वंदेमातरम क्यों नहीं बना राष्ट्रगान? संविधान सभा में हुई जोरदार बहस, नेहरू और राजेंद्र प्रसाद की क्या थी राय

Vande Matram: वंदे मातरम को राष्ट्रगान के तौर पर न अपनाने को लेकर बहस फिर से चल पड़ी है. आज संसद के शीतकालीन सत्र में वंदे मातरम पर चर्चा है.आइए जानते हैं कि वंदे मातरम और जन गण मन को लेकर क्या ऐतिहासिक बहस संविधान सभा में हुई थी.

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वंदे मातरम जो हमारा राष्ट्रीय गीत है, वो जन गण मन से 35 साल पहले लिखा गया था, लेकिन आज भी यह सवाल उठता रहता है कि वंदे मातरम राष्ट्र गान क्यों नहीं बना. बंकिम चंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1876 को इसकी रचना की थी और जन गण मन रवींद्र नाथ टैगोर ने 1911 में लिखा था. आज संसद में वंदे मातरम पर चर्चा होनी है और आसार हैं कि फिर से ये मुद्दा सदन में गूंजेगा. संविधान सभा ने लंबी बहस के बाद जन गण मन को राष्ट्रगान और वंदे मातरम को राष्ट्रगीत के तौर पर चुना था.

वंदे मातरम् जो आजादी की लड़ाई के दौरान आंदोलनकारियों का अमर गीत बना. बंगाल का 1905 में विभाजन करने वाली ब्रिटिश सरकार इस कदर दहशत कांप गई कि स्कूल-कॉलेजों से लेकर किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम में वंदे मातरम गाने पर रोक लगा दी गई, लोगों को जेलों में डाला गया और जुर्माना भी लगाया गया.

वंदे मातरम को राष्ट्रगान का दर्जा देने की मांग

भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान 1905 से 1947 के बीच वंदे मातरम को राष्ट्रगान का दर्जा देने की मांग उठती रही. लाल बाल पाल यानी लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और लोकमान्य तिलक भी इसके मुखर समर्थक थे. इसमें स्वराज की आवाज उठाने वाले बाल गंगाधर तिलक भी थे. अरविंद घोष ने कहा था कि ये भारतीय आत्मा को जगाने वाला गीत है. जन गण मन लिखने वाले रवींद्रनाथ टैगोर ने भी इसका सम्मान करते थे और पहली बार कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने ही ये गाया था. राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने वंदे मातरम को राष्ट्र गीत बताते हुए हर जगह गाने की वकालत की. सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज में वंदे मातरम को अपनाया.

वंदे मातरम राष्ट्रगान क्यों नहीं बना

वंदे मातरम के कुछ अंशों में हिंदू देवी देवताओं जैसे दुर्गा, सरस्वती का उल्लेख था. कई मुस्लिम नेताओं ने इसे धार्मिक भावना से जोड़कर विरोध किया. इसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद भी शामिल थे. उनका कहना था कि इस्लाम में मूर्ति या किसी देवी देवता की पूजा नहीं की जा सकती. कुछ सिख, जैन, ईसाई और बौद्ध संगठनों ने भी ऐसी ही आपत्ति उठाई थीं.

वंदे मातरम पर विवाद क्यों और कब

स्वतंत्रता से पहले ही वंदे मातरम और जन गण मन को लेकर ये विवाद हुआ. कांग्रेस ने 1937 में महात्मा गांधी, अबुल कलाम आजाद, जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस की एक कमेटी बनाई. कमेटी ने विचार विमर्श कर तय किया कि राष्ट्रीय गीत के तौर पर वंदे मातरम के सिर्फ पहले दो छंद गाए जाएंगे, क्योंकि इसका धार्मिक या मूर्ति पूजा से संबंध नहीं है. सुभाष चंद्र बोस ने पंडित नेहरू को इस मुद्दे पर एक पत्र भी लिखा था, इसमें हिन्दू मुस्लिम एकता और सांप्रदायिक मुद्दों पर कई अहम बातें थीं.

संविधान सभा में वंदे मातरम पर चर्चा

संविधान सभा में इस पर बहस हुई और तब जन गण मन को राष्ट्रगान और वंदे मातरम को राष्ट्रगीत के तौर पर अपनाया गया. हालांकि संसद से लेकर स्कूल-कॉलेज और सार्वजनिक कार्यक्रमों में दोनों गीतों को गाने और सम्मान देने की परंपरा रही रहै.

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संविधान सभा में 24 अगस्त 1947 को प्रारंभिक बहस

संविधान सभा में पहली बार यह सवाल उठा कि भारत का राष्ट्रगान वंदे मातरम् हो या जन गण मन

  1. पंडित नेहरू
    हमें ऐसा राष्ट्रगान का चुनाव करना चाहिए जो भारत के सभी वर्गों समुदायों को मान्य हो

2. जैदुल्ला खान
वंदे मातरम के आखिरी के पैरा धार्मिक भावनाओं से जुड़े हैं, लिहाजा ये सभी को स्वीकार्य नहीं हैं. लिहाजा इसे नेशनल एंथेम नहीं होना चाहिए

3. एचवी कामत
वंदे मातरम ने लाखों लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान प्रेरित किया है, इसे सर्वोच्च सम्मान मिलना चाहिए

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4. केटी शाह
अगर कुछ हिस्सों को लेकर आपत्ति है तो उन पदों को लिया जा सकता है, जो राष्ट्रीय भावना वाले हैं और धार्मिक भावना से नहीं जुड़े हैं

संविधान सभा का आखिरी फैसला 23-24 जनवरी 1950

संविधान सभा में राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत पर आखिरी फैसला हुआ...
संविधान सभा अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा, 'जन गण मन' शब्दों से बनी रचना को भारत के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया है.

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वंदे मातरम पर....

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाने वाले गीत ‘वंदे मातरम' को राष्ट्रगान के समान ही सम्मान दिया जाएगा. उसे राष्ट्रगान के समान ही दर्जा दिया जाएगा. आधिकारिक समारोहों में वंदे मातरम के सिर्फ दो छंद ही गाए जाएंगे.

वंदे मातरम का इतिहास

  • बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने वंदे मातरम' गीत की रचना 7 नवंबर 1876 को की थी
  • बंकिम के आनंदमठ में 1882 में यह गीत पहली बार प्रकाशित किया गया
  • 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पहली बार गाया गया
  • राष्ट्रगान लिखने वाले रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे स्वरबद्ध किया था
  • राष्ट्रगान पहली बार कब गाया गया

राष्ट्रगान को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पहली बार 27 दिसंबर 1911 को गाया गया था. इसे हिन्दी और बांग्ला दोनों भाषाओं में गाया गया. रवींद्रनाथ टैगोर ने 28 फरवरी 1919 को इसका अंग्रेजी अनुवाद मॉर्निंग टाइटल सॉन्ग ऑफ इंडिया के तौर पर किया. जन गण मन में पांच अंश है, जिनमें भारत के हिस्सों के साथ स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की झलक भी मिलती है. जन गण मन पर राष्ट्रगान के तौर पर 24 जनवरी 1950 पर मुहर लगाई गई. जबकि उर्दू अनुवाद इंडियन नेशनल आर्मी के आबिद अली ने किया था.

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राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत में अंतर

राष्ट्र गान यानी जन गण मन एक अनिवार्य गीत है. इस राष्ट्रगान के लिए सख्त नियम लागू होते हैं. जैसे इसे 52 सेकेंड में गाना और खड़े होकर सम्मान देना शामिल है. जबकि राष्ट्रगीत वंदे मातरम सांस्कृतिक भावना और भारत के इतिहास का प्रतिबिंब है. इसमें राष्ट्रगान जैसे कठोर नियम नहीं होते, लेकिन सम्मान का भाव अनिवार्य है.

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