंत्रित तरीके से खाली कर दिया गया, तो बड़ा हादसा टल सकता है. लेकिन अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो हर्षिल घाटी और नीचे के इलाकों के लिए यह 'वॉटर बम' एक भयानक आपदा में बदल सकता है.
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