- पीएम मोदी ने लोकसभा में वंदे मातरम के 150वें वर्षगांठ पर इसके इतिहास और योगदान पर चर्चा की
- वंदे मातरम पर प्रतिबंध के खिलाफ बारीसाल की वीरांगना सरोजनी बोस ने चूड़ियां उतार कर विरोध प्रदर्शन किया था
- उस समय वंदे मातरम बोलने पर माताओं, बहनों, बच्चों को जेल और कोड़े मारने जैसी यातनाएं सहनी पड़ती थीं
पीएम मोदी ने लोकसभा में 'वंदे मातरम' की 150वीं वर्षगांठ पर कहा कि बारीसाल में वंदे मातरम बोलने पर गाने पर सबसे ज्यादा जुल्म हुए. बारीसाल आज भारत का हिस्सा नहीं रहा, उस समय बारीसामल की हमारी माताएं, बहनें और बच्चे मैदान में उतरे वंदे मातरम के स्वाभिमान के लिए. तब बारीसाल की एक वीरांगना सरोजनी बोस ने उस जमाने में उन्होंने कहा था वंदे मातरम पर जब तक प्रतिबंध हटता है तब तक मैं अपनी चूड़ियां निकालकर रखूंगी. उस वक्त चूड़ी उतारना बहुत बड़ी घटना होती थी.
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वंदे मातरम के लिए अनोखा प्रण
वंदे मातरम को लेकर ये भावना थी कि उन्होंने अपनी चूड़ियां तक उतार दी. सरोजनी ने ये तय किया कि जब तक वंदे मातरम से बैन नहीं हटेगा तब तक चूड़ियां धारण नहीं करूंगी. हमारे देश के बालक भी पीछे नहीं रहे, उनक कोड़े मारे जाते. उन्हें जेल में बंद कर दिया जाता था. उन दिनों बंगाल की गलियों में लगातार वंदे मातरम के लिए प्रभात फेरियां निकलती थी. तब एक गीत गूंजता था जो बंगाली में था. जिसका मतलब था कि मां तुम्हार काम करते और वंदे मातरम बोलते हुए अगर जीवन भी चला जाए तो वो धन्य है.
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संसद में वंदे मातरम पर चर्चा
पीएम मोदी ने लोकसभा में ‘वंदे मातरम' के 150 साल पूरे होने पर खास चर्चा शुरू की. पीएम मोदी ने बंकिम चंद्र चटर्जी के लिखे और 7 नवंबर 1875 को साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में पहली बार छपे इस राष्ट्रीय गीत के आजादी की लड़ाई में योगदान, इसके ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला. पिछले महीने, इस गीत की सालगिरह मनाने के एक कार्यक्रम के दौरान, उन्होंने कांग्रेस पर फैजाबाद में पार्टी के 1937 के सेशन में असली गीत से 'जरूरी लाइनें हटाने' का आरोप लगाया था.














