केदारनाथ से धराली तक... उत्तराखंड की अनसुनी चेतावनियां और पहाड़ों की बढ़ती आपदाएं, जानें असली वजह

उत्तराखंड के धराली की आपदा ने हिमालयी क्षेत्र की नाजुकता को फिर से उजागर किया है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना एक गंभीर चेतावनी है, जिसे अनदेखा किया गया तो आगे और भी बड़ी तबाही हो सकती है.

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  • उत्तराखंड में धराली की आपदा ने हिमालयी क्षेत्र की नाजुकता को फिर से उजागर कर दिया है.
  • विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक गंभीर चेतावनी है, जिसे अनदेखा करना बहुत भारी पड़ सकता है.
  • उत्तराखंड में 1,260 से अधिक बर्फीली झीलें हैं, जिनमें से 13 को उच्च जोखिम वाली झील माना गया है.
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नई दिल्ली:

टीवी पर उत्तरकाशी के धराली में हुई तबाही का मंजर देखते हुए गीता के जेहन में 12 साल पहले की तस्वीरें कौंधने लगीं. 2013 में केदारनाथ में आई आपदा ने गीता की दुनिया उजाड़ दी थी. उस दिन की मूसलाधार बारिश, वो बाढ़, वो सैलाब और परिवार के चार सदस्यों को खोने का दर्द... सब कुछ एक झटके में ताजा हो गया. दिल्ली में एक घर में काम करने वाली 45 साल की गीता धराली के दृश्य देखते ही बोल उठी- केदारनाथ में भी ऐसा ही हुआ था. उनकी आंखों में वो खौफ अब भी जिंदा है. हर बार उत्तराखंड में जब कोई आपदा आती है, तो वह दर्द एक घाव की तरह रिसने लगता है. 

गीता जैसे अनगिनत लोगों के लिए केदारनाथ में जो हुआ, वह सिर्फ एक आपदा नहीं थी. वह 2004 की सूनामी के बाद भारत की सबसे भीषण त्रासदी थी. मानसूनी बारिश और वेस्टर्न डिस्टर्बेंस का ऐसा घातक मेल, जिसने 24 घंटे में ही 300 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश कर दी थी.  चोराबारी झील का मोराइन बांध टूट गया और करीब 5,700 लोग मौत के मुंह में समा गए थे. तीन हजार से अधिक लोग अब तक लापता हैं. 

दिल्ली में नई जिंदगी की तलाश

केदारनाथ आपदा में गीता जैसे सैकड़ों लोगों ने अपना सब कुछ खो दिया था. इस दर्द को अपने दिल में समेटे गीता, नई जिंदगी की तलाश में दिल्ली आ गईं. यहां घरेलू सहायिका के रूप में काम करके जिंदगी गुजर-बसर कर रही हैं. उत्तराखंड के धराली में बादल फटने के बाद खीर गंगा नदी में अचानक आई बाढ़ से मची तबाही के मंजर ने उनकी दर्दनाक यादों के जख्म फिर से हरे कर दिए हैं.

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12 वर्षों में हिमालय की प्रमुख आपदाएं

  • 18 अगस्त 2019: उत्तरकाशी के आराकोट क्षेत्र के टिकोची और मकुडी गांवों में बादल फटने के बाद अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं में कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई और 38 गांवों के निवासी प्रभावित हुए.
  • फरवरी 2021: हैंगिंग ग्लेशियर टूटने के कारण चमोली जिले में ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक बाढ़ आ गई. दो प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएं ऋषिगंगा और तपोवन विष्णुगाड को भारी नुकसान पहुंचा. 80 शव बरामद हुए जबकि 204 लोग लापता हो गए.
  • अगस्त 2022: बादल फटने के कारण मालदेवता-सोंग-बाल्डी नदी सिस्टम में अचानक बाढ़ आ गई. इससे देहरादून के पास मालदेवता शहर का बड़ा हिस्सा बह गया. इस आपदा से 15 किमी इलाका प्रभावित हुआ.

विशेषज्ञ कहते हैं, ये आपदाएं गंभीर चेतावनी 

उत्तराखंड के धराली में आई आपदा ने एक बार फिर हिमालयी क्षेत्र की नाजुकता को उजागर कर दिया है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना सिर्फ अत्यधिक बारिश का नतीजा नहीं है. यह एक गंभीर चेतावनी है, जिसे अगर अनदेखा किया गया तो आने वाले समय में और भी बड़ी तबाही हो सकती है.

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सैटलाइट, जमीनी स्टडी से पता चलेगी असल तस्वीर

एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वाईपी सुंदरियाल कहते हैं कि धराली की आपदा बहुत हद तक 2021 की चमोली त्रासदी से मेल खाती है, जिसमें 20-22 किमी इलाका प्रभावित हुआ था. उनका कहना है कि बारिश सिर्फ एक वजह है. असली कारण का पता लगाने के लिए हाई रेजोल्यूशन वाले सैटलाइट डेटा या जमीनी अध्ययन की जरूरत है.

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2010 में बाद तेज बारिश की घटनाएं बढ़ीं

जर्नल ऑफ जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया में छपी एक स्टडी के अनुसार, 2010 के बाद उत्तराखंड में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में काफी बढ़ोतरी हुई है. प्रोफेसर सुंदरियाल ने बताया कि 1970 से 2021 तक के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि मध्य और पश्चिमी उत्तराखंड में बारिश का पैटर्न बदल गया है. राज्य का भूविज्ञान इसे आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है.

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खड़ी ढलानें, कटाव के लिहाज से संवेदनशील नाजुक संरचनाएं और मेन सेंट्रल थ्रस्ट जैसे टेक्टोनिक फॉल्ट इस इलाके को अस्थिर बनाते हैं. हिमालय का भौगोलिक प्रभाव नम हवा को ऊपर की ओर खींचता है, जिससे स्थानीय स्तर पर तेज बारिश होती है. अस्थिर ढलानें भूस्खलन और आकस्मिक बाढ़ का जोखिम बढ़ाती हैं.

34% भूस्खलन, 26% अचानक बाढ़ की घटनाएं

नवंबर 2023 में नेचुरल हजार्ड्स जर्नल में छपे एक अध्ययन में उत्तराखंड में 2020 से 2023 के बीच आई आपदाओं से जुड़े डेटा का विश्लेषण किया गया था. इस दौरान राज्य में मानसून के महीनों में 183 घटनाओं का जिक्र है. इनमें से 34.4 फीसदी घटनाएं भूस्खलन, 26.5 फीसदी आकस्मिक बाढ़ और 14 फीसदी बादल फटने की थीं.

मौसमी आपदाओं पर विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र के एटलस से पता चलता है कि जनवरी 2022 से लेकर मार्च 2025 के बीच 13 हिमालयी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में 822 दिन चरम मौसमी घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 2,863 लोगों की मौत हुई.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

विशेषज्ञों का कहना है कि मानवीय गतिविधियों ने आपदाओं का जोखिम बढ़ा दिया है. अस्थिर ढलानों या नदी तटों पर बेलगाम सड़क निर्माण, वनों की कटाई और पर्यटन इन्फ्रास्ट्रक्चर और बस्तियों के विकास से आपदाओं का खतरा कई गुना बढ़ गया है.

पर्यावरण कार्यकर्ता अनूप नौटियाल का कहना है कि केदारनाथ, चमोली, जोशीमठ, सिरोबगड, क्वारब और यमुनोत्री जैसी लगातार त्रासदियों के बाद भी उत्तराखंड की विकास नीतियों में कोई बदलाव नहीं आया है. उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य की त्रुटिपूर्ण नीतियां और परियोजनाएं अनियंत्रित विकास को बढ़ा रही हैं.  

ये खतरा अत्यधिक बारिश और भूस्खलन तक ही सीमित नहीं है. विशेषज्ञों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन से इलाके के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. उफनती झीलों के रूप में नए खतरे पैदा हो रहे हैं.

उत्तराखंड में 1,260 से अधिक बर्फीली झीलें (glacial lake) हैं. इनमें से 13 को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने उच्च जोखिम वाली हिमनद झील और पांच को बेहद खतरनाक बर्फीली झील माना है. ये झीलें निचले इलाकों के लिए बड़े जोखिम पैदा करती हैं, खासकर तब जब तापमान बढ़ने से ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं.

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने हैंगिंग ग्लेशियर और हिमनद झीलों के खतरों को लेकर बार-बार आगाह किया है. इसी तरह दक्षिण एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल के 2013 के विश्लेषण में कहा गया है कि बेलगाम पनबिजली परियोजनाओं और पहाड़ों की कटाई ने नाजुक इलाकों में जोखिम बढ़ा दिया है. सवाल ये है कि क्या सरकार कोई और आपदा आने से पहले वैज्ञानिकों की चेतावनियों और सुझावों पर ध्यान देगी?