बिहार की जनता से किए वादे और उनकी उम्मीदों पर कितने खरे उतरेंगे पीके की पार्टी के उम्मीदवार

प्रशांत किशोर ने नया बिहार बनाने का संकल्प लिया है. उनकी उम्मीदवारों की लिस्ट भी उनके इसी संकल्प से मेल खाती है. उन्होंने सबसे पहले प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है.

विज्ञापन
Read Time: 9 mins
Bihar Election
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • प्रशांत किशोर ने जनसुराज पार्टी के 51 उम्मीदवारों की सूची जारी सबसे पहले जारी कर दी है
  • उम्मीदवारों में पिछड़ा वर्ग, मुस्लिम, अनुसूचित जाति और सामान्य वर्ग सभी को शामिल किया गया है
  • उम्मीदवारों के चयन में वंशवाद, आपराधिक पृष्ठभूमि और दलबदलू उम्मीदवारों से परहेज किया गया है.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
नई दिल्ली:

भारतीय राजनीति के विशाल ताने-बाने में बहुत कम लोग ही सियासी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर जैसी महत्वाकांक्षा और जमीनी हकीकत की जटिलता को इतनी साफगोई सामने रखते हैं. इतिहास, संस्कृति और अनगिनत सामाजिक-राजनीतिक चुनौतियों से भरे बिहार की उनकी हालिया यात्रा न केवल उनकी चुनावी सफलता के लक्ष्य को सामने रखती है, बल्कि बिहार की जनता की आशाओं और सपनों के साथ उनके गहरे जुड़ाव को भी दर्शाती है.जनसुराज पार्टी का गठन 2 अक्टूबर 2024 को हो गया था, लेकिन वो पहली पार्टी है, जिसने बिहार में अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं. जबकि अन्य दल अभी भी सहयोगियों के साथ सीट बंटवारे को लेकर उलझे हुए हैं.

जन सुराज ने 9 अक्टूबर को 26 जिलों के 51 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की थी. पीके ने अपनी यात्रा के दौरान जो वादे किए हैं, उसने दूसरे दलों को इस पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है और यह भी कि क्या उनके वादे अब मतदाताओं के सामने मौजूद विकल्पों के अनुरूप हैं या नहीं. 

प्रशिक्षण से रणनीतिकार और स्वभाव से दूरदर्शी पीके ने अपनी दो साल लंबी यात्रा कई प्रतिबद्धताओं के साथ शुरू की थी. इस यात्रा ने बिहार में लंबे समय से राजनीतिक जड़ता के बोझ तले दबे लोगों की आकांक्षाओं से खुद को जोड़ा. उन्होंने सुशासन और पारदर्शिता से लेकर सामाजिक न्याय और युवा सशक्तीकरण तक के वादे किए. उन्होंने बिहार के पुनरुद्धार की बात जोरदार तरीके से की.एक ऐसा राज्य जो अभी अक्सर खुद को दूसरे संपन्न राज्यों के पीछे पाता है. उनके अभियान का मूल विचार इस विचार में निहित था कि बिहार और अधिक का हकदार है, ज्यादा सुर्खियों का, अधिक संसाधन और अधिक अवसरों का. ऐसे बेहतर नेता सामने आएं जो वंशवादी न हों, अपराधी या बाहुबली न हों, राजनीतिक गिरगिट की तरह बार-बार अपनी पार्टी न बदलते रहें और न ही वो भ्रष्ट राजनेता जो अपने निजी हितों के लिए जनता का पैसा लूटते हों.

आगामी विधानसभा चुनावों के लिए उनके उम्मीदवारों की सूची का विश्लेषण किया जाए तो यह देखना जरूरी हो जाता है कि उनका चयन प्रशांत किशोर की यात्रा के दौरान बुने गए उनके नैरेटिव से कितना मेल खाता है. उस सूची का हर नाम सिर्फ एक राजनीतिक विकल्प नहीं है; यह उन आदर्शों का आईना है, जिन्हें पीके ने अपनी यात्राओं के दौरान सामने रखा था. क्या ये उम्मीदवार उन युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें मजबूत बनाने का संकल्प पीके ने लिया था? क्या वे उस सामाजिक न्याय का प्रतीक हैं, जिसे कायम करने का उन्होंने वादा किया था? क्या वे मजबूत क्षमता वाले और विश्वसनीय नेता हैं?

क्या पीके के चयन में उम्मीदवारों की सामाजिक विविधता और समावेशी झलक मिलती है. उनके उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि जैसे जाति या धर्म की बात करें तो क्या ये बिहार की जनसंख्या के अनुपात को दिखाता है? 51 उम्मीदवारों की सूची की सामाजिक विविधता काबिलेगौर है. इस सूची में 17 अत्यंत पिछड़ा वर्ग, 11 अन्य पिछड़ा वर्ग, 7 मुस्लिम, 7 अनुसूचित जाति (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों से) और 9 सामान्य वर्ग से शामिल हैं. बिहार जाति जनगणना सर्वेक्षण 2023 के अनुसार बिहार में ईबीसी का अनुपात सबसे अधिक 36 प्रतिशत और ओबीसी का 27.12 प्रतिशत है. इन दोनों श्रेणियों के सबसे अधिक उम्मीदवार हैं. 17.7 प्रतिशत मुस्लिमों आबादी के हिसाब से 7 उम्मीदवार हैं. सामान्य वर्ग की जनसंख्या 15.52 प्रतिशत है और उन्हें 9 सीटें आवंटित की गई हैं. महिला उम्मीदवारों की संख्या बहुत कम है. हालांकि उम्मीदवारों की पूरी सूची घोषित होने के बाद ये अनुपात बदल सकता  है.

अतीत में पीके ने तर्क दिया था कि कुछ हजार परिवारों ने बिहार की पूरी राजनीति पर कब्जा कर रखा है. या तो वे राजनीतिक वंशवादी हैं, माफिया (बाहुबली) हैं, या बस ऐसे व्यक्ति हैं, जो एक राजनीतिक दल से दूसरे राजनीतिक दल में जाते रहते हैं, यानी बिहार की राजनीति के पलटू राम या आया गया राम. पीके के अनुसार, या तो वो जोकि बहुत भ्रष्ट हैं, घोटालेबाज हैं और जिन पर कई आरोप लगे हैं या तो आपराधिक प्रकृति के लोग हैं. इसलिए जोर एक वास्तविक विकल्प पर है, जो सुशासन प्रदान करेगा. लिहाजा उनकी लिस्ट में ऐसा कोई भी उम्मीदवार शामिल नहीं होना चाहिए जो या तो किसी राजनीतिक खानदान से हो या पहले किसी अन्य राजनीतिक दल से आया हो या जिसका आपराधिक रिकॉर्ड हो.

Advertisement

नतीजतन, उनके लगभग सभी 51 उम्मीदवार नए चेहरे हैं. डॉक्टर, ईमानदार पुलिस अधिकारी, ईमानदार नौकरशाह, शिक्षाविद, वकील, एक गायक, एक ट्रांसजेंडर और पेशेवर लोग इसमें शामिल हैं. किसी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, कोई भी पार्टी बदलने वाला नहीं है, कोई भी राजनीतिक खानदान से ताल्लुक नहीं रखता है. हालांकि कर्पूरी ठाकुर की पोती जागृति ठाकुर समस्तीपुर के मोरवा से चुनाव लड़ेंगी. शायद राजनीतिक वंशवाद का एकमात्र अपवाद जननायक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पोती जागृति ठाकुर ही हैं. कर्पूरी ठाकुर हज्जाम (नाई) जाति से थे और उन्होंने 1978 से 1980 के बीच अपने शासन के दौरान पिछड़े वर्गों खासकर अत्यंत पिछड़े (36 फीसदी EBC) के लिए पहली बार आरक्षण शुरू किया था.  पीके ने बताया कि जागृति नाम शामिल होने का एक कारण सामान्य तौर पर महिला उम्मीदवारों की कमी था. साथ ही उनका सार्वजनिक सेवा का एक असाधारण रिकॉर्ड रहा है.

1989 के भागलपुर दंगों पर काबू पाने वाले तत्कालीन एसपी आर के मिश्रा दरभंगा से उम्मीदवार हैं. आर के मिश्रा 1986 बैच के बेहतरीन पूर्व आईपीएस अधिकारी रहे हैं, जिन्हें 1989 में दो महीने से ज्यादा समय तक चले भागलपुर सांप्रदायिक दंगों के दौरान जिले का पुलिस अधीक्षक बनाया गया था. एनडीटीवी के साथ अपने पहले साक्षात्कार में मिश्रा ने दरभंगा शहर की मुख्य समस्याओं का जिक्र किया. इसमें  लगातार बाढ़ और सड़कों पर जलभराव, भयानक ट्रैफिक जाम के साथ पब्लिक पार्किंग और जनहित की सुविधाओं की कमी का उन्होंने उल्लेख किया था. इस ऐतिहासिक शहर में पहले दरभंगा राज के आधा दर्जन भव्य महल थे और आज यहां ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय का परिसर है. आरके मिश्रा ने वादा किया है कि अगर वह चुने जाते हैं, तो जलभराव खत्म करने, ट्रैफिक जाम खत्म करने और कारों और अन्य वाहनों के लिए पार्किंग स्थल बनाने का गंभीर प्रयास करेंगे. लिस्ट में एक और बड़ा नाम 2000 बैच के आईपीएस अधिकारी जय प्रकाश सिंह का भी है. उन्होंने एडीजीपी (सीआईडी) के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली है. उन्हें छपरा से मैदान में उतारा गया है.

Advertisement

जन सुराज पार्टी की सूची में प्रसिद्ध गणितज्ञ केसी सिन्हा का नाम शामिल है, जो पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति भी रह चुके हैं. सूची के अन्य नामों में ईमानदार नौकरशाह और उच्च सम्मानित शिक्षाविद शामिल हैं. ये पार्टी की रणनीति को दिखाता है कि कैसे वो पारंपरिक पार्टियों से अलग है. पारंपारिक दल जो जाति, धर्म और वंशवाद पर टिके हुए हैं. जन सुराज ने योग्यता, जन कल्याण और सुशासन पर जोर दिया है. पार्टी ने जाति, धर्म और वंशवाद के बजाय काम करने की क्षमता और ईमानदारी पर केंद्रित पॉलिटिकल नैरेटिव का संकेत दिया है. 

डॉक्टरों की सूची में सात नाम हैं. मुजफ्फरपुर से डॉक्टर अमित कुमार दास, गोपालगंज से डॉक्टर शशि शेखर सिन्हा, ढाका विधानसभा सीट से डॉक्टर लाल बाबू प्रसाद, वाल्मिकी नगर से डॉक्टर नारायण प्रसाद, इमामगंज से डॉक्टर अजीत कुमार, मटिहानी से डॉक्टर अरुण कुमार और भोजपुर से और डॉ. विजय कुमार गुप्ता का नाम है.

Advertisement

पटना मेडिकल कॉलेज एंड हास्पिटल के पूर्व छात्र डॉ. अमित कुमार दास ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में अपने काम के लिए जाने जाते हैं. दास और उनकी डॉक्टर पत्नी मुजफ्फरपुर में एक अस्पताल चलाते हैं और उन्हें स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में जमीनी बदलाव लाने वाले व्यक्ति के रूप में देखा जाता है. इस सूची में एक और प्रमुख नाम पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता वाईबी गिरि का है. गिरि भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और बिहार के एडिशनल एडवोकेट जनरल रह चुके हैं. गिरि मांझी से चुनाव लड़ रहे हैं और जन सुराज पार्टी के प्रवक्ता रह चुके हैं. ट्रांसजेंडर और सामाजिक कार्यकर्ता प्रीति किन्नर गोपालगंज की भोरे सीट से चुनाव लड़ेंगी. उन्होंने दलितों के लिए खूब काम किया है और उन्होंने पीके को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने का संकल्प लिया है.

बिहार की सामाजिक जातीय और सामुदायिक विविधता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जहां जाति, वर्ग और समुदाय जटिल रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. पीके की लिस्ट में उम्मीदवारों को इसी विविधता को पेश करते हुए प्रतिनिधित्व का ऐसा मिश्रण प्रस्तुत करना चाहिए जो बिहारी नागरिकों के तमाम अनुभवों को दिखाती हो. अपने भाषणों में प्रशांत किशोर ने समावेशी राजनीति और एक ऐसे राजनीतिक माहौल को जमीन पर उतारने पर जोर दिया है, जो बिहार की बहुआयामी पहचान का आईना बने. लिहाजा चुनौती केवल इन उम्मीदवारों की योग्यता में ही नहीं, बल्कि जमीनी स्तर से जुड़ने और हाशिए पर खड़े लोगों की आशाओं और युवाओं की आकांक्षाओं को साकार करने की क्षमता में भी निहित है.

Advertisement

इसके अलावा प्रशांत किशोर का प्रचार अभियान नया बिहार की मुखर आवाज की एक आपात जरूरत की भावना से भरा रहा है. उम्मीदवारों की सूची में यही भावना दिखनी चाहिए और केवल बयानबाजी के बजाय लागू हो सकने वाले बदलाव के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करनी चाहिए. मतदाता तेजी से समझदार हो रहे हैं; वे केवल वादे नहीं, बल्कि ठोस योजनाओं और ऐसे भरोसेमंद नेता चाहते हैं, जो उन वादों को पूरा कर सकें. इस मायने में प्रशांत किशोर के पहले किए वादों के साथ उम्मीदवारों का तालमेल उनके विजन के लिए लिटमस टेस्ट बन गया है.

चुने गए उम्मीदवारों पर विचार करें तो इन विकल्पों के व्यापक प्रभावों पर भी विचार करना जरूरी हो जाता है. क्या ये प्रत्याशी बिहार जैसे राज्य में समर्थन जुटा पाएंगे, जहां राजनीतिक निष्ठा रेत की तरह बदलती रहती हैं? क्या वे बिहार के राजनीतिक इकोसिस्टम के जटिल ढांचे को समझने के योग्य हैं, जहां लंबे समय से विरासत और समकालीन चुनौतियां आपस में गुंथी हुई हैं? सबसे बड़ी बात है कि क्या वे चुनाव जीत सकते हैं?

निष्कर्ष के तौर पर प्रशांत किशोर की यात्रा महज एक राजनीतिक अभियान नहीं थी; यह बिहार की आत्मा को छूने वाली यात्रा थी और इसकी संभावनाओं और कमियों की तलाश थी. 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए उन्होंने जिन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, वे उनकी सोच को आगे ले जाने वाले और उनके वादों के संरक्षक होंगे. मतदाता जब वोट डालने की तैयारी कर रहे हैं तो वे इस बात पर गहरी नजर रखेंगे कि क्या उन वादों का सम्मान किया गया है और क्या किशोर का 'नए बिहार' का विजन उनके चयनित उम्मीदवारों के जरिये साकार किया जा सकता है. आखिरकार यह सिर्फ राजनीतिक रणनीति का मामला नहीं है, बल्कि उस उम्मीद, लचीलेपन और अटूट भरोसे का मामला है कि बिहार का एक बेहतर भविष्य संभव है.

Featured Video Of The Day
Bhopal News: DSP का रिश्तेदार...पिटाई से मौत! 'मर्डर' के लिए पुलिसवाले ज़िम्मेदार! | Madhya Pradesh
Topics mentioned in this article