अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर के आकर्षण के कारण कड़ाके की सर्दियों के बावजूद देश भर से इस तीर्थ नगरी में बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं. कहीं कोलकाता से आया दोस्तों का एक समूह सड़कों पर बंगाली में बात करता नजर आ जाएगा तो कहीं गुजरात के रसोइयों के एक दल द्वारा भक्तों के लिये ‘भंडारा' तैयार किया जा रहा है तो पुणे से आकर कोई यहां महाराष्ट्र का प्रसिद्ध ‘फेटा' (साफा) बेच रहा है.
अयोध्या में इन दिनों ‘लघु भारत' जैसा नजारा हर तरफ दिखता है. यह पवित्र नगरी आम तौर पर भगवा झंडों से पटी रहती है. राम पथ और अन्य प्रमुख सड़कों पर, जहां भारी भीड़ है, कई लोगों को भगवा झंडे लहराते देखा जा सकता है. हालांकि कुछ को हाथ में तिरंगा लिए या साइकिल पर तिरंगा लगाए हुए भी देखा जा सकता है.
भारत शुक्रवार को 75वां गणतंत्र दिवस मनाएगा. देश की एकता, विविधता, विरासत और सामाजिक-सांस्कृतिक लोकाचार को प्रतिबिंबित करने वाले इस अवसर को मनाने के लिए दिल्ली से लखनऊ तक तैयारियां चल रही हैं.
पिछले कई दिनों में देश के कई हिस्सों से लाखों लोग साइकिल सहित परिवहन के विभिन्न माध्यमों से इस शहर में पहुंचे हैं. कुछ ने तो पैदल भी यात्रा की है. ये सभी अपने क्षेत्र के विविध रंग और संस्कृति लेकर आए हैं.
अयोध्या में मुख्य मंदिर की ओर जाने वाला ‘राम पथ' श्रद्धालुओं से भरा पड़ा है. यहां भाषाओं, वेशभूषा और संस्कृति की विविधता को देखते हुए इसे ‘लघु भारत' मार्ग की संज्ञा देना अतिश्योक्ति नहीं होगी.
कोलकाता के एक कार्यालय में काम करने वाले तीन सहकर्मी मंगलवार को पहली बार अयोध्या पहुंचे. तीनों ने सफेद पायजामा और धार्मिक 'पटका' के साथ मैचिंग केसरिया ‘कुर्ता' पहना था. आपस में बांग्ला में बात करते हुए जा रहे इन लोगों ने पहले हनुमान गढ़ी फिर राम लला के दर्शन किए.
इन्हीं के पास महाराष्ट्र से आए लोगों का एक समूह खड़ा था जो अपनी मातृभाषा मराठी में बात कर रहा था. अहमदाबाद की एक नागरिक संस्था ने मुख्य मंदिर परिसर की ओर जाने वाले मुख्य प्रवेश द्वार के पास ‘राम पथ' के किनारे एक खुले भूखंड पर एक अस्थायी सुविधा में एक विशाल 'भंडारा' आयोजित किया. यहां गुजराती और हिंदी में लिखे पोस्टर एक दूसरे के बगल में लटके नजर आते हैं.
जयंती भाई और अन्य कर्मचारी अलग-अलग जत्थों में बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना तक से आए भक्तों को स्वादिष्ट 'खिचड़ी', 'पूरी सब्जी' और 'बूंदी' परोसते हैं. उन्होंने बताया कि इसके लिये अहमदाबाद से विशेषतौर पर 500 कारीगर यहां आए हैं.
पास ही एक पैदल मार्ग पर, पुणे से आए पुरुषों का एक समूह मैचिंग केसरिया 'फेटा' पहने हुए है. यह महाराष्ट्र के इस क्षेत्र का एक पारंपरिक साफा है. इसे 100 रुपये की दर से बेचा जा रहा है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)