Veer Bal Diwas 2025: देश भर में आज वीर बाल दिवस मनाया जा रहा है. सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह के बेटों ने खालसा पंथ की रक्षा के लिए जो शहादत दी थी, उसे आज भी गर्व से याद किया जाता है. गुरु गोविंद सिंह के सबसे कम उम्र के साहिबजादों में 9 साल के जोरावर सिंह और 7 साल के फतेह सिंह का बलिदान दिवस मनाया जाता है.मुगलों ने दोनों छोटे साहिबजादों पर धर्म परिवर्तन करने और इस्लाम धर्म कबूल करने का दबाव डाला था लेकिन दोनों ने सिख धर्म छोड़ने से इनकार कर दिया.
मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर सरहिंद के नवाब वजीर खान ने गुरु गोविंद सिंह के छोटे बेटों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को इस्लाम धर्म न अपनाने के कारण जिंदा दीवार में चुनवा दिया था. ये घटना 1704 ईस्वी में हुई थी और उनके बलिदान को वीर बाल दिवस के तौर पर मनाया जाता है.इसे मुगलकालीन इतिहास की सबसे वीभत्स घटनाओं में से एक माना जाता है.पोतों की शहादत की खबर सुनने के बाद माता गुजरी का भी निधन हो गया था.
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दरअसल, 1705 में आनंदपुर साहिब के आसपास मुगलों का अत्याचार बढ़ गया था. गुरु परिवार को कठिन हालातों का सामना करना पड़ा. विश्वासघात और मुखबिरी के कारण माता गुजरी के साथ दोनों छोटे साहिबजादे मुगल अफसरों ने पकड़ लिए और उन्हें सरहिंद लाया गया. सूबेदार वजीर खान ने इस्लाम कबूल करने का आदेश दिया, लेकिन इतनी कम उम्र में भी साहिबजादों ने धर्म छोड़ने से साफ इनकार कर दिया. छोटे बालकों को अमानवीय यातनाएं देने के बाद दीवार में जिंदा चुनवा दिया था.
Veer Bal Diwas 2025 Nagar Kirtan Amritsar
गौरतलब है कि बैसाखी पर 1699 में सिख धर्म के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की. गुरु गोविंद सिंह के बेटे साहिबजादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह खालसा पंथ का अटूट हिस्सा थे. खालसा पंथ का उद्देश्य मुगल शासन के जुल्मों से समाज की हिफाजत करना था.उस वक्त पंजाब में भी मुगलों का वर्चस्व बढ़ रहा था. खालसा पंथ को मजबूत करने और मुगलों के अत्याचारों के खिलाफ गुरु गोबिंद सिंह ने पूरी ताकत लगा दी थी.
मुगल सेना ने 20 दिसंबर 1704 की भयंकर सर्दी के वक्त आनंदपुर साहिब के किले पर हमला बोल दिया. गुरु गोबिंद सिंह मुगलों को मुंहतोड़ जवाब देना चाहते थे, किंतु सलाहकारों ने हालात की गंभीरता को देखते हुए वहां से निकलने का फैसला किया. उन्होंने जत्थे की सहमति से पूरे परिवार के साथ आनंदपुर साहिब का किला छोड़ दिया.लेकिन सरसा नदी के तेज बहाव के बीच गुरु गोविंद सिंह जी का परिवार एक-दूसरे से बिछुड़ गया. इतिहास को बलिदान की अमर गाथाओं से भर दिया.
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इससे पहले चमकौर में जब मुगलों के साथ भयानक युद्ध हो रहा था तब गुरु गोविंद सिंह ने दोनों बड़े पुत्रों बाबा अजीत सिंह जी और बाबा जुझार सिंह जी को युद्धभूमि में भेजा था.धर्म की रक्षा हेतु साहिबजादों ने मुगलों से संघर्ष किया और अपना बलिदान देकर इतिहास में अमर हो गए.
माता गुजरी देवी अपने दो छोटे पोतों साहिबजादा जोरावर सिंह और फतेह सिंह और उनके रसोइये के साथ एक खुफिया स्थान पर शरण लेने को मजबूर हुईं.बदकिस्मती से किसी ने माता गुजरी जी और उनके पोतों की सूचना मुगल अधिकारियों तक पहुंचा दी. अल्पायु में बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी को बेरहमी से जीवित सरहिंद की दीवार में चुनवा दिया गया था. अपने लाडले पोतों के इस शहादत की खबर सुनकर माता गुजरी जी ने भी अपने प्राण त्याग दिए.














