काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानव्यापी मस्जिद में पुरातत्व विभाग की जांच के खिलाफ याचिका, जानें पूरा मामला

कोर्ट ने कहा था कि ज्ञानवापी मस्जिद में पुरातत्व विभाग से जांच कराकर यह पता लगाए कि वहां कोई मंदिर था कि नहीं और पूजा पाठ होता था या नहीं.

विज्ञापन
Read Time: 20 mins
वाराणसी:

सुन्नी वक्फ बोर्ड ने वाराणसी के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में एक रिवीजन पिटिशन दाखिल किया है. यह पिटिशन ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर बीते 9 अप्रैल को फास्ट ट्रैक कोर्ट के उस आदेश पर है, जिसमें कहा गया था कि ज्ञानवापी मस्जिद में पुरातत्व विभाग से जांच कराकर यह पता लगाए कि वहां कोई मंदिर था कि नहीं और पूजा पाठ होता था या नहीं. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने रिवीजन पिटिशन में जिला अदालत के समक्ष यह बात रखी है कि उक्त अदालत को यह निर्णय देने का अधिकार ही नहीं था और 1991 का जो एक्ट है उसके तहत भी यह नहीं आता है, लिहाजा इसे फिर से सुनवाई कर इस पर रोक लगाई जाए.जिला अदालत ने इस रिवीजन पिटिशन के लिए 9 जुलाई की तारीख मुकर्रर की है. 

गौरतलब है कि ज्ञानवापी प्रकरण में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने आदेश में पूरा बंदोबस्ती नंबर 9130 शहर खास परगना वाराणसी के अलावा नौबत थाना उसके उत्तरी गेट ज्ञानवापी गेट का जिक्र किया है. कहा गया है कि इन सभी संस्थानों को सर्वेक्षण में शामिल किया जाए. कमेटी की टीम साइट प्लान मैप सहित पूरा प्लान बारीकी से तैयार करे और वर्तमान व पूर्व ढांचे की जांच करे और देखे कि दोनों की तब क्या उम्र थी, अब क्या है, कौन-कौन से मैटेरियल पहले इस्तेमाल किए गए, अब कौन कौन सा मैटेरियल मिला है, कमेटी तय करेगी कि स्थल पर किस संप्रदाय का कौन आराधक था. वहां क्या कोई मंदिर मौजूद रहा, जो था उसकी साइज रिंग डिजाइन का भी पता करें. जरूरी होने पर उत्खनन भी करें, लेकिन एक समय पर अधिकतम 4 वर्ग फिट की खाई होनी चाहिए. स्थल पर बारीकी से हर विषय वस्तु की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी होनी चाहिए.

प्रदेश सरकार का पुरातत्व विभाग अवशेष को संरक्षित करे. उत्खनन के दौरान नमाज की जा रही हो तो उसमें व्यवधान न किया जाए. यदि नमाज स्थल पर उत्खनन जरूरी है तो पहले बातचीत कर विकल्प निकाल कर अवगत कराएं. कोर्ट ने आदेश दिया है कि सर्वेक्षण के दौरान मीडिया या आमजन को जाने पर रोक रहेगी. कमेटी को भी हिदायत दी गई है कि वह किसी प्रकार का विषय मीडिया को ब्रीफ न करें.

Advertisement

ज्ञानवापी प्रकरण में यह भी कहा गया कि 100 वर्ष तक 1669 से 1780 तक मंदिर का अस्तित्व ही नहीं रहा. बीएचयू के प्राचीन इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष ए एस अल्टेकर ने बनारस के इतिहास में लिखा है कि प्राचीन विश्वनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग 100 फीट का था, अरघा भी 100 फीट का बताया गया, लिंग पर गंगाजल बराबर गिरता रहा, जिसे पत्थर से ढक दिया गय. यहां श्रृंगार गौरी की पूजा अर्चना होती है. तहखाना यथावत है, यह खुदाई से स्पष्ट हो जाएगा.

Advertisement

उधर विपक्षी गण अंजुमन इंतजाम या मस्जिद के अधिवक्ता रईस अहमद अंसारी मुमताज अहमद और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के अभय यादव व तौफीक खान ने पक्ष रखा जब मंदिर तोड़ा गया तब ज्योतिर्लिंग उसी स्थान पर मौजूद था, जो आज भी है. उसी दौरान राजा अकबर के वित्त मंत्री टोडरमल की मदद से स्वामीनारायण भट्ट ने मंदिर बनवाया था, जो उसी ज्योतिर्लिंग पर बना है. ऐसे में ढांचे के नीचे दूसरा शिवलिंग कैसे आया. ऐसे में खुदाई नहीं होनी चाहिए.

Advertisement
Featured Video Of The Day
US Elections: भारत के मामलों में Kamala Harris ज्यादा दखल देंगी या Donald Trump? | Khabron Ki Khabar
Topics mentioned in this article