उन्नाव रेप केस में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर रोक, सुप्रीम कोर्ट से कुलदीप सेंगर को कोई राहत नहीं

सीबीआई ने दिल्ली हाई कोर्ट के 23 दिसंबर के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है, जिसमें सेंगर की अपील पेंडिंग रहने तक सजा सस्पेंड करने की अर्जी मंजूर की गई थी.

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  • सुप्रीम कोर्ट ने उन्नाव रेप केस में बीजेपी नेता कुलदीप सिंह सेंगर की जमानत पर हाई कोर्ट के आदेश को रोक लगाई
  • सीबीआई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सेंगर को नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई तीन जजों की बेंच कर रही है
  • SG तुषार मेहता ने कहा कि सेंगर नाबालिग के साथ रेप और हत्या के मामले में दोषी है और गलत फैसला दिया
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नई दिल्ली:

उन्नाव रेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता को बड़ी राहत देते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच सीबीआई की उस याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसने उन्नाव रेप केस में भारतीय जनता पार्टी से निकाले गए नेता कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा को सस्पेंड करते हुए जमानत दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें 2017 के उन्नाव रेप केस में एक नाबालिग लड़की के साथ रेप के मामले में बीजेपी से निकाले गए नेता कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सज़ा को सस्पेंड कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ CBI की अपील पर सेंगर को नोटिस भी जारी किया है.

हम हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के इच्छुक

तुषार मेहता ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की. उन्होंने कहा, “हम बच्ची के प्रति जवाबदेह हैं.” मेहता ने यह भी बताया कि सेंगर न केवल रेप का दोषी है, बल्कि पीड़िता के पिता की हत्या और अन्य लोगों पर हमले का भी दोषी ठहराया गया है. मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि फिलहाल हम हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के इच्छुक हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि आमतौर पर नियम यह है कि अगर व्यक्ति जेल से बाहर है तो कोर्ट उसकी आज़ादी नहीं छीनता, लेकिन इस मामले में स्थिति अलग है क्योंकि सेंगर दूसरे केस में अभी भी जेल में है.

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सेंगर के वकील ने अदालत में कहा कि दूसरा पक्ष नेशनल मीडिया के जरिए जजों पर आरोप लगा रहा है और यहां तक कि यह भी कहा जा रहा है कि जज पैसे ले रहे हैं. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम जानते हैं कि जज आइवरी टावर में नहीं रहते. यह ऐसा मामला है जिसमें लोग राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करेंगे.

SC के फैसले पर पीड़िता पक्ष के वकील ने क्या कहा

पीड़ित पक्ष के वकील हेमंत कुमार मौर्या ने कहा कि मैं सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद करना चाहता हूं. पीड़ित परिवार को लग रहा था कि अगर आरोपी रिहा हो गया, तो उसका गैंग उसके परिवार के बाकी सदस्यों को मार देगा. मैं पीड़ित के चाचा का वकील हूं. उनके चाचा को आर्थिक रूप से बर्बाद करने का दबाव बनाया जा रहा है. उनके परिवार के एक नाबालिग सदस्य को स्कूल से निकाल दिया गया है और अब उसे किसी भी स्कूल में एडमिशन नहीं मिल रहा है.

पॉक्सो में ‘पब्लिक सर्वेंट' की परिभाषा साफ नहीं

तुषार मेहता ने कहा कि सेंगर एक बेहद प्रभावशाली विधायक थे और उन्नाव रेप केस में हाई कोर्ट ने गंभीर गलती की है. मेहता ने तर्क दिया कि पॉक्सो एक्ट में ‘पब्लिक सर्वेंट' की परिभाषा स्पष्ट रूप से नहीं दी गई है, लेकिन इसे IPC के तहत परिभाषित किया जाता है. उन्होंने कहा कि किसी भी कानून में शब्दों की परिभाषा मैकेनिकल तरीके से नहीं की जा सकती, बल्कि संदर्भ के आधार पर देखना होगा. उनके अनुसार, पब्लिक सर्वेंट का मतलब वह व्यक्ति होगा जो बच्चे पर हावी स्थिति में हो.

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मुख्य न्यायाधीश ने इस पर कहा कि पब्लिक सर्वेंट को व्यापक अर्थ में देखा जाना चाहिए, जब तक संदर्भ कुछ और न कहे. SG मेहता ने आगे कहा कि जब पीड़ित नाबालिग हो, तो यह मायने नहीं रखता कि अपराध करने वाला पब्लिक सर्वेंट है या नहीं. उन्होंने हाई कोर्ट के निष्कर्ष को गलत बताते हुए कहा कि एक विधायक पॉक्सो एक्ट की धारा 5(c) के तहत ‘पब्लिक सर्वेंट' की श्रेणी में आता है.

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सीबीआई की क्या दलील

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि HC ने यह कहकर गलती की कि जब अपराध हुआ था, तब विधायक सेंगर एक पब्लिक सर्वेंट नहीं थे, जिन पर ज़्यादा गंभीर "गंभीर पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट" के लिए मुकदमा चलाया जाए. POCSO प्रावधान कहता है कि जब पुलिस अधिकारी, सशस्त्र बल, पब्लिक सर्वेंट, या शिक्षण संस्थानों/अस्पतालों के कर्मचारियों जैसे खास व्यक्तियों द्वारा पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट किया जाता है, तो अपराध गंभीर हो जाता है, जिससे कड़ी सज़ा मिलती है.

ये डरावना मामला...

सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दलील पेश करते हुए कह रहे हैं कि ये डरावनी घटना है. ट्रायल कोर्ट ने सेंगर की दोषसिद्धि दो काउंट के आधार पर की थी. बियांड रिसनेबल डाउट के तहत दोषी ठहराया गया. हाई कोर्ट ने गलत फैसला दिया है कि तब के MLA सेक्शन 5(c) POCSO के तहत "सरकारी कर्मचारी" नहीं हैं. CBI ने उस फैसले का हवाला दिया जिसमें SC ने फैसला सुनाया था कि जो भी पब्लिक ऑफिस में है, जैसे MP या MLA, उसे सरकारी कर्मचारी माना जाएगा.

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सीजेआई ने क्या कहा

CJI ने SG मेहता से पूछा कि क्या आपका तर्क यह है कि अगर पीड़ित नाबालिग है तो आरोपी सरकारी कर्मचारी है या नहीं, यह बात मायने नहीं रखती?  SG ने कहा कि HC ने यह कहकर गलती की कि जब अपराध हुआ था, तब विधायक सेंगर एक पब्लिक सर्वेंट नहीं थे, जिन पर ज़्यादा गंभीर "गंभीर पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट" के लिए मुकदमा चलाया जाए. POCSO प्रावधान कहता है कि जब पुलिस अधिकारी, सशस्त्र बल, पब्लिक सर्वेंट, या शिक्षण संस्थानों/अस्पतालों के कर्मचारियों जैसे खास व्यक्तियों द्वारा पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट किया जाता है, तो अपराध गंभीर हो जाता है, जिससे कड़ी सज़ा मिलती है.

सज़ा के खिलाफ अपील हाईकोर्ट में पेंडिंग

SG तुषार मेहता ने कहा इसमें IPC की धारा 376 और POCSO एक्ट की धारा 5 और 6 के तहत आरोप तय किए गए थे. इसमें कोई संदेह नहीं कि सेंगर को रेप मामले में दोषी ठहराया गया. कोर्ट ने POCSO के सेक्शन 5 के तहत भी दोषी माना था. एक फाइंडिंग रिकॉर्ड की गई है जिसमें कहा गया है कि बच्ची 16 साल से कम उम्र की थी और 15 साल 10 महीने की थी. इस सज़ा के खिलाफ अपील हाईकोर्ट में पेंडिंग है.

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SG ने कहा कि 376 के दो हिस्से हैं, उसे रेप के तहत दोषी ठहराया गया हैजो कि 375 है. फिर किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा रेप जो प्रभावशाली स्थिति में हो तो कम से कम सज़ा 20 साल है या उम्रकैद तक बढ़ सकती है. CJI ने कहा कि आप कहते हैं कि यह 376(2)(i) के तहत आता है. यह मानते हुए कि पीड़ित नाबालिग नहीं है. तब भी 376 की न्यूनतम सज़ा लागू होगी.