अमेरिकी सहायक राज्य सचिव डोनाल्ड लू ने कहा कि रूस-यूक्रेन संकट (Russia-Ukraine War) पर बाइडेन प्रशासन ने भारत से स्पष्ट रुख अपनाने का आग्रह किया है. उन्होंने ये भी कहा कि इस मामले मेंअमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और विदेश विभाग के अन्य अधिकारी भारतीय समकक्षों के साथ यूक्रेन पर बेहद गंभीर और उच्च स्तरीय वार्ता कर रहे हैं. अमेरिकी सीनेट समिति की सुनवाई में सहायक राज्य सचिव डोनाल्ड लू ने भारत के प्रति अमेरिकी नीति पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि भारत ने राजनयिक समाधान की दिशा में काम करने में भागीदार बनने के लिए किसी भी पक्ष का साथ नहीं लेने का रुख बनाए रखा हुआ है. हालांकि भारत को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए दो चीजों पर ध्यान देना है कि वह इस संघर्ष के समाधान में भागीदारी को टेबल पर ही छोड़ना चाहता है और साथ ही ये भी यूक्रेन में अभी भी 18000 से अधिक छात्र हैं और वे यूक्रेन और रूस की सरकारों के साथ काम करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि उनकी रक्षा की जा सके.
सहायक सचिव ने कहा कि हम सभी भारत से इस मामले में भारत से स्पष्ट रुख अपनाने के आग्रह के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन हमने अब तक इस मामले में भारत की ओर से परहेज ही देखा है. "भारत के साथ अमेरिकी संबंधों" पर सुनवाई में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग से दूर रहने वाले भारत की रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों अमेरिकी सांसदों ने आलोचना की. लू ने ये भी कहा कि हम सभी भारत से रूस के आक्रमण के खिलाफ एक विपरीत और एक स्पष्ट रुख अपनाने के लिए आग्रह कर रहे हैं.
लू ने ये भी कहा कि भारत ने भले ही स्थिति स्पष्ट नहीं की, लेकिन इस दिशा में भारत की ओर से कुछ विकास दिखा है. आपने कल देखा होगा कि भारत सरकार ने यूक्रेन के लिए मानवीय आपूर्ति की एक एयरलिफ्ट भेजी है. इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र के एक सत्र में भारत ने कहाकि सभी देशों को संप्रभुता और अखंडता का सम्मान करने के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर का पालन करना चाहिए, हालांकि ये रूस की आलोचना नहीं थी बल्कि रूस के संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उल्लंघन और यूक्रेन की संप्रभुता के उल्लंघन का एक बहुत स्पष्ट संदर्भ था.
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रदर्शित मतदान परिणामों से पता चला है कि 141 देसों ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा करने वाले कदम के पक्ष में मतदान किया और पांच राष्ट्र इसके खिलाफ थे, जिसमें भारत सहित 35 देशों ने इसमें भाग नहीं लिया था.