करीब तीन सप्ताह से समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के मुद्दे को लेकर देश की उस विविधता के बारे में बहस छिड़ी हुई है जो कि न केवल यहां के लोगों के बीच बल्कि यहां के कानूनों में भी मौजूद है.
यूसीसी को लेकर जबरदस्त प्रतिक्रियाओं के चलते लॉ कमीशन ने शुक्रवार को यूसीसी पर आम लोगों के प्रविष्टियां देने की समय सीमा 28 जुलाई तक बढ़ा दी. सूत्रों ने NDTV को बताया कि अब तक लॉ कमीशन को ईमेल के जरिए 27 लाख से अधिक प्रतिक्रियाएं मिली हैं. अब लॉ कमीशन की ओर से देशव्यापी सार्वजनिक राय लेना शुरू करने और इस मुद्दे पर नागरिकों के साथ एक विस्तृत प्रश्नावली साझा किए जाने की संभावना है.
देश में विरासत, गोद लेना, विवाह और तलाक जैसे कानूनों के अस्तित्व में रहने का एक लंबा इतिहास रहा है. यह बड़े पैमाने पर पर्सनल लॉ के तहत बने रहे हैं. यहां तक कि कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दल भी यूसीसी को लेकर उत्तराधिकार की समानता जैसे पर्सनल लॉ में सुधारों का विरोध नहीं करने में सावधानी बरत रहे हैं. लेकिन उनका यह निश्चित रूप से विचार है कि यूसीसी मुसलमानों की सांस्कृतिक पहचान और पारंपरिक विविधता पर हमला हो सकता है.
जब एकरूपता की बात आती है तो उत्तराधिकार एक महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में सामने आता है. भारत में विरासत के संबंध में महिलाओं के अधिकार उनके धर्म के आधार पर अलग-अलग हैं. भारतीय परिवारों में विरासत या उत्तराधिकार वैसे भी एक भावनात्मक मामला है.
संपत्ति के अधिकारों को लेकर समुदायों के अपने मानदंड
प्रत्येक धर्म अपनी संपत्ति के हस्तांतरण के लिए अपने पर्सनल लॉ का पालन करता है. न केवल विभिन्न धार्मिक समूह बल्कि उपसमूहों के भी संपत्ति के अधिकारों को लेकर अपने स्वयं के स्थानीय रीति-रिवाज और मानदंड हैं. हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन संपत्ति के एक कोड (संहिता) का पालन करते हैं, जिसे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत संहिताबद्ध किया गया है. ईसाई एक अन्य कोड का पालन करते हैं और मुसलमानों ने अपने संपत्ति अधिकारों को संहिताबद्ध नहीं किया है.
विशेषज्ञों का कहना है कि, हिंदू महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत अपने माता-पिता से हिंदू पुरुषों के समान ही संपत्ति हासिल करने का अधिकार है, लेकिन कार्यान्वयन अलग-अलग है. खास तौर पर जब कृषि भूमि की बात आती है, तो माता-पिता की संपत्ति में महिलाओं के लिए समान हिस्सेदारी को लागू करने के लिए देश की अदालतों ने भी कई बार हस्तक्षेप किया है. इसमें बहुत कुछ सामाजिक मानदंडों से जुड़ा है जिसके कारण कई महिलाएं तो संपत्ति के अधिकार का दावा ही नहीं करती हैं.
मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम महिलाएं बच्चों की मौजूदगी के आधार पर अपने पति की संपत्ति में हिस्सा पाने की हकदार हैं, लेकिन बेटियों को बेटों की तुलना में कम हिस्सा मिलता है. अब यूसीसी का लक्ष्य ऐसे सभी पहलुओं के संबंध में सभी भारतीय नागरिकों के लिए, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, एक समान कानूनी ढांचा लागू करना है.
विविध कानूनों के बीच यूनिफाइड कोड बनाने की चुनौती
टैक्सेशन एक्सपर्ट और taxaaram.com के संस्थापक डायरेक्टर मयंक मोहनका ने NDTV को बताया कि जब उत्तराधिकार की बात आती है, तो यूसीसी तैयार करने वालों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है उत्तराधिकार की ऐसी विविधता और विविध कानूनों के लिए यूनिफाइड कोड बनाना, जो अपने भीतर संबंधित पर्सनल लॉ की पवित्रता को भी समाहित करता हो.
उन्होंने बताया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति संपत्ति छोड़कर जाता है, तो वह मुख्य रूप से उसके प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों (विधवा, बच्चे और मां) को समान हिस्से में दी जाती है. उनकी गैरमौजूदगी में द्वितीय श्रेणी के उत्तराधिकारी (पिता, पोते, परपोते, भाई, बहन और अन्य रिश्तेदार) संपत्ति पर दावा कर सकते हैं. लेकिन यह नियम तब बदल जाते हैं, जब संपत्ति की मालिक एक हिंदू महिला होती है. जब वह बिना वसीयत के मर जाती है, तो संपत्ति उसके पति और बच्चों को समान अनुपात में मिलती है. उन्होंने कहा, यदि उनमें से कोई भी मौजूद नहीं है, तो संपत्ति उसके पति के उत्तराधिकारियों के पास चली जाएगी और उसके बाद ही यह उसके माता-पिता के पास जाएगी.
उत्तराखंड में एक पैनल जल्द ही अपना यूसीसी ड्रॉफ्ट सरकार को सौंपेगा. उसका कहना है कि विरासत सहित सभी कानूनों में लैंगिक समानता एक टॉप फोकस एरिया है.
उत्तराधिकार की स्थापित व्यवस्थाएं पर्सनल लॉ के तहत आती हैं लेकिन वे भारतीय कानूनों के विपरीत हैं, इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यूसीसी आईटी एक्ट और जीएसटी एक्ट जैसे कानूनों में भी बदलाव लाएगा.
हिंदू अविभाजित परिवारों की कानूनी स्थिति को लेकर सवाल
हितधारकों और विशेषज्ञों के बीच एक और चिंता उभरने का कारण हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की कानूनी स्थिति है. आईटी एक्ट एक एचयूएफ को एक अलग कानूनी 'व्यक्ति' का दर्जा देता है, जो इसे कई कर लाभों और गृह ऋण और चिकित्सा बीमा प्रीमियम में भी हकदार बनाता है. सरल शब्दों में कहा जाए तो, एक एचयूएफ आय के लिए अपना खुद का व्यवसाय चला सकता है और उन सभी लागू छूटों और कटौतियों का दावा कर सकता है जिसका एक व्यक्ति हकदार होता है. एचयूएफ लंबे समय से अस्तित्व में है. एचयूएफ के पीछे का विचार व्यक्तिगत हित पर संयुक्त परिवार के हित को प्रोत्साहित करना रहा है .
बहुत सारे लोगों के मन में एक सवाल यह है कि यदि यूसीसी लागू किया जाता है, तो क्या एचयूएफ का अलग 'व्यक्ति' का स्टेटस जारी नहीं रहेगी? यह वर्तमान में भारत में अपनी आय का रिटर्न दाखिल करने वाले और लाभ उठाने वाले लाखों एचयूएफ को विभिन्न कर कटौती और छूट के मामले में कैसे प्रभावित करेगा?
मोहनका के अनुसार, हमारे देश में आयकर कानून के जायज चार कॉर्नर के भीतर किसी के करों को ऑप्टिमाइज करने के लिए एचयूएफ के निर्माण को हमेशा टैक्स प्लानिंग के बुनियादी और प्रभावी उपकरणों में से एक माना गया है.
आदिवासी समुदायों में भी उत्तराधिकार को प्रभावित कर सकता है यूसीसी
समान नागरिक संहिता आदिवासी समुदायों में भी उत्तराधिकार को प्रभावित कर सकती है. कई जनजातीय समुदायों में संपत्ति के उत्तराधिकार के लिए प्रथागत कानून और प्रथाएं हैं, कभी-कभी संपत्ति सबसे बड़े बेटे के पास जाती है, और अक्सर सबसे छोटी बेटी के पास जाती है.
संथाल समुदायों और झारखंड व उत्तर पूर्व के कई आदिवासी समुदायों ने खुले तौर पर बयान जारी कर कहा है कि यूसीसी उनके समाज में गड़बड़ी पैदा कर सकता है, जिसमें उत्तराधिकार के विभिन्न मानदंड हैं.
स्वास्थ्य राज्यमंत्री एसपी बघेल सहित सरकार की ओर से कई लोगों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यूसीसी देश के आदिवासी समुदायों के अधिकारों को नहीं छुएगा. हालांकि, विवाद के अन्य मुद्दों पर स्पष्टता के लिए हमें मसौदे की प्रतीक्षा करनी होगी.