UCC बिल पर ओवैसी ने उठाए सवाल, कहा - ''यह हिंदू कोड से ज्यादा और कुछ नहीं''

दरअसल, असदुद्दीन ओवैसी ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट शेयर करते हुए समान नागरिक संहिता विधेयक का विरोध किया है. उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, ''हिंदू अविभाजित परिवार को इसमें छुआ नहीं गया है. ऐसा क्यों?''

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नई दिल्ली:

उत्तराखंड सरकार ने मंगलवार को विधानसभा में समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयर को पेश किया था. कई मुस्लिम संगठन इस विधेयक के विरोध में हैं और अब इसी बीच AIMIM पार्टी के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी UCC पर सवाल उठाए हैं. ओवैसी ने कहा कि उत्तराखंड का UCC Bill सभी के लिए हिंदू कोड से ज्यादा और कुछ नहीं है.

दरअसल, असदुद्दीन ओवैसी ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट शेयर करते हुए समान नागरिक संहिता विधेयक का विरोध किया है. उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, ''हिंदू अविभाजित परिवार को इसमें छुआ नहीं गया है. ऐसा क्यों? अगर आप उत्तराधिकार और विरासत के लिए समान कानून चाहते हैं तो फिर हिंदुओं को इससे बाहर क्यों रखा गया है? क्या कोई कानून एक समान माना जा सकता है अगर वो आपके राज्य के अधिकांश हिस्से पर लागू ही नहीं होता है''? 

ओवैसी ने लिखा, ''बहुविवाह, हलाला, लिव-इन रिलेशनशिप चर्चा का विषय बने हुए हैं लेकिन कोई यह सवाल नहीं कर रहा है कि हिंदू अविभाजित परिवार इससे बाहर क्यों हैं. कोई यह सवाल नहीं कर रहा कि इसकी जरूरत किस वजह से है. सीएम के मुताबिक, बाढ़ के कारण उनके राज्य को 1000 करोड़ का नुकसान हुआ. 17000 हेक्टेयर भूमि जलमग्न हो गई और इसकी वजह से राज्य को 2 करोड़ का नुकसान हुआ है. उत्तराखंड की वित्तिय स्थिति खराब है और इस वजह से उन्हें इसपर चर्चा करनी चाहिए''. 

उन्होंने पोस्ट में लिखा, ''UCC में अन्य सवेंधानिक और कानूनी मुद्दे भी हैं. मुझे मेरे धर्म और संस्कृति को मानने की आजादी प्राप्त है लेकिन यह बिल मुझे अलग धर्म और संस्कृति का पालन करने के लिए मजबूर कर रहा है. हमारे धर्म में विरासत और विवाह धार्मिक प्रथा का ही हिस्सा है, लेकिन हमें अलग प्रणाली को फॉलो करने के लिए मजबूर करना अनुच्छेद 25 और 29 का उल्लंघन है''. 

ओवैसी ने लिखा, ''यूसीसी का संवैधानिक मुद्दा भी है. मोदी सरकार ने SC में कहा कि UCC केवल संसद द्वारा अधिनियमित किया जा सकता है. यह विधेयक शरिया अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम, एसएमए, आईएसए आदि जैसे केंद्रीय कानूनों का खंडन करता है. ऐसे में राष्ट्रपति की सहमति के बिना यह कानून कैसे काम करेगा?''

उन्होंने लिखा, ''एसएमए, आईएसए, जेजेए, डीवीए आदि के रूप में एक स्वैच्छिक यूसीसी पहले से ही मौजूद है. जब अंबेडकर ने खुद इसे अनिवार्य नहीं कहा तो इसे अनिवार्य क्यों बनाया जाए?''

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