मैसूर सैंडल सोप : शाही विरासत और आलिशान इतिहास का गवाह

जिस मैसूर सैंडल सोप को ले‍कर इतना विवाद मचा हुआ है, उसका इतिहास अपने आप में काफी रोचक रहा है. इस साबुन को और इसे बनाने वाली फैक्‍ट्री को मैसूर के राजा ने शुरू किया था.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins

मैसूर सैंडल सोप शायद पहली बार किसी विवाद की वजह से सुर्खियों में बना हुआ है. कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने बॉलीवुड एक्‍ट्रेस तमन्‍ना भाटिया को साबुन का ब्रांड एंबेसडर चुना है और यहीं से एक नए विवाद ने जन्‍म ले लिया है. कर्नाटक डिफेंस फोरम के स्‍टेट प्रेसीडेंट नारायण गौड़ा ने कहा है कि सरकार ने इस साबुन को एंडोर्स करने के लिए किसी स्‍थानीय कलाकार को क्‍यों नहीं चुना और क्‍यों एक बॉलीवुड एक्‍टर को तरजीह दी गई? विवाद से अलग साबुन की शुरुआत काफी रोचक रही है. सन 1918 में गर्वनमेंट सैंडलवुड ऑयल फैक्‍ट्री की तरफ से इसे बनाया गया और मैसूर के महाराजा कृष्‍ण राजा वाडियार ने इसकी नींव डाली थी.

एक सोच के साथ हुई शुरुआत  

महाराजा कृष्‍ण राजा वाडियार और उनके दिवान एम विश्वेश्वरैया ने सरकारी चंदन के तेल की फैक्‍ट्री शुरू की थी. इसका मकसद चंदन की लकड़ी से तेल निकालना था. मैसूर के महाराजा चाहते थे कि दुनिया के नक्‍शे पर मैसूर की एक अलग पहचान बने. इसी सोच के साथ उन्‍होंने विश्‍व में पहले प्राकृतिक सैंडलवुड ऑयल को लॉन्‍च किया. साथ ही महाराजा ने इसकी खुशबू को भारत का 'फ्रैगरेंस एंबेसडर' के तौर पर आगे बढ़ाया. कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि मैसूर में सैंडलवुड का एक विशाल भंडार था, जिसे पहले विश्‍व युद्ध के दौरान यूरोप भेजने की कोशिशें नाकाम हो गई थी. यहीं से महाराजा को इस फैक्‍ट्री को शुरू करने की प्रेरणा मिली थी. 

गिफ्ट से मिला साबुन का आइडिया 

प्रोफेसर सुड्डौरो और प्रोफेसर वाटसन के नेतृत्‍व में बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ साइंस में चंदन की लकड़ी से तेल निकालने का पहला प्रयोग सफलतापूर्वक पूरा हुआ. कर्नाटक के ब्रिटिश फार्माकोपिया के साथ हाई क्‍वालिटी वाले चंदन के तेल को मैसूर के सरकारी साबुन कारखाने की तरफ से दुनिया के सामने पेश किया गया. साल 1918 के दौरान एक फॉरेन गेस्‍ट ने मैसूर के महाराजा को भारत के ही सैंडलवुड ऑयल से बने साबुन का एक असाधारण गिफ्ट दिया. यहीं से नैचुरल सैंडलवुड ऑयल से मैसूर में साबुन बनाने का आइडिया आया. इसके बाद महाराजा की तरफ से एसजी शास्त्री जो कि इंडस्‍ट्रीयल केमिस्‍ट थे, उन्‍हें साबुन और परफ्यूम टेक्‍नोलॉजी पर ट्र‍ेनिंग के लिए लंदन भेजा गया था. 

Advertisement

1918 में आया मैसूर सैंडल सोप 

लंदन से एस.जी. शास्त्री की वापसी के साथ मैसूर सैंडल सोप का एक नया दौर शुरू हुआ. एसजी शास्त्री ने चंदन से बना इत्र डेवलप किया जिसे उन दिनों साबुन के क्षेत्र में एक मील का पत्थर माना जाता था. सैंडल नोट की खुशबू के साथ पहला स्वदेशी सैंडल साबुन, जिसमें वेटिवर्ट, पैचौली, गेरियम, पाम रोज, ऑरेंज, पेटिटग्रेन आदि जैसे बाकी नैचुरल एसेंशियल ऑयल का प्रयोग किया गया था. इस साबुन को साल 1918 में मैसूर सैंडल सोप के ब्रांड नाम से बाजार में उतारा गया. 

Advertisement
Featured Video Of The Day
Bangladesh Politics Crisis: जानें Muhammad Yunus इस्तीफा देने को मजूबर क्यों दिख रहे
Topics mentioned in this article