उत्तर प्रदेश बीजेपी में पिछड़ों का चेहरा माने जाने वाले केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) मौजूदा योगी सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं. 2017 में यूपी बीजेपी की कमान मौर्य के हाथों में ही थी. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जीत दिलाने में उनकी अहम भूमिका रही. चुनाव नतीजों के बाद मुख्यमंत्री की रेस में उनका नाम सबसे आगे माना जा रहा था. हालांकि, पार्टी हाईकमान ने योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को देश के सबसे बड़े सूबे की कमान सौंपी. यूपी सरकार में दूसरे नंबर का कद रखने वाले मौर्य पर ज्यादा से ज्यादा ओबीसी वोटरों को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी होगी.
बीजेपी की नजर गैर-यादव वोटबैंक पर है. पिछले विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने अच्छी खासी संख्या में ओबीसी उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था. जानकारों का मानना है कि बीजेपी की रणनीति इस बार भी कुछ इसी तरह रहेगी. ऐसे में केशव प्रसाद मौर्य पार्टी की चुनावी जीत में एक बार फिर अहम रोल निभा सकते हैं.
बीजेपी में केशव प्रसाद मौर्य का राजनीतिक जीवन 2012 में शुरू हुआ. 2012 में सिराथू विधानसभा सीट से वह विधायक बने. इसके बाद सांसद बने. विधानसभा चुनाव 2017 से पहले मौर्य को यूपी बीजेपी के प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह ही मौर्य भी बचपन में चाय बेचते थे.
कौशाम्बी के सिराथू में किसान परिवार में पैदा हुए केशव प्रसाद मौर्य के बारे में कहा जाता है कि उन्होने संघर्ष के दौर में पढ़ाई के लिए अखबार बेचे और चाय की दुकान की. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) नेता स्वर्गीय अशोक सिंघल के क़रीबी रहे हैं. उन्होंने 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने सिराथू विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर किस्मत आजमाई और जीत दर्ज की.
दो साल तक विधायक रहने के बाद 2014 लोकसभा चुनाव में पहली बार फूलपुर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीतकर लोकसभा पहुंच गए. 2014 में सांसद बनने के बाद केशव प्रसाद मौर्य का कद पार्टी में काफी बढ़ गया और 2016 में उन्हें भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. बीजेपी में उनका राजनीतिक सफर भले ही बहुत ज्यादा लंबा नहीं हुआ है, लेकिन राजनीतिक करियर शुरू करने से पहले वो विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल में करीब 18 साल तक प्रचारक रहे हैं.