अमेरिका में H-1बी वीजा कार्यक्रम पर बहस पहले से जारी है. इस बीच अमेरिकन प्रोफेसनल्स के एक ग्रुप ने भारतीय तकनीकी दिग्गज टाटा कंसल्टेंसी (TCS) के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं. वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्कर्स ने आरोप लगाया कि टीसीएस ने उन्हें बहुत ही शॉर्ट नोटिस पर नौकरी से निकाल दिया और उनकी जगह एच-1बी वीजा (H-1B Visa) पर भारतीयों को रख लिया. एच-1बी वीजा कार्यक्रम, अमेरिकी कंपनियों को टेक्निकल एक्सपर्ट की जरूरत वाले बिजनेस में विदेशी वर्कर्स को अपॉइंट करने की अनुमति देता है. आमतौर पर, एच-1बी वीजा धारको तीन से छह साल के लिए रोजगार मिलता हैं. अगर वे ग्रीन कार्ड के तहत स्थायी निवासी का दर्जा चाहते हैं तो रिन्यूअल की संभावना भी होती है.
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समान रोजगार अवसर आयोग (ईईओसी) में दायर शिकायतों के मुताबिक, करीब 22 अमेरिकी वर्कर्स का दावा है कि टीसीएस ने नस्ल और उम्र के आधार पर उनके साथ गैरकानूनी तरीके से भेदभाव किया है. अलग-अलग जातीय पृष्ठभूमि से आने वाले और 40 से 60 साल की उम्र के इन पूर्व कर्मचारियों का आरोप है कि टीसीएस ने शॉर्ट नोटिस पर उनका रोजगार खत्म कर दिया. उनकी जगह पर एच-1बी वीजा पर कम सैलरी वाले भारतीय प्रवासियों को काम पर रख लिया.
उम्र और नस्ल के आधार पर नौकरी से निकालने का आरोप
WSJ की रिपोर्ट में कहा गया है, "हालांकि कंपनियां अक्सर छंटनी करती हैं, जिससे ज्यादा सीनियर वर्कर्स प्रभावित होते हैं. अमेरिकी पेशेवरों का कहना है कि टीसीएस ने उम्र और नस्ल के आधार पर उन्हें निशाना बनाकर कानून तोड़ा है." रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी की पॉलिसी से अमेरिका के एक दर्जन से ज्यादा राज्यों में रहने वाले वो लोग, प्रभावित हुए हैं, जिसके पास बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर डिग्री सहित कई एडवांस डिग्रियां हैं. इन लोगों का आरोप है कि टीसीएस ने अमेरिका में उन भारतीय वर्कर्स को वरीयता दी है, जिनके पास पहले से ही एच-1बी वीजा है.
TCS की सफाई, हमने कभी भेदभाव नहीं किया
वहीं टीसीएस ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि उसने कभी भी गैरकानूनी भेदभाव नहीं किया है. कंपनी के एक प्रवक्ता ने डब्ल्यूएसजे को बताया, "टीसीएस के पास अमेरिका में समान अवसर देने वाली कंपनी होने और ईमानदारी के साथ काम करने का एक शानदार रिकॉर्ड है."
H-1B वीजा पर क्या है विवाद?
बता दें कि एच-1बी वीज़ा सिस्टम, अमेरिकी संस्थानों से एडवांस डिग्री रखने वाले आवेदकों के लिए सालाना 65,000 वीज़ा के साथ-साथ अतिरिक्त 20,000 वीज़ा जारी करता है. यह पॉलिसी सालों से विवाद का मुद्दा रही है. आलोचकों का तर्क है कि इस पॉलिसी से कंपनियों को विदेशों से सस्ते वर्कर्स का शोषण करने, संभावित रूप से अमेरिकी वर्कर्स को हटाने और कम सैलरी पर काम करने के लिए मजबूर करती है. दरअसल टेक कंपनियां, विशेष रूप से, दुनिया भर से वर्कर्स की भर्ती के लिए एच-1बी वीजा सिस्टम पर बहुत ज्यादा निर्भर करती हैं.