प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के सदस्य और अर्थशास्त्री संजीव सान्याल के यूपीएससी (UPSC) को लेकर दिए बयान के बाद इस पर चर्चा तेज हो गई है. संजीव सान्याल ने सिद्धार्थ अहलूवालिया के पॉडकास्ट 'द नियॉन शो' में ये कहा कि "यूपीएससी समय की बर्बादी है." उन्होंने 'पावर्टी ऑफ एस्पिरेंट्स' पर भी बात की, जिसे भारत ने दशकों से झेला है. सान्याल ने इसके लिए पश्चिम बंगाल और बिहार का भी उदाहरण दिया.
हाल ही में इस गहन विषय पर चर्चा की गई कि क्या संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की कठिन परीक्षा की तैयारी करना प्रयास के लायक है या नहीं?
मनी कंट्रोल (Money Control) की रिपोर्ट के मुताबिक संजीव सान्याल ने कहा, "जैसे बंगाल छद्म बुद्धिजीवियों और नेताओं की आकांक्षा रखता है, वैसे ही बिहार छोटे-मोटे स्थानीय गुंडों के राजनेता बनने की आकांक्षा रखता है. ऐसे माहौल में जहां वे रोल मॉडल हैं, आप या तो स्थानीय गुंडा बन सकते हैं, या फिर आपका रास्ता सिविल सेवक बनने का होगा."
ईएसी-पीएम के सदस्य और अर्थशास्त्री संजीव सान्याल के इस बयान पर कई आर्थशास्त्रियों और जानकारों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है.
यूपीएससी मेंटर और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर लिखने वाले दीपांशु सिंह संजीव सान्याल से अपनी सहमति जताते हुए इसके समर्थन में कई तर्क दिए. उन्होंने एक्स पर एक के बाद एक कई पोस्ट कर कहा कि सिविल सेवाओं को लेकर धारणाएं जो हैं उनसे वास्तविकता काफी अलग है.
वहीं मार्केटिंग और कंटेंट स्ट्रैटेजिस्ट ऋषिकेश टकसाले ने कहा कि लोअर मिडिल क्लास के लिए यूपीएससी जीवन बदलने वाला हो सकता है, क्योंकि ये उन्हें उच्च स्तर पर ले जाएगा. वहीं मध्यम वर्ग के लिए अच्छी शिक्षा के साथ, खुद कुछ बनने का मौका देता है. जबकि उच्च मध्यम वर्ग और अभिजात्य वर्ग, जिनके पास बड़े विश्वविद्यालयों में शिक्षा हासिल करने की क्षमता है, वो यूपीएससी चुनने को समय की बर्बादी समझते हैं.
अर्थशास्त्र के जानकार और रियल स्टेट पर नजर रखने वाले विशाल भार्गव ने एक्स पर पोस्ट कहा, "असहमत. यूपीएससी कई लोगों के लिए एक सपना है. किसी दूसरी नौकरी के जरिए क्या आपके पास इतनी शक्ति और इतनी कम जवाबदेही है? अधिकांश नौकरशाह छोटा व्यवसाय चलाने में सक्षम नहीं होंगे, दुनिया को बदलने की बात तो दूर की बात है."
ऊर्जा, तकनीक और बुनियादी ढांचे पर लिखने वाले रितिक भंडारी ने कहा कि, "ऐसी ईमानदारी की उम्मीद केवल एक लेटरल एंट्री नौकरशाह से ही की जा सकती है. यूपीएससी लोक में कईयों को ये कहने की हिम्मत नहीं होगी, क्योंकि वो सिस्टम पर निर्भर है."