2013 में केदारनाथ... 2025 में धराली, सैलाब में तबाह दो जगहों की रूह कंपाने वाली कहानी

उत्तरकाशी का धराली गांव पर्यटकों में खासा लोकप्रिय है, लेकिन अब यहां रूह कंपाने वाली त्रासदी की दर्दनाक चीखें गूंज रही हैं. सैलाब ने जिस तरह धराली में तबाही मचाई, वैसा ही सैलाब 2013 में केदारनाथ के ऊपर से भी आया था. धराली और केदारनाथ में आपदा से पहले और बाद के हालात पर एक नजर-

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  • उत्तरकाशी के धराली में आई आपदा ने 2013 की केदारनाथ त्रासदी की यादें ताजा कर दी हैं
  • बादल फटने के बाद धराली में बहकर आए सैलाब और मलबे में तमाम इमारतें जमींदोज कर दी हैं.
  • केदारनाथ के ऊपर से भी ऐसा ही सैलाब आया था और पलक झपकते सबकुछ तबाह हो गया था.
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ऊंचे-ऊंचे पहाड़, देवदार के बड़े-बड़े पेड़, घास के मैदान और नीचे कलकल बहती भागीरथी नदी... ऐसे दिलकश नजारे किसी को भी मोहित कर सकते हैं. पर्यटकों से गुलजार रिजॉर्ट, होटल, होमस्टे और मकान और दुकान खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. ऐसा ही नजारा अब तक उत्तराखंड के उत्तरकाशी में बसे धराली गांव का हुआ करता था. लेकिन अब यहां रूह कंपाने वाली त्रासदी की दर्दनाक चीखें गूंज रही हैं. बादल फटने के बाद बहकर आए मलबे के नीचे से झांकती इमारतें आपदा की विभीषिका की कहानी कह रही हैं. इस हादसे ने 12 साल पहले केदारनाथ में हुई भीषण त्रासदी की खौफनाक यादें ताजा कर दी हैं.  2013 में केदारनाथ के ऊपर से भी ऐसा ही सैलाब आया था और पलक झपकते ही सबकुछ तबाह हो गया था. आज फिर से गंगा का मायका दर्द में है. आइए धराली और केदारनाथ आपदा से पहले और बाद के हालात पर नजर डालते हैं. 

2013 से पहले केदारनाथ-रामबाड़ा

केदारनाथ उत्तराखंड के सबसे प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक. हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शन के लिए दुर्गम रास्तों से होकर पहुंचते हैं. 2013 से पहले केदारनाथ का रास्ता रामबाड़ा से होकर जाता था. इस रास्ते पर खूब रौनक रहती थी. यहां छोटे-बड़े कई होटल, धर्मशालाएं और दुकानें थीं. मंदाकिनी नदी के किनारे बसा यह इलाका तीर्थयात्रियों का एक मुख्य पड़ाव हुआ करता था. यहां वे रात में ठहरते और अगले दिन केदारनाथ के दर्शन के लिए निकलते थे.

केदारनाथ में ऐसे हुई थी तबाही 

  • साल था 2013, जून का महीना. चार धाम यात्रा चल रही थी.
  • केदारनाथ मंदिर के आसपास बड़ी संख्या में लोग ठहरे हुए थे.
  • 16 जून को केदारनाथ और आसपास के इलाकों में भारी बारिश शुरू हो गई.
  • ये बारिश इतनी तेज थी कि जैसे किसी भीषण आपदा की आहट हो.
  • केदारनाथ मंदिर के ऊपर चौराबाड़ी ग्लेशियर के पास झील में बेहिसाब पानी भर गया.
  • 16 जून की रात बादल फटा और झील के तटबंध पानी को रोक नहीं पाए.
  • पानी अपने साथ बड़ी-बड़ी चट्टानों और मलबे को लेकर नीचे की तरफ बह निकला.
  • रास्ते में जो भी आया, पूरी तरह तबाह हो गया. रामबाड़ा का नामोनिशान मिट गया. 

जलप्रलय में भीषण तबाही, मंदिर बचा

केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे से आई यह जलप्रलय इतनी भयानक थी कि इसके रास्ते में जो आया, तबाह हो गया. रामबाड़ा कस्बा पूरी तरह बह गया. वहां ठहरे सैकड़ों तीर्थयात्री और स्थानीय लोग अचानक आए इस सैलाब में बह गए. केदार मंदिर के चारों तरफ बने घर-दुकान-मकान सब तिनके की तरह बह गए. मंदिर के पीछे एक विशालकाय चट्टान आ गई, जिसने पानी के बहाव को काट दिया और मुख्य मंदिर सुरक्षित खड़ा रहा. रामबाड़ा कस्बे का नामोनिशान तक मिट गया. केदारनाथ मंदिर के आसपास मलबा ही मलबा था.

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केदारनाथ हादसे के सरकारी आंकड़ों में इस हादसे में छह हजार से अधिक लोगों की मौत की पुष्टि की गई. हालांकि कुछ रिपोर्ट्स में हताहतों की संख्या 10 हजार से भी अधिक होने का दावा किया जाता है. सैकड़ों लोग मलबे में इस कदर दब गए कि काफी प्रयासों के बाद भी उन्हें नहीं निकाला जा सका. इस हादसे में लापता हुए 3075 लोगों का आज तक पता नहीं चल पाया है. लापता लोगों की तलाश के लिए सरकार चार बार टीमें भेज चुकी हैं. एक बार फिर से टीम भेजने की तैयारी है.  इस हादसे के बाद मिले 702 शवों की आज तक पहचान नहीं हो पाई. छह हजार से अधिक लोगों ने परिजनों की तलाश के लिए अपने डीएनए दिए थे, लेकिन किसी से भी इनका मिलान नहीं हो पाया. 

रामबाड़ा का नामोनिशान खत्म

इस भीषण आपदा के बाद केदारनाथ के हालत काफी कुछ बदल गए हैं. जो रास्ता रामबाड़ा से होकर जाता था, वह पूरी तरह से गायब हो गया. रामबाड़ा कस्बे का एक तरह से नामोनिशान मिट गया. केंद्र सरकार और उत्तराखंड सरकार ने मिलकर पुनर्निर्माण शुरू किया. रामबाड़ा की जगह सोनप्रयाग से केदारनाथ तक एक नया पैदल मार्ग बनाया गया. यह पहले वाले रास्ते से थोड़ा लंबा है, लेकिन अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है. केदारनाथ पुनर्निर्माण योजना के तहत मंदिर के चारों ओर रास्ते बनाए गए हैं. नए भवन तैयार किए गए हैं. पूरा इलाका अब गुलजार हो गया है. लेकिन अपनों को खो चुके लोगों की सिसकियां अब भी भीषण त्रासदी की गवाही देती हैं. 

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धराली गंगोत्री के पास खूबसूरत इलाका

जिस तरह केदारनाथ में आपदा के दौरान पहाड़ों के ऊपर से सैलाब बहकर आया था, कुछ वैसा ही नजारा उत्तरकाशी के धराली गांव में भी दिखा है. सामने आए वीडियो इस त्रासदी की विभीषिका की गवाही दे रहे हैं. धराली गांव उत्तराखंड के सबसे खूबसूरत और मनमोहक स्थलों में से एक है. यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है. यह गंगोत्री धाम और हर्षिल के बीच का पड़ाव स्थल है. 

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बड़ी संख्या में बने हैं होटल-रिजॉर्ट 

समुद्र तल से करीब 9 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित धराली गांव पर्यटकों के बीच काफी प्रसिद्ध है. यहां के हरे-भरे जंगल, बर्फ से ढकी चोटियां और भागीरथी नदी का दृश्य पर्यटकों को खूब लुभाता है. धराली में सेब के विशाल बागान भी हैं. धराली में पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को आमद को देखते हुए बड़ी संख्या में होटल, रिजॉर्ट, गेस्टहाउस आदि बने हैं. 

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गंगोत्री यात्रा का अहम पड़ाव स्थल

उत्तरकाशी जिले का धराली गांव गंगोत्री धाम के रास्ते का एक अहम पड़ाव है. यह गांव हर्षिल से लगभग तीन-चार किलोमीटर दूर पड़ता है. यहां से गंगोत्री धाम करीब 20 किलोमीटर है. गंगोत्री जाने वाले यात्री हर्षिल में पड़ाव करते हैं. जो लोग हर्षिल में नहीं रुक पाते, वो धराली में रुकते हैं. धराली कस्बे के बाद गंगोत्री तक पहाड़ी रास्ता है. बीच में कोई कस्बा नहीं है. इसकी वजह से धराली में बहुत से गेस्टहाउस, होमस्टे, रेस्टोरेंट और ढाबे आदि बने हुए हैं. 

बादल फटने से बड़े पैमाने पर तबाही

इस वक्त चार धाम यात्रा चल रही है. इसकी वजह से धराली में बड़ी संख्या में पर्यटक मौजूद हैं. लेकिन मंगलवार को आई आपदा ने यहां भीषण तबाही मचाई है. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि 20 से 25 होटल और होमस्टे बह गए हैं. कई इमारतें जमींदोज हो गईं. बड़े पैमाने पर नुकसान की खबरें हैं. 50 से ज्यादा लोग लापता बताए जा रहे हैं. कल तक जहां इमारतें थी, जहां लोग रह रहे थे, अब न वहां मकान है न दुकान है, बस कुछ बचा है तो मलबे के निशान हैं. 

ताश के पत्तों की तरह बह गईं इमारतें

हादसे के वीडियो भी खौफनाक हैं. साफ देखा जा सकता है कि किस तरह से गांव के ऊपर से पानी और मलबा आता है और ताश के पत्तों की तरह इमारतों को धराशायी कर देता है. उस वक्त पानी का बहाव कितना तेज होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है. पहाड़ों में नदियों का प्रवाह वैसे भी काफी तेज होता है. पहाड़ों से जब पानी आता है तो वेग कई गुना अधिक हो जाता है. बादल फटने के जब एकसाथ भारी मात्रा में पानी और मलबा आता है तो चंद सेकंड में ही कहर बरपा जाता है. ऐसा ही कुछ धराली में भी हुई है. 

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