'अपने खेत में एक एकड़, एक कोने में नैचुरल फार्मिंग करके देखें', पीएम मोदी की किसानों से अपील

इस मिशन से अब तक लाखों किसान जुड़ चुके हैं. तमिलनाडु में करीब 35 हजार हेक्टेयर ज़मीन पर ऑर्गैनिक और नैचुरल फार्मिंग हो रही है.

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"मैं देशभर के मेरे किसान भाई-बहनों को, तमिलनाडु के मेरे किसान साथियों से कहूंगा, कि आप "वन एकड़, वन सीज़न" से शुरुआत करें. यानी आप एक सीज़न में एक एकड़ भूमि पर, अपने खेत में एक एकड़, एक कोने में नैचुरल फार्मिंग करके देखें. वहां से जो नतीजे मिलेंगे, उनके आधार पर आप दूसरे साल और ज्यादा करें, तीसरे साल और ज्यादा करें और आप आगे बढ़ें", प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के कोयंबटूर में दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि शिखर सम्मेलन में ये अहम बात कही.

प्रधानमंत्री ने किसानों को आगाह किया कि पिछले कुछ साल से खेतों में केमिकल्स का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. केमिकल फर्टिलाइज़र्स और कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल की वजह से मिट्टी की उर्वरता गिर रही है, मिट्टी की नमी पर असर पड़ रहा है, और इसकी वजह से खेती पर खर्च भी हर साल बढ़ता जा रहा है. इसका समाधान फसलों के विविधीकरण और प्राकृतिक खेती से ही संभव है.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा,

"हमारी मिट्टी की उर्वरता और फसलें में पोषण पुनरुद्धार के लिए, हमें नैचुरल फार्मिंग के रास्ते पर बढ़ना ही होगा. ये हमारा विजन भी है और हमारी जरूरत भी है. तभी जाकर, हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए, अपनी जैव विविधता को संरक्षित रख पाएंगे. नैचुरल खेती हमें क्लाइमेट चेंज, मौसम में हो रहे बदलाव का सामना करने में मदद करती है. ये हमारी मिट्टी की सेहत को स्वस्थ रख सकती है. और इससे लोगों को नुकसान करने वाले केमिकल्स से भी बचाया जा सकता है".

एक साल पहले भारत सरकार ने किसानों को नैचुरल फार्मिंग के लिए प्रोत्साहित करने के लिए National Mission On Natural Farming की शुरुआत की थी.

इस मिशन से अब तक लाखों किसान जुड़ चुके हैं. तमिलनाडु में करीब 35 हजार हेक्टेयर ज़मीन पर ऑर्गैनिक और नैचुरल फार्मिंग हो रही है.

नेचुरल फार्मिंग को "स्वदेशी सोच" बताते हुए पीएम मोदी ने किसानों से कहा,

"नैचुरल फार्मिंग, भारत का अपना स्वदेशी विचार है. ये हमने कहीं से इंपोर्ट नहीं किया है. यानी ये हमारी ट्रेडिशन से जन्मा है, हमारे पूवर्जों ने तपस्या करके इसको तैयार किया है, और ये हमारे पर्यावरण के अनुकूल है. मुझे खुशी है कि दक्षिण भारत के किसान, प्राकृतिक खेती की परंपराओं जैसे, पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत, आच्छादन आदि को निरंतर अपनाए हुए हैं. ये परंपराएं मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर रखती हैं, फसलों को केमिकल मुक्त रखती हैं, और इनपुट कॉस्ट बहुत कम कर देती हैं".

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