काले बालों में अंदर गया, सफेद बालों में लौटा... निठारी कांड के आरोपी सुरेंद्र कोली की तब और अब की तस्वीरें

ग्रेटर नोएडा की लुक्सर जेल से सुरेंद्र कोली की रिहाई हो गई है. सुरेंद्र कोली का हुलिया अब बदल गया है. देखें तब और अब की तस्वीरें...

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देखें सुरेंद्र कोली की तब और अब की तस्वीरें.

वो तस्वीर याद है? पुलिस की गिरफ्त में सिर झुकाए चलता हुआ एक शख्स, काले बाल, हाथों में हथकड़ी थी. यही था निठारी कांड का आरोपी सुरेंद्र कोली, वो नाम जिसने साल 2006 में पूरे देश को हिला कर रख दिया था. नोएडा के निठारी गांव में बच्चों के गायब होने की खबरें जब ज्यादा आने लगीं, तब पुलिस ने नोएडा के सेक्टर 31 की कोठी नंबर D5 से कई नरकंकाल बरामद किए. बच्चों के अपहरण, रेप और हत्या की वारदातों ने उस वक्त देश को झकझोंर दिया. कोली उस घर का नौकर था और उसका मालिक था मोनिंदर सिंह पंढेर. आरोप था कि इन दोनों मिलकर हत्याएं कीं हैं. तब पुलिस ने उसे पकड़कर जेल में डाला. जेल जाते वाक्त कोली के बाल काले थे लेकिन जब 15 साल बाद वो जेल से निकला है तो उसके बाल झक्क सफेद हो चुके हैं. 

लेकिन कल की तस्वीर में सब कुछ बदला हुआ दिखा. वर्षों जेल में रहने के बाद सुरेंद्र कोली की शक्ल अब पूरी तरह बदल गई है. बाल सफेद हो गए हैं, चेहरे पर झुर्रियां आ गई हैं. सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी कोली की आजीवन कारावास की अंतिम सजा रद्द करते हुए उसे रिहा करने का आदेश दिया था. बेंच की अगुवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ ने सुरेंद्र कोली की अंतिम सजा को रद्द करते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति केवल शक या अनुमान के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, चाहे अपराध कितना भी जघन्य क्यों न हो.

जेल से रिहा हुआ कोली

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ग्रेटर नोएडा की जेल से उसकी रिहाई हुई. इसके साथ ही, निठारी कांड के दोनों आरोपियों को सभी मामलों में बरी कर दिया गया. जब वो जेल से बाहर आया, तो वो एक बस एक बूढ़ा, कमजोर आदमी दिख रहा था. मास्क के पीछे अपनी पहचान छिपाने की कोशिश में दिखा.

निठारी कांड के पीड़ित परिवार सुरेंद्र कोली की रिहाई से निराश है. निठारी कांड के दोनों आरोपी  मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली अदालत से पूरी तरह से बरी हो चुके हैं. ऐसे में एक सवाल अब भी बरकरार है कि जिन बच्चों के कंकाल इस घर से मिले… उनकी मौत का जिम्मेदार आखिर कौन है?

पीड़ित परिवारों की टूट रही आस 

इस मामले पर NDTV ने पीड़ित परिवारों से बात की. डी-5 कोठी के बाहर बैठी लक्ष्मी, जिनकी आठ साल की बेटी 2006 में गुम हुई थी, आज भी उसी सवाल के साथ जी रही हैं, “हमारी बच्ची का क्या कसूर था?” लक्ष्मी कहती हैं, “हमको पुलिस से उम्मीद थी, लेकिन हमें न्याय नहीं मिला. इतने साल बीत गए, अब तो हम खुद को हारा हुआ महसूस करते हैं.” उनका कहना है कि जांच के दौरान ग़रीब परिवारों की आवाज़ नहीं सुनी गई.

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