- उत्तरकाशी के धराली गांव में अचानक बादल फटने से दोपहर में भारी तबाही हुई, जिससे आधा गांव बर्बाद हो गया.
- गंगोत्री रैली क्षेत्र में पानी, कीचड़, मलबे ने बाजार, होटल, रिजॉर्ट और बगीचों को पूरी तरह तबाह कर दिया.
- हजारों लोग प्रभावित हुए, कई घर नदी के बीच चले गए और लोगों के मलबे में दबने की आशंका जताई जा रही है.
'हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छांह... एक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह'... जयशंकर प्रसाद ने अपने महाकाव्य 'कामायनी' में ये पंक्तियां लिखी हैं. धराली त्रासदी की आंखों देखी, ऐसे ही एक शख्स लाइव बयां कर रहा था. 5 अगस्त 2025 की दोपहर है. लोग उत्सव की तैयारियों में जुटे थे. गांव में कोई मेला लगना था. लेकिन ये क्या, कुछ सेकेंड के भीतर सबकुछ तबाह. आधा गांव बर्बाद हो गया, मेले का माहौल मातम में तब्दील. उत्तरकाशी के धराली में जो तबाही आई, उसे लोग शायद ही भूल पाएंगे.
घाटी में एक बार फिर प्राकृति ने अपना प्रचंड रूप दिखाया. दोपहर करीब डेढ़ बजे के बाद अचानक बादल फटा और गंगोत्री रैली क्षेत्र में पानी के सैलाब, कीचड़, मलबा, और बड़े-बड़े पत्थरों ने पूरा गांव उजाड़ दिया. सब कुछ मानो पलक झपकते बर्बाद हो गया- लोग, घर, बाजार, होटल, रिजॉर्ट, बगीचे और सपने! लाइव वीडियो में एक स्थानीय व्यक्ति फटे हुए दिल और डरे हुए स्वर में आंखों देखी सुना रहा है.
'हजारों लोग तबाह हो गए'
'यहां हजारों लोग तबाह हो गए हैं, 2013 के बाद की सबसे बड़ी आपदा है. डेढ़ बजे से पानी का बहाव, कीचड़, मलबा, लकड़ी वगैरह बहते नजर आ रहे हैं.' उसके पीछे सायरन की आवाजें, सैनिक और एसडीआरएफ के जवानों की चहल-पहल और डर से सिसकते लोग नजर आ रहे थे. यह वही दिन था, जब गांव में एक बड़ा मेला लगना था, मगर किसे पता था, प्रकृति की काली घटा उनकी खुशियों में ग्रहण लगा देगी. स्थानीय मंदिर, पूरा बाजार, रिजॉर्ट और बगीचे देखते ही देखते मलबे में बदल गए.
'होटल, गाड़ियां.. सब मिट्टी में दब गए'
'यहां के कई घर तो अब नदी के बीच पहुंच गए हैं,' लाइव वीडियो में आंखों देखी बयां करते हुए संजय पंवार की आवाज डर और दर्द से कांप जाती है. आगे वो कहते हैं- 'पहली बार ऐसा है, लोग खुले आसमान के नीचे आ चुके हैं. लोगों के रहने के घर नहीं बचे, कई मजदूर जो यहां स्थानीय थे, शायद मलबे में दब गए हैं. होटल, दुकानें, गाड़ियां- सब मिट्टी में दबे हुए हैं. बाजार जो कल तक गुलजार था, आज एक रेगिस्तान सा बन गया है.'
'मलबे में जो दब गए, शायद वो...'
लाइव वीडियों में आगे वो कहते हैं, 'आर्मी और एसडीआरएफ की टीमें राहत में जुटी हैं, लेकिन कई जगहों तक अब भी पहुंचना संभव नहीं हो पाया है. मलबे में जिन्हें दबा हुआ देखा, वो शायद मजदूर थे, लेकिन किसकी पहचान करना भी मुश्किल था. कई परिवारों की खबर तक नहीं है. अब सब की उम्मीद बारिश रुकने पर टिकी है कि असली नुकसान का अंदाजा तब ही मिल पाएगा.
'ऐसी आफत किसी गांव पर न बरसे'
पंवार कहते हैं- 'भगवान, अब कभी किसी गांव पर ऐसी आफत ना बरसाना.' गांव का हर शख्स आंखों में आंसू और दिल में खौफ लिए यही प्रार्थना कर रहा होगा कि ऐसी आफत किसी गांव पर न बरसे. धराली के कुछ लोगों ने बताया कि मंगलवार को पहाड़ों से आती भारी-भारी पत्थरों की टक्कर और मलबे की भयानक आवाजें गांववालों को डराती रही. हर कोई अपने अपने परिजनों की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना करता रहा.
धराली में आई कुदरती तबाही एक चेतावनी है. राहत और पुनर्वास का काम अभी जारी है, लेकिन लोगों की आंखों में बसा दर्द और यादें शायद कभी नहीं मिटेंगी.