साल 2015 के चर्चित बिसहाड़ा कांड (अखलाक मॉब लिंचिंग) मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए मुकदमा वापस लेने के लिए अदालत में अर्जी लगाई है. गौतमबुद्धनगर के अपर सत्र न्यायाधीश त्वरित न्यायालय प्रथम में विचाराधीन इस मामले में, सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) ने राज्यपाल की मंजूरी और शासन के आदेश के बाद यह प्रार्थना पत्र दिया है.
सामाजिक सद्भाव का दिया गया हवाला
अर्ज़ी में कहा गया है कि यह निर्णय सामाजिक सद्भाव की बहाली को देखते हुए लिया गया है. कोर्ट में दिए गए पत्र में कहा गया है कि वादी और आरोपी सभी एक ही गांव के निवासी हैं. पत्र में यह भी बताया गया है कि चश्मदीद गवाहों के बयानों में आरोपियों की संख्या में बदलाव आया है और सभी भारतीय नागरिकों को संविधान का संरक्षण प्राप्त है. यह कार्रवाई दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-321 के तहत की गई है, जिसके लिए उत्तर प्रदेश शासन के न्याय अनुभाग-5 द्वारा 26 अगस्त 2025 को शासनादेश जारी किया गया था.
वकील ने किया कड़ा विरोध
अखलाक के वकील युसूफ सैफी ने सरकार की इस अर्जी का कड़ा विरोध किया है. उन्होंने कहा कि सरकार ऐसे केस को कभी वापस नहीं ले सकती जिसमें एक व्यक्ति की हत्या और मॉब लिंचिंग हुई हो. उन्होंने तर्क दिया कि मामले में चश्मदीद गवाह, साक्ष्य और गवाही चल रही है, अखलाक की बेटी शाहिस्ता का बयान भी दर्ज हो चुका है और उनका बेटा दानिश मरणासन्न हालत में छोड़ दिया गया था. वकील ने कहा कि वे अपना पक्ष मजबूती से रखेंगे और अंतिम फैसला माननीय न्यायालय द्वारा ही लिया जाएगा.
इस मामले में 28 सितंबर 2015 की रात गोमांस खाने की अफवाह के बाद अखलाक की हत्या कर दी गई थी. पुलिस ने विवेचना के बाद 18 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था, जो फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. घटनास्थल से बरामद मांस की मथुरा लैब की रिपोर्ट में उसे गोवंशीय मांस पाया गया था.














