धराली सैलाब में समाधि लेने वाले कल्प केदार की क्या है कहानी, NDTV ने खंगाला 240 मंदिरों का रहस्य

NDTV ने कल्प केदार मंदिर की ऐतिहासिकता की विशेष पड़ताल की तो पता चला कि धराली में 240 मंदिरों की श्रृंखला होने के दो तरीके से पुख्ता प्रमाण मिलते हैं.

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  • बताते हैं कि शंकराचार्य जब गंगोत्री यात्रा पर निकले थे, तब गंगोत्री ग्लेशियर धराली तक फैला था.
  • सनातन धर्म के पुनरुत्थान के लिए भागीरथी और खीर गंगा के संगम पर 240 मंदिरों की श्रृंखला बनाई गई थी.
  • अंग्रेज फोटोग्राफर सैमुअल ब्राउन ने 1869 में कल्प केदार समेत तीन मंदिरों की श्रृंखला के फ़ोटो खींचे थे.
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उत्तरकाशी के धराली में 5 अगस्त को आए सैलाब में कल्प केदार मंदिर भी समाधि ले चुका है. कल्प केदार मंदिर भागीरथी नदी और खीर गंगा के संगम पर बने 240 मंदिरों की श्रृंखला का एक प्रमुख मंदिर था. यह पहली बार नहीं है, जब कल्प केदार मंदिर ने समाधि ली है. इससे पहले भी कम से कम तीन बार यह मंदिर जमींदोज हो चुका है. आखिरी बार धराली के लोगों ने 1980 में खुदाई करके मंदिर को बाहर निकाला था. लेकिन तब भी आधा मंदिर जमीन के नीचे दबा हुआ था. 

240 मंदिरों की श्रृंखला के दो सबूत 

NDTV ने कल्प केदार मंदिर की ऐतिहासिकता की विशेष पड़ताल की तो पता चला कि धराली में 240 मंदिरों की श्रृंखला होने के दो तरीके से पुख्ता प्रमाण मिलते हैं. पहला, यहां के लोग सदियों से अपने पूर्वजों से इस बारे में सुनते आए हैं. दूसरा स्कंद पुराण के केदारखंड में भागीरथी नदी और खीर गंगा के संगम पर धराली का श्याम प्रयाग के नाम से उल्लेख मिलता है. यह जगह गंगोत्री यात्रा का अंतिम पड़ाव स्थल थी.

धराली तक फैला था गंगोत्री ग्लेशियर 

बताते हैं कि प्राचीन काल में शंकराचार्य जब गंगोत्री यात्रा पर निकले थे, तब गंगोत्री का ग्लेशियर धराली तक फैला हुआ था. इसी वजह से सनातन धर्म के पुनरुत्थान के लिए भागीरथी नदी और खीर गंगा के संगम पर 240 मंदिरों की श्रृंखला तैयार की गई थी. 18वीं सदी में श्री कंठ पर्वतमाला से निकलने वाली खीर गंगा की बाढ़ से ज़्यादातर मंदिर मलबे में दब गए. 1816 के आसपास गंगा नदी के उद्गम को खोजते हुए अंग्रेज़ यात्री जेम्स विलियम फ़्रेज़र धराली पहुंचे. उन्होंने अपने यात्रा वृतांत में इसका उल्लेख किया है. 

240 मंदिरों की श्रृंखला का एक पुख्ता प्रमाण और खीर गंगा में समय-समय पर आने वाली बाढ़ का सबूत अंग्रेज़ फोटोग्राफर सैमुअल ब्राउन की फोटो से भी मिलता है. सैमुअल ब्राउन 1869 में जब गोमुख की ओर बढ़े तो धराली में कल्प केदार समेत तीन मंदिरों की श्रृंखला के फ़ोटो उन्होंने खींचे थे. ये फोटो उस जमाने में कल्प केदार की स्थिति का पुख्ता सबूत माना जाता है. 

फिर से दो बार जमींदोज हुआ कल्पकेदार 

1895 में एक बार फिर से ग्लेशियर के चलते हिम नदियों के पानी में बदलाव हुआ और कल्प केदार के साथ बने दो मंदिर ज़मींदोज़ हो गए. तब सिर्फ कल्प केदार मंदिर का अस्तित्व ही बचा रहा. उसके बाद 1935 में भागीरथी और खीर गंगा में आई बाढ़ की वजह से कल्प केदार मंदिर लगभग आधे से ज़्यादा जमींदोज हो गया था. धराली के लोगों ने आपस में सहयोग करके 1980 में खुदाई की और कल्प केदार मंदिर के आसपास से मिट्टी हटाकर उसे निकाला. 

गांववालों ने खोदकर निकाला था मंदिर

5 अगस्त को आई तबाही से पहले की तस्वीरों में साफ दिखता है कि ये मंदिर सतह से कितना नीचे था. बताते हैं, खुदाई के बावजूद मंदिर को लगभग आधा हिस्सा जमीन के नीचे था. मंदिर का आधार पानी में डूबा हुआ था. इसका गर्भ गृह प्रवेश द्वार से करीब 7 मीटर नीचे था. इसमें भगवान शिव की सफेद रंग का शिवलिंग रखा था. मंदिर के बाहर शेर, नंदी, शिवलिंग और पत्थर पर उकेरी गई घड़े के आकृति के चिह्न मौजूद थे. अब इस आपदा में कल्प केदार मंदिर पूरी तरह ज़मींदोज़ हो गया है.

कल्प केदार मंदिर कत्यूर शिखर शैली में बना था. कल्प केदार के मुख्य सेवादार कांति पुजारी के मुताबिक, पुरातत्व विभाग ने एक बार खीर गंगा के मुहाने पर बने सभी 240 मंदिरों को खोजने की योजना बनाई थी. लेकिन इसके लिए वह आसपास की बहुत सारी जगह लेना चाहते थे. स्थानीय स्तर पर इसका काफी विरोध हुआ था. अब वो चाहते हैं कि कम से कम कल्प केदार का अस्तित्व दोबारा बहाल किया जाए, जिससे मंदिर की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व को लोग जान सकें.

खीर गंगा को कभी हत्याहारिणी भी कहते थे 

कल्प केदार के मुख्य पुजारी के मुताबिक, धराली का इतिहास पांच हजार साल से भी ज़्यादा पुराना है. मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव यहां पर भगवान शिव के दर्शन करने और अपने पापों को धोने के लिए आए थे. तब उन्होंने छोटी सी हिम नदी में डुबकी लगाई थी, जिसका नाम हत्याहारिणी नदी भी पड़ गया था. 

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उन्होंने बताया कि बाद में गंगा नदी का उद्गम स्थल होने और नदी का पानी दूध जैसा सफेद होने के कारण स्थानीय लोग इसे खीर गंगा नाम से पुकारने लगे. कल्प केदार मंदिर के पुजारी बताते हैं कि स्थानीय लोग मजाक में कहते थे कि खीर गंगा नदी में अब तक एक चूहा तक नहीं मरा होगा, लेकिन नदी का इतिहास खंगालें तो पता चलता है कि हर सदी में खीर गंगा में एक बड़ी बाढ़ आती रही है और आसपास के मंदिर उसमें डूबते रहे हैं.

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