एक तरफ एनडीए को टक्कर देने के लिए विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ कुछ पार्टियां अपनी अंदरूनी कलह से उबर नहीं पा रही हैं. हरियाणा में 9 सालों से कमज़ोर पड़े कांग्रेस के संगठन को फिर से खड़ा करने की कोशिश, गुटबाजी का शिकार होती नजर आ रही है. भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट और कुमारी शैलजा तथा रणदीप सुरजेवाला गुट आमने-सामने हैं. करनाल में दोनों गुटों के कार्यकर्ता एक दूसरे के खिलाफ नारेबाजी करते दिखे. पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तक इसकी शिकायत की गई है.
करनाल में राज्य पर्यवेक्षक की मौजूदगी में जिला कांग्रेस की बैठक चल रही थी. इसमें हुड्डा समर्थकों की शैलजा और सुरजेवाला समर्थकों के बीच हाथापाई शुरू हो गई.
अगले साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव
हरियाणा में अगले साल चुनाव होने हैं और उससे पहले कांग्रेस अपना संगठन मज़बूत करने की कोशिश में है. राज्य कांग्रेस प्रभारी दीपक बावरिया ने पर्यवेक्षक भेजे, जिससे जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में मदद मिले, लेकिन ज्यादातर जिलों में अध्यक्ष कौन हो, इस सवाल पर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा समर्थकों से शैलजा और सुरजेवाला के समर्थकों में भिड़ंत हो रही है. बात इतनी बढ़ गई कि शैलजा और सुरजेवाला शिकायत लेकर कांग्रेस अध्यक्ष के पास पहुंच गए.
दरअसल हुड्डा विरोधी खेमे को लगता है कि प्रदेश की पूरी कमान भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेन्द्र सिंह हुड्डा के हाथों में सौंप दी गई है. प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर जब उदयभान की नियुक्ति हुई तब भी यही माना गया, क्योंकि उदयभान हुड्डा के क़रीबी हैं. अब ज़िलाध्यक्षों की नियुक्ति में हुडा के क़रीबियों को तरज़ीह सैलजा और सुरजेवाला को रास नहीं आ रही है.
हरियाणा में सालों से कांग्रेस का संगठन कमज़ोर हालत में है. पिछले कई प्रदेश अध्यक्षों के कार्यकाल में इसे मज़बूती देने का काम नहीं हुआ. प्रदेश कांग्रेस में हुड्डा का दबदबा रहा है, लेकिन अब जबकि ज़िला स्तर पर संगठन के पुनर्गठन की कोशिश हो रही है तो सैलजा और सुरजेवाला भी उसमें अपना असर चाहते हैं.
सुरजेवाला के मुकाबले हुड्डा की कार्यकर्ताओं पर मजबूत पकड़
दरअसल कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला, कुमारी शैलजा के साथ मिलकर प्रदेश में पार्टी पर अपना दबदबा चाहते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर वो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की लोकप्रियता और कार्यकर्ताओं में पकड़ रखने के मामले में पिछड़ जाते हैं. लगभग चार साल पहले जींद विधानसभा में हुए उपचुनाव में भी सुरजेवाला बुरी तरह हार गए थे, वो तीसरे नंबर पर रहे थे. हालांकि उन्हें राहुल गांधी का बेहद करीबी माना जाता रहा है.