पांच दिन में 3 लाख से ज्यादा पेड़ों की छंटाई... : इन तैयारियों की वजह से बिपरजॉय नहीं मचा सका तबाही

नौ जिलों में नौ मंत्रियों और नौ नौकरशाहों को युद्धस्तर पर राहत और बचाव के लिए तैयारियों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी

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कच्छ में चक्रवात बिपरजॉय के कारण आई बाढ़ के कारण बड़ी संख्या में घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं.
नई दिल्ली:

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)और ज्वाइंट टायफून वार्निंग सेंटर (JTWC) के अनुसार, अरब सागर में सबसे मजबूत चक्रवात बिपरजॉय 125 से 135 किलोमीटर प्रति घंटे से लेकर 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बुधवार को गुजरात में भीषण लैंडफॉल के लिए तैयार था. इसके आगे बढ़ने के साथ होने वाली तबाही की आशंका को लेकर केंद्र और राज्य सचेत थे. जून 1998 में गुजरात में आए विनाशकारी चक्रवात की यादें अभी भी कई लोगों के दिमाग में ताजा हैं. इसमें 10,000 लोग मारे गए थे और कांडला बंदरगाह पूरी तरह तबाह हो गया था.

यही कारण है कि एक सप्ताह पहले से कम से कम नौ मंत्रियों और नौ नौकरशाहों को शामिल करते हुए समन्वित प्रयास शुरू कर दिए किए थे. कोशिश थी कि कम से कम नौ उच्च जोखिम वाले जिलों से कम से कम एक लाख लोगों की निकासी, उनकी सुरक्षा और उनके लिए आवश्यक चीजें उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जा सके. कच्छ और अन्य तटीय इलाकों में मवेशियों की सुरक्षा भी महत्वपूर्ण थी. इसके अलावा ट्रांसमिशन और कम्युनिकेशन लाइनों की बहाली भी जरूरी थी.

विशेषज्ञों के अनुसार  सैटेलाइट युग (1982 के बाद से) अरब सागर में प्री-मॉनसून सीजन के दौरान चक्रवात बिपरजॉय चौथा सबसे लंबे समय तक रहने वाला चक्रवात है. सभी प्रयास "शून्य मौतों" के लक्ष्य के आसपास केंद्रित थे. चक्रवात को लेकर सटीक भविष्यवाणियों और शुरुआती तैयारियों के लिए श्रेय गुजरात सरकार को दिया गया है. उसकी तैयारियों के कारण कोई मौत नहीं हुई. खासकर इस स्तर के चक्रवात के दौरान किसी के हताहत नहीं होने का रिकॉर्ड राज्य और केंद्र के लिए एक उपलब्धि है.

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पीएम नरेंद्र मोदी ने रविवार को सुबह अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में इसका जिक्र किया. उन्होंने कहा कि विगत वर्षों में भारत ने आपदा प्रबंधन की जो ताकत विकसित की है, वह आज मिसाल बन रही है. कच्छ में चक्रवात बिपरजॉय ने जो तबाही मचाई, उसका सामना राज्य के लोगों ने पूरे साहस और तत्परता से किया और सफलता के साथ इससे बाहर निकलेंगे.

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आईएमडी की चक्रवात को लेकर भविष्यवाणी आते ही तैयारी शुरू हो गई थी और 11 जून को गुजरात सरकार ने प्रत्येक जिले में राज्य के एक मंत्री को जिम्मेदारी दे दी थी. चक्रवात के अत्यंत गंभीर होने की जानकारी स्पष्ट होने के साथ ही केंद्रीय मंत्रियों को सौराष्ट्र के गिर-सोमनाथ, पोरबंदर, जूनागढ़, जामनगर और कच्छ जिलों और उसके आसपास के सबसे अधिक प्रभावित इलाकों में भेज दिया गया था.

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स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया को सबसे अधिक प्रभावित कच्छ भेजा गया, जबकि मत्स्य और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला को द्वारका में भेजा गया. आईटी राज्यमंत्री देवसिंह चौहान को जामनगर भेजा गया. रेलवे राज्यमंत्री दर्शना जरदोश को पोरबंदर और राज्य मंत्री ने महिला एवं बाल विकास महेंद्र मुंजपारा को गिर-सोमनाथ भेजा गया था.

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प्रधानमंत्री ने खुद तैयारियों का जायजा लिया और कई बार सीएम भूपेंद्र पटेल से भी बात की ताकि न सिर्फ लोगों बल्कि मवेशियों और गिर के शेरों की भी सुरक्षा की तैयारियां सुनिश्चित की जा सकें. मांडविया उन मंत्रियों में भी शामिल थे, जिन्हें ओडिशा में ट्रिपल ट्रेन त्रासदी के बाद राहत और बचाव कार्य की देखरेख के लिए बालासोर भेजा गया था. इस हादसे में 175 लोगों की मौत हुई थी. उन्हें विशेष रूप से शवों का संरक्षण सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी दी गई थी, क्योंकि मृतकों के रिश्तेदारों को शवों को दूर-दराज के क्षेत्रों तक लेने के लिए यात्रा करने में काफी समय लगना था.

मंत्रियों को सौंपी गई तत्काल जरूरी कार्यों की जिम्मेदारी

जिला प्रशासन से शेल्टर होम चिन्हित करने को कहना, प्रभावित होने वाले इलाकों से एक लाख से अधिक लोगों की निकासी सुनिश्चित करना, आश्रय घरों में भोजन, पानी, दूध पाउडर, दवाइयां और यहां तक कि पालने जैसी जरूरी चीजों की व्यवस्था करना, 4317 होर्डिंग्स को हटाना और 3,37,890 पेड़ों की छंटाई करवाना ताकि उनके कारण होने वाली क्षति कम से कम हो, राज्य भर में एनडीआरएफ की 19 और एसडीआरएफ की 13 टीमों की तैनाती करना, जखाऊ, मूंदड़ा, कांडला और मांडवी बंदरगाहों की सुरक्षा, जो कि आर्थिक गतिविधियों और आवश्यक वस्तुओं के परिवहन के लिए महत्वपूर्ण हैं.

अतीत से मिले सबक के आधार पर मिशन मोड पर काम

मामले की जानकारी रखने वालों के मुताबिक, पीएम मोदी का सुझाव था कि युद्धस्तर पर इलाकों में पेड़ों की छंटाई की जाए. उन्होंने कहा था कि पिछले चक्रवातों से लिए गए सबक से पता चलता है कि लोगों पर पेड़ों के के गिरने से सबसे ज्यादा जनहानि और अन्य नुकसान हुआ था. अधिकारियों ने कहा कि पांच दिनों में लगभग तीन लाख पेड़ों की छंटाई की गई और 76,000 मवेशियों को सुरक्षित क्षेत्रों में ले जाया गया.

जिला प्रशासन, राज्य सरकार, केंद्र सरकार और इसके साथ सेना, वायु सेना, नौसेना, तटरक्षक बल, बीएसएफ और सभी केंद्रीय एजेंसियों को भी समन्वय बैठकों का हिस्सा बनाया गया.

एक अधिकारी ने कहा, "मोरबी पुल के ढहने की घटना ने हमें सिखाया कि संकट में त्वरित निर्णय लेना महत्वपूर्ण है. यही कारण है कि 8 जिलों में 1127 टीमों को स्टैंडबाय पर रखा गया था. भारतीय वायुसेना की गरुड़ टीम को बुलाया गया, जिसने मोरबी (जहां पिछले साल एक पुल ढह गया था) में बड़ी मदद की थी."

गुजरात के सीएम भूपेंद्र पटेल की अध्यक्षता में तैयारियों की समीक्षा के लिए नौ बैठकें हुईं, जबकि गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में दो बैठकें हुईं. अमित शाह ने शनिवार को प्रभावित इलाकों का हवाई सर्वेक्षण भी किया और शेल्टर होम में गर्भवती महिलाओं, बच्चों और किसानों से भी मुलाकात की.

नौ जिलों में लगभग 1,08,208 लोगों को प्रभावित इलाकों से निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया. आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, लगभग 4,000 घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं और लोगों को उनके पुनर्निर्माण में मदद के लिए प्रयास शुरू हो गए हैं. एक अधिकारी ने कहा, "करीब 649 सड़कें प्रभावित हुईं.. 624 चालू हो गई हैं, 25 सड़कों पर पेड़ों को हटाने का काम चल रहा है." चक्रवात को देखते हुए लगभग 1,152 गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित चिकित्सा केंद्रों में भेजा गया. इनमें से 707 महिलाओं ने अपने बच्चों को उन चिकित्सा केंद्रों में जन्म दिया, जहां उन्हें चक्रवात के आने से पहले भर्ती कर दिया गया था.

अधिकारी ने कहा, "सबसे अहम काम उन घरों का मानचित्रण करना था जो पांच से दस किलोमीटर के दायरे में थे. अकेले कच्छ में 122 घरों की पहचान की गई, जिनमें से 75 की स्थिति सबसे कमजोर थी."

बंदरगाहों की सुरक्षा बहुत आवश्यक थी

जखाऊ, मूंदड़ा, कांडला और मांडवी के बंदरगाह देश में कार्गो और लॉजिस्टिक्स के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. इनमें से प्रत्येक बंदरगाह पर एक दिन में कम से कम 10,000 ट्रकों की आवाजाही होने का दावा किया जाता है. इन बंदरगाहों पर क्षति की संभावना के मद्देनजर इनका कामकाज, सभी लोडिंग, अनलोडिंग गतिविधियों को रोक दिया गया और मजदूरों को अलग-अलग आश्रय गृहों में ले जाया गया."

कच्छ और तटीय गुजरात के मवेशियों को लेकर केंद्र था चिंतित

अकेले कच्छ जिले में दो लाख से अधिक मवेशी हैं और इनमें से अधिकांश तटीय क्षेत्रों में हैं. अधिकारी ने कहा, "उन्हें ऊंचे इलाकों में ले जाना था और उनके चारे की व्यवस्था करनी थी. उन्हें खुली जगहों पर रखना था और लोगों को समझाना भी था."

आईएमडी की सटीक भविष्यवाणी लोगों को बचाने में बनी मददगार

आईएमडी की केंद्रीय टीम ने अपने साथ शामिल सभी एजेंसियों और अधिकारियों को समय पर इनपुट देते हुए चक्रवाती तूफान को बारीकी से ट्रैक किया. अधिकारियों ने कहा कि, कई सैटेलाइटों और सॉफेस्टिकेटेड टेक्नालॉजी का उपयोग, अंतरराष्ट्रीय मौसम एजेंसियों के साथ समन्वय, विकसित मौसम मॉडलिंग प्रणाली और लैंड बेस्ड स्टेशनों ने सटीक भविष्यवाणी करने में मदद की.

चुनौतियां बरकरार

चक्रवात प्रभावित इलाकों में जनहानि नहीं होने दी गई, लेकिन सैकड़ों घरों को फिर से बनाना होगा. कच्छ में बहुत से लोग जिन्होंने पूर्व में भूकंप से लेकर चक्रवात तक कई आपदाओं का सामना किया है, को अपने जीवन के इस घाव से भी उबरना होगा. गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 20 जून तक पूरे चक्रवात प्रभावित क्षेत्र में बिजली बहाल कर दी जाएगी.

अधिकारियों ने कहा कि, तूफान से स्टेट पॉवर यूटिलिटी पश्चिम गुजरात विज कंपनी लिमिटेड को व्यापक आर्थिक नुकसान हुआ है. चक्रवात से 5,120 बिजली के खंभे क्षतिग्रस्त हो गए हैं. ट्रांसमिशन को बहाल करने का काम जल्द ही शुरू होगा. कम से कम 4,600 गांवों में बिजली आपूर्ति ठप हो गई थी, लेकिन 3,580 गांवों में बिजली की आपूर्ति बहाल कर दी गई है. लगभग 4,000 घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं. उनके पुनर्निर्माण में लोगों की मदद करने के प्रयास शुरू हो गए हैं. उन्होंने कहा, "करीब 649 सड़कें प्रभावित हुईं..624 चालू हो गई हैं.. अन्य सड़कों पर से पेड़ों को हटाने का काम चल रहा है."

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