Uttarakhand Tunnel Update: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिल्क्यारा-डंडालगांव टनल (Uttarkashi Tunnel Collapse Rescue) में 17 दिन से फंसे 41 मजदूरों को आखिरकार बाहर निकालने में मदद मिली है. समाचार एजेंसी ANI के मुताबिक, NDRF की टीम बारी-बारी से मजदूरों को बाहर निकाल रही है. अंदर फंसे लोगों को एकदम से टनल के बाहर नहीं लाया जाएगा. टनल के अंदर ही अस्थायी अस्पताल बनाया गया है. यहां सभी मजदूरों का मेडिकल चेकअप होगा. कुछ देर मजदूरों को यही रखा जाएगा. टेंपरेचर नॉर्मल होने और हालत में कुछ सुधार होने पर सभी मजदूरों को 30-35 KM दूर चिन्यालीसौड़ ले जाया जाएगा. अगर किसी मजदूर की तबीयत बिगड़ी तो उन्हें तुरंत एयरलिफ्ट को एम्स ऋषिकेश ले जाया जाएगा. इसके लिए चिन्यालीसौड़ एयरस्ट्रिप पर चिनूक हेलीकॉप्टर तैनात किया गया है.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बाहर निकाले गए मजदूरों से मुलाकात कर रहे हैं. केंद्रीय राज्य मंत्री जनरल (रिटायर्ड) वीके सिंह भी वहीं मौजूद हैं. वीके सिंह ने माला पहनाकर मजदूरों को स्वागत किया. बाहर निकाले जा रहे मजदूरों के परिजन भी टनल में मौजूद हैं. मजदूरों का टनल के अंदर बने अस्थायी अस्पताल में मेडिकल चेकअप किया जा रहा है.
मजदूरों ने बाहर निकलकर राहत के सांस ली. उनके चेहरे पर दूसरी जिंदगी मिलने की खुशी साफ देखी जा रही है. मजदूरों के परिवार भी खुशी से झूम उठे. ये सभी मजदूर 12 नवंबर यानी दिवाली वाली सुबह से टनल में फंसे थे. एक मजदूर के परिवार ने कहा कि अब इनके बाहर निकालने के बाद वो 17 दिन बाद दिवाली का त्योहार मनाएगा.
टनल के अंदर रखे गए स्ट्रेचर और गद्दे
उत्तराखंड एनडीएमए के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सैयद अता हसनैन ने मंगलवार को मीडिया ब्रीफिंग में कहा, "मजदूरों को बाहर निकालने में अभी वक्त लगेगा. रेस्क्यू ऑपरेशन आखिरी फेज में हैं. मजदूरों को तुरंत बाहर नहीं निकाला जाएगा. टनल के अंदर एम्बुलेंस के अलावा स्ट्रेचर और गद्दे पहुंचाए गए हैं. यहां अस्पताल बना दिया गया है. रेस्क्यू के बाद मजदूरों को यही रखा जाएगा.
आइए जानते हैं उत्तरकाशी के टनल में मजदूरों के फंसने से लेकर रेस्क्यू के आखिरी फेज तक कब क्या हुआ:-
12 नवंबर:- 12 नवंबर की सुबह करीब 5.30 बजे उत्तरकाशी में बन रही सिलक्यारा-डंडालगांव टनल का एक हिस्सा भरभराकर धंस गया. मलबा करीब 60 मीटर तक फैल गया और टनल से बाहर निकले का रास्ता ब्लॉक हो गया. अंदर काम कर रहे 41 मजदूर फंस गए. इसके तुरंत बाद से रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू कर दिया गया. टनल से पानी निकालने के लिए बिछाए गए पाइप से ऑक्सीजन, दवा, भोजन और पानी अंदर भेजा जाने लगा. बचाव कार्य में NDRF, ITBP और BRO को लगाया गया.
13 नवंबर:- 35 हॉर्स पावर की ऑगर मशीन से 15 मीटर तक मलबा हटाया गया. शाम तक टनल के अंदर से 25 मीटर तक मिट्टी के अंदर पाइप लाइन डाली जाने लगी. मजदूरों को पाइप के जरिए लगातार ऑक्सीजन और खाना-पानी मुहैया कराया जाना शुरू हुआ.
14 नवंबर:- टनल में लगातार मिट्टी धंसने से नॉर्वे और थाईलैंड के एक्सपर्ट्स से सलाह ली गई. ऑगर ड्रिलिंग मशीन और हाइड्रोलिक जैक को काम में लगाया. लेकिन लगातार मलबा आने से रेस्क्यू में दिक्कत हुई. इसके बाद 900 एमएम यानी करीब 35 इंच मोटे पाइप डालकर मजदूरों को बाहर निकालने का प्लान बना. इसके लिए ऑगर ड्रिलिंग मशीन और हाइड्रोलिक जैक की मदद ली गई.
15 नवंबर:- रेस्क्यू ऑपरेशन के तहत कुछ देर ड्रिल करने के बाद ऑगर मशीन के कुछ पार्ट्स खराब हो गए. PMO के हस्तक्षेप के बाद दिल्ली से एयरफोर्स का हरक्यूलिस विमान हैवी ऑगर मशीन लेकर चिल्यानीसौड़ हेलीपैड पहुंचा. इसे विमान से निकालने में तीन घंटे लग गए.
16 नवंबर:- इसके बाद 200 हॉर्स पावर वाली अमेरिकन ड्रिलिंग मशीन ऑगर का इंस्टॉलेशन पूरा हुआ. शाम 8 बजे से रेस्क्यू ऑपरेशन दोबारा शुरू हुआ. रात में टनल के अंदर 18 मीटर पाइप डाले गए. इसी दिन सीएम पुष्कर सिंह धामी ने रेस्क्यू ऑपरेशन की रिव्यू मीटिंग की.
17 नवंबर:- दोपहर 12 बजे ऑगर मशीन के रास्ते में पत्थर आने से ड्रिलिंग रुकी. मशीन से टनल के अंदर 24 मीटर पाइप डाला गया. नई ऑगर मशीन रात में इंदौर से देहरादून पहुंची, जिसे उत्तरकाशी के लिए भेजा गया.
18 नवंबर:- दिनभर ड्रिलिंग का काम रुका रहा. PMO के सलाहकार भास्कर खुल्बे और डिप्टी सेक्रेटरी मंगेश घिल्डियाल उत्तरकाशी पहुंचे. पांच जगहों से ड्रिलिंग की योजना बनी.
19 नवंबर:- सुबह केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और उत्तराखंड CM पुष्कर धामी उत्तरकाशी पहुंचे. उन्होंने रेस्क्यू ऑपरेशन का जायजा लिया. शाम 4 बजे ड्रिलिंग दोबारा शुरू हुई. खाना पहुंचाने के लिए एक और टनल बनाने की शुरुआत हुई.
20 नवंबर:- इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट ऑर्नल्ड डिक्स ने उत्तरकाशी पहुंचकर सर्वे किया और वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए 2 स्पॉट फाइनल किए. मजदूरों को खाना देने के लिए 6 इंच की नई पाइपलाइन डालने में सफलता मिली.
21 नवंबर:- एंडोस्कोपी के जरिए कैमरा अंदर भेजा गया और फंसे हुए मजदूरों की तस्वीर पहली बार सामने आई. उनसे बात भी की गई. मजदूरों तक 6 इंच की नई पाइपलाइन के जरिए खाना पहुंचाने में सफलता मिली.
22 नवंबर:- मजदूरों को नाश्ता, लंच और डिनर भेजने में कामयाबी मिली. मजदूरों के बाहर निकलने के मद्देनजर 41 एंबुलेंस मंगवाई गईं. डॉक्टरों की टीम को टनल के पास तैनात किया गया. इसके अलावा चिल्यानीसौड़ में 41 बेड का हॉस्पिटल तैयार करवाया गया.
23 नवंबर:- अमेरिकी ऑगर ड्रिल मशीन से ड्रिलिंग के दौरान तेज कंपन होने से इसका प्लेटफॉर्म धंस गया. इसके बाद ड्रिलिंग अगले दिन की सुबह तक रोक दी गई.
24 नवंबर:- सुबह ड्रिलिंग का काम शुरू हुआ तो ऑगर मशीन के रास्ते में स्टील के पाइप आ गए, जिसके चलते पाइप मुड़ गया. ऑगर मशीन को भी नुकसान हुआ था, उसे भी ठीक कर लिया गया.
25 नवंबर:- शुक्रवार को ऑगर मशीन टूटने के चलते रेस्क्यू का काम शनिवार को भी रुका रहा. इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट अरनॉल्ड डिक्स ने कहा है कि अब ऑगर से ड्रिलिंग नहीं होगी, न ही दूसरी मशीन बुलाई जाएगी.
26 नवंबर:- मजदूरों को बाहर निकालने के लिए वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू हुई. वर्टिकल ड्रिलिंग के तहत पहाड़ में ऊपर से नीचे की तरफ बड़ा होल करके रास्ता बनाया जा रहा है.
27 नवंबर:- सुबह 3 बजे सिल्क्यारा की तरफ से फंसे ऑगर मशीन के 13.9 मीटर लंबे पार्ट्स निकाल लिए. देर शाम तक ऑगर मशीन का हेड भी मलबे से निकाला गया. इसके बाद रैट माइनर्स ने मैन्युअली ड्रिलिंग शुरू की. रैट माइनर्स 800MM के पाइप में घुसकर ड्रिलिंग की. ये बारी-बारी से पाइप के अंदर जाते, फिर हाथ के सहारे छोटे फावड़े से खुदाई करते थे. इस दौरान 36 मीटर वर्टिकल ड्रिलिंग भी पूरी हो गई.
28 नवंबर:- NDRF की टीम टनल के अंदर दाखिल हुई है. अभी करीब 2 मीटर की खुदाई बाकी है. लेकिन अंदर से आवाजें आ रही हैं. इसका मतलब ये है कि NDRF की टीम मजदूरों के बिल्कुल पास पहुंच गई है. टनल के अंदर एम्बुलेंस के अलावा स्ट्रेचर और गद्दे पहुंचाए गए हैं. यहां अस्पताल बना दिया गया है. रेस्क्यू के बाद मजदूरों को कुछ देर यही रखा जाएगा.
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