- चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने तीन साल बाद भारत का दौरा किया है
- प्रधानमंत्री मोदी और वांग यी की मुलाकात सीमा विवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा पर चर्चा के लिए महत्वपूर्ण है
- कोविड महामारी और लद्दाख हिंसा के कारण भारत-चीन के बीच रिश्ते पिछले कुछ समय में खराब रहे हैं
बीजिंग और नई दिल्ली के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव के बीच चीन के विदेश मंत्री वांग यी तीन साल बाद भारत पहुंचे हैं. सोमवार शाम उन्होंने विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से मुलाकात की और मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात करेंगे. इसे भारत-चीन संबंधों में संभावित “रीसेट” की कोशिश माना जा रहा है.
तीन साल बाद शुरू हो रही है बातचीत
यह यात्रा तीन साल बाद उच्च स्तरीय संवाद की बहाली का संकेत है. प्रधानमंत्री मोदी 31 अगस्त-1 सितंबर को चीन के टियांजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे. वांग यी की यात्रा को सीमा विवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अहम माना जा रहा है. लंबे समय से लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश जैसे विवादों पर तनाव बना हुआ है. अगर बातचीत से कोई ठोस समाधान निकलता है तो यह पूरे एशिया के लिए राहत की बात होगी.
ट्रंप फैक्टर और रिश्तों में नरमी
भारत-चीन संबंधों में हालिया नरमी अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी से जुड़ी है. मार्च में ट्रंप ने चीन पर 20% टैरिफ लगाया था. इसके बाद वांग यी ने भारत और चीन से मिलकर hegemonism और power politics का विरोध करने की अपील की. उन्होंने कहा था कि हाथी और ड्रैगन को साथ आना चाहिए. सहयोग करना हमारी मूलभूत ज़रूरत है. भारत की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी ने भी इंटरव्यू में कहा था कि सीमा पर सामान्य स्थिति लौट आई है और मतभेद संवाद से सुलझाए जा सकते हैं.
कोविड और सीमा तनाव के बाद एक नई शुरूआत
कोविड महामारी और लद्दाख हिंसा के बाद दोनों देशों के बीच गहरी खाई बन गई थी. वीज़ा सेवाएं और सीधी उड़ानें रोक दी गई थीं. उम्मीद है कि वांग यी की इस यात्रा से न सिर्फ सीमा विवाद समाधान तंत्र सक्रिय होगा, बल्कि लोग-से-लोग संपर्क भी फिर से शुरू होगा.
चीन भारत के रिश्ते में पाकिस्तान सबसे बड़ी बाधा
भारत-चीन रिश्तों में सबसे बड़ी रुकावट पाकिस्तान को लेकर बीजिंग की नीति है. मई में चीन ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान-आधारित आतंकियों को “ग्लोबल टेररिस्ट” घोषित करने के प्रस्ताव को रोक दिया. जून में एससीओ बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर नहीं किए, क्योंकि उसमें पहलगाम आतंकी हमला शामिल नहीं था. दस्तावेज़ में भारत पर बलूचिस्तान में अशांति फैलाने का आरोप लगाया गया, जिसे पाकिस्तान के दबाव का नतीजा माना गया. इसलिए रिश्तों में स्थायी सुधार तभी संभव है जब चीन अपनी पाकिस्तान नीति पर भी संतुलन लाए.
भारत की तीन चिंताओं का चीन कर सकता है समाधान
सूत्रों के मुताबिक, चीन ने भारत की तीन प्रमुख चिंताओं फर्टिलाइज़र, रेयर अर्थ और टनल बोरिंग मशीनें को दूर करने का आश्वासन दिया है. विदेश मंत्री वांग यी ने जयशंकर से कहा कि चीन इन ज़रूरतों पर ध्यान दे रहा है. जयशंकर ने अपनी शुरुआती टिप्पणियों में कहा कि बातचीत में आर्थिक और व्यापारिक मुद्दे, तीर्थ यात्रा, लोग-से-लोग संपर्क, नदी डेटा साझा करना, बॉर्डर ट्रेड और कनेक्टिविटी शामिल होंगे.
उन्होंने यह भी कहा कि व्यापार पर बैन और रुकावटें नहीं होनी चाहिए. भारत-चीन के स्थिर और रचनात्मक रिश्ते सिर्फ हमारे ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के हित में हैं.
सीमा पर प्रगति और वैश्विक संदर्भ
2020 में लद्दाख में हुए गतिरोध के बाद हाल में भारत और चीन ने गश्ती व्यवस्थाओं पर सहमति बनाई है. यह प्रगति दोनों देशों के बीच तनाव कम करने का संकेत है. बदलते भू-राजनीतिक हालात जैसे यूक्रेन युद्ध का समाधान और टैरिफ से जूझती वैश्विक अर्थव्यवस्था इस संवाद को और महत्वपूर्ण बनाते हैं.
फिलहाल भारत और चीन SCO और BRICS जैसे बहुपक्षीय मंचों पर मिलकर काम करने को तैयार दिख रहे हैं. यह सहयोग दोनों देशों की अर्थव्यवस्था और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अहम है. वांग यी की इस यात्रा से “ड्रैगन और एलिफेंट” के नृत्य की नई कोरियोग्राफी भले अभी तय न हुई हो, लेकिन मंच तैयार होता दिख रहा है.
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