पलायन की चौखट पर बटोली गांव, मजबूरी ऐसी कि जान हथेली पर रखकर पार कर रहे खाई, NDTV की ग्राउंड रिपोर्ट

बटोली गांव के ग्रामीणों का कहना है कि अब उनकी यह किस्मत बन गई है और मजबूरी है कि उनका गांव जाना है.

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बटोली गांव के लोगों का दर्द बयां करने के लिए तस्‍वीरें काफी है.
देहरादून:

देहरादून का एक ऐसा गांव जो पलायन करने का मजबूर है क्योंकि गांव को जाने वाले रास्ते में लैंडस्लाइड की वजह से दो से तीन किलोमीटर लंबी और गहरी खाई बन गई है. ग्रामीणों को अपनी जान जोखिम में डाल बिना किसी पुल और वैकल्पिक रास्ते से रोज गुजरना पड़ता है, पढ़ें NDTV की एक्‍सक्‍लूसिव ग्राउंड रिपोर्ट. 

जान जोखिम में डालकर आ-जा रहे लोग

तस्‍वीरें ये कहने और समझने के लिए काफी है, लेकिन बताना भी जरूरी है कि यह एक आम पहाड़ी गांव का रास्ता है. लेकिन पिछले दो-तीन सालों से बटोली के ग्रामीणों को ऐसे ही जान हथेली पर लेकर जो करना पड़ता है, लेकिन अब हालात बद से बदतर हो गए हैं. क्योंकि अब गांव जाने के लिए कोई रास्ता नहीं बचा है. पहाड़ से आए मलबे पर चढ़कर ही बिना किसी सहारे के बुजुर्ग, महिला, बच्चे, और युवाओं को रोज चढ़ना उतरना पड़ता है. अगर बारिश आ जाए तो मालवा बहुत तेजी से नीचे गिरता है. नीचे बहने वाला पानी भी बढ़ जाता है ऐसे में कोई भी बेहतर मलबे के नीचे दबकर घायल या फिर उसकी जान जा सकती है. 

राजधानी से महज 30 किमी दूर

ये गांव राजधानी से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर है. सहसपुर विधानसभा का बटोली गांव देश दुनिया से इसलिए कट गया है क्योंकि इसके पास शहर आने का रास्ता नहीं बचा है हालांकि गांव पिछले 2 साल से इस तरह के हालात देख रहा है लेकिन इस बार हालत बहुत ज्यादा खराब हो गए हैं कई ग्रामीण तो देहरादून सेलाकुई सहसपुर या फिर आसपास के कस्बों में किराए का मकान लेकर रह रहे हैं बच्चे और युवा स्कूल कॉलेज हीं जा पा रहे हैं.गर्भवती महिलाओं का अस्पतालों तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है. बीमार लोगों को भी स्वास्थ्य सुविधा कैसे मिले, यह एक बड़ी परेशानी बन गई है. इतना ही नहीं, गांव के बच्चे स्कूल कैसे जाएंगे, ये भी किसी की समझ नहीं आ रहा है.

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ना प्रशासन सुन रहा और ना जनप्रतिनिधि

ना सरकार सुन रही है ना प्रशासन और ना जनप्रतिनिधि. बटोली गांव के ग्रामीणों का कहना है कि अब उनकी यह किस्मत बन गई है और मजबूरी है कि उनका गांव जाना है. रंजोर सिंह और विनीता दोनों दंपति पिछले 5 दिनों से गांव नहीं जा पाए हैं, अब ऐसे में जब यह गांव जा रहे हैं तो उनके सामने मुश्किल यह है कि वह कैसे गांव जाएं. करीबन 100 फीट मालवे पर चढ़कर जाना मजबूरी है.

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बदकिस्‍मती कहें या मजबूरी 

विनीता के पति रंजोर के हाथ पर चोट लगी है और 6 टांके लगे हुए हैं और ऐसे ही इनको इस मलबे पर चढ़कर जाना है.  विनीता रहती है कि यह मजबूरी है और हमारी किस्मत भी है कि इस तरह से हमें जाना पड़ रहा है चाहे बारिश आए या मालवा गिरे गांव जाना है क्योंकि वहां हमारे मवेशी और हमारा घर है बच्चों को हमने दूसरे जगह पर किराए पर या फिर रिश्तेदारों के घर पर रखा है. 

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सता रहा विस्‍थापित होने का डर 

सोहन सिंह पुंडीर कहते हैं कि मुख्यमंत्री से भी मुलाकात हुई है और देहरादून के जिलाधिकारी से भी मुलाकात हुई है आश्वासन दिया गया है कि जल्द ही इसका हल निकाला जाएगा वैकल्पिक रास्ता निकाला जाएगा. लेकिन सोहन सिंह पुंडीर कहते हैं कि अगर हल नहीं निकल गया तो प्रशासन का रहा है कि आपके यहां से विस्थापित किया जाएगा या दूसरी जगह पर किराए पर मकान दिए जाएंगे, जिनका किराया प्रशासन देगा. पुंडीर कहते हैं कि हमारा खेत खलियान घर सब कुछ वहां है हम बाहर कब तक किराए पर रहेंगे और क्या काम करेंगे.

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क्‍या कहते हैं भू-वैज्ञानिक?

भू वैज्ञानिक एमपीएस बिष्ट कहते हैं कि मेन बाउंड्री थ्रस्ट (MBT) इस इलाके में बनता है. दून घाटी में उत्तर से आने वाले जल स्त्रोत पहाड़ पर गहरा कटान करते हैं. इसे हेडवर्ड इरोजन कहा जाता है. लेसर हिमालय और शिवालिक को ये क्षेत्र जोड़ता है. इस बीच गहराई से कटान करने वाली यह जल स्रोत यहां मौजूद कच्चे पहाड़ों के लिए बड़े भूस्खलन की वजह बन रहे हैं.

योजनाएं बनती है योजनाओं पर विचार भी होता है बजट भी तैयार किया जाता है, लेकिन सवाल तो यही है की योजनाएं धरातल पर क्यों नहीं उतरती है. बटौली गांव के लोग 2 साल से 150 फीट मालवा खतरे को पार करते हुए और इंतजार कर रहे हैं कि कब उनके लिए यहां पुल बने या फिर वैकल्पिक रास्ता सरकार बनाएगी तब जाकर यह सुरक्षित निकाल पाएंगे.  

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