VIDEO: रामलला की मूर्ति श्याम क्यों? मंदिर के शिल्पकार चंद्रकांत सोमपुरा से समझिए

राममंदिर के शिल्पकार चंद्रकांत सोमपुरा ने बताया कि पहले राममंदिर में टेप आदि लेकर नहीं जाने देते थे. उस समय मैं अकेला ही मंदिर के अंदर गया. मैंने अपने कदम से गिनती कर मंदिर का माप लिया था. मैं एक-एक करके परिसर के सभी हिस्सों में घूमा और अपने कदम से ही माप तैयार किया था. 

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NDTV ने की अयोध्या के राम मंदिर का डिजाइन तैयार करने वाले चंद्रकांत सोमपुरा से बातचीत

नई दिल्ली:

अयोध्या स्थित राम मंदिर में आगामी 22 तारीख को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी जोरों पर है. इस आयोजन में देश के प्रधानमंत्री मोदी समेत कई बड़ी हस्तियां शामिल होंगी. श्री राम मंदिर ट्रस्ट ने विभिन्न राजनीतिक पार्टियों और कई बड़ी हस्तियों को भी इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता दिया है. इन सब के बीच NDTV ने राम मंदिर की कल्पना और इसके डिजाइन को तैयार करने वाले चंद्रकांत सोमपुरा से NDTV ने खास बातचीत की. 

आइये पढ़ते हैं चंद्रकांत सोमपुरा से NDTV की बातचीत के  खास अंश...


प्रश्न :  राम मंदिर का डिजाइन करने का प्रस्ताव कब मिला और कैसे बनाया ये डिजाइन?

जवाब :  इस पर उन्होंने ने कहा कि 1988 में विश्व हिन्दू परिषद के अशोक सिंघल ने सोचा था कि ये मंदिर कैसे बनना है?  जीडी बिरला से अनुरोध किया और कहा कि चंद्रकांत सोमपुरा जो आपके लिए काम कर रहे हैं उनसे कहिए कि वो हमारे राम मंदिर के लिए भी हमारी मदद करें. इसके बाद मेरे पास फोन आया और मुझे कहा गया कि आप आइये और हम लोग साथ जाएंगे अयोध्या. आप वहां जगह देख लीजिए और हम लोग एक प्लान बनाएंगे. मैं करीब 1988 से ही इनके साथ जुड़ा हूं. 

प्रश्न : रामलला की मूर्ति के लिए श्याम रंग के चुनाव के पीछे क्या वजह थी? 

जवाब : उन्होंने बताया कि 5 साल के रामलला के कई स्कैच तैयार किए गए थे और देश के अच्छे-अच्छे मूर्तिकारों को मूर्ति बनाने का काम सौंपा गया.सफेद और काले पत्थर की मूर्ति तैयार करने वालों को ये स्कैच दिए गए थे. उसके बाद मूर्ति का चयन किया गया.  रामायण में कहा गया है कि राम श्याम वर्ण के थे तो इसलिए श्याम रंग की मूर्ति का चयन किया गया.

प्रश्न : मंदिर बनाने के लिए आपने उस दौरान कैसे माप लिया और तैयारी की? 

जवाब : उन्होंने कहा कि आपने बहुत अच्छा सवाल पूछा है. उस दौर में कोई हमें अयोध्या में राम मंदिर के पास टेप लेकर जाने नहीं देते थे. किसी को पता ना चले कि हम यहां क्यों आए हैं इसलिए हम सब एक साथ अंदर नहीं गए थे. मैं अकेला ही मंदिर परिसर में गया था. उस दौरान मुझे ही कहा गया था कि आप माप ले लीजिए. मैंने अपने कदम से गिनती कर मंदिर का माप लिया था. मैं एक एक करके परिसर के सभी हिस्सों में घूमा और अपने कदम से ही माप तैयार किया था. 

प्रश्न : पहले के मॉडल में तीन मंडप थे लेकिन अब जो बन रहा है उसमें पांच मंडप हैं और क्या आप नए डिजाइन से सहमत हैं?

जवाब : उन्होंने कहा कि पहले मंदिर में दो मंडप थे. पहले जगह ही इतनी थी. क्योंकि विवादित स्थल ही इतना था. इसके बाद जब जगह मिली तो ट्रस्ट ने तय किया मंदिर को अब बड़ा बनाया जा सकता है. इसके बाद मुझसे सुझाव मांगे गए. मैंने नए डिजाइन को लेकर कई सुझाव दिए. मैंने जब पांच मंडप वाले मंदिर का डिजाइन सबके सामने रखा तो सबको पसंद आया. नए डिजाइन में हमने एक मंजिल और बढ़ा दिया है. सब कुछ मेरी सहमति से ही हुआ है. सारा प्लान ही मैंने बनाया है. 

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प्रश्न : आपने राम मंदिर के लिए किस वास्तु शैली का चुनाव किया और क्यों ? 

जवाब : करीब-करीब दक्षिण भारत को छोड़कर ऊपर की तरफ चलेंगे तो आपको हर जगह नागर शैली में बना मंदिर ही मिलेगा. सबकी इच्छा भी यही थी कि राम मंदिर भी नागर शैली के तहत ही बनाया जाए. तो इसी हिसाब से इस मंदिर को नागर शैली में बनाया जाएगा. 

प्रश्न :  पहले तय हुआ था कि यह मंदिर संगमरमर का बनेगा लेकिन बाद में इसे पत्थर से बनाया जा रहा है और वो  भी खास तौर पर बंसी पहाड़पुर के पत्थर से. इसके पीछे का क्या कारण है?

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जवाब : उन्होंने कहा कि पहले जो हम लोगों ने 1988 के बाद काम किया था. वो सब बंसी पहाड़पुर पत्थर में ही हुआ था. उस समय हमने करीब एक लाख घन फुट पत्थर गढ़ कर रखा हुआ था. ये पत्थर पड़ा हुआ था तो उसे बर्बाद तो नहीं कर सकते. इनसे सबकी भावना जुड़ी हुई थी. ये पत्थर उस समय सबसे एक एक रुपये लेकर लाया गया था. इसलिए हमने सुझाव दिया था कि इसी पत्थर से बनना चाहिए और सबने ये सुझाव मान लिया. 

प्रश्न :  पुराने मंदिर में कुछ खास मौके पर दर्शन करने में श्रद्धालुओं को खासी दिक्कत होती है, राम मंदिर में तो दुनिया भर से श्रद्धालु आएंगे ऐसे में यहां किस तरह की व्यवस्था की गई है? 

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जवाब : उन्होंने कहा कि चाहे आप कितना भी बड़ा क्यों ना बना लें, श्रद्धालुओं को तो है कि उन्हें भगवान का सामने से ही दर्शन करना है. इसलिए आप कितना भी बड़ा मंदिर बना लें भक्त को भगवान के सामने जाना ही जाना है, जिन्हें भी प्रार्थना करनी है उनके लिए पर्याप्त जगह है. आप चाहे हॉल को कितना भी बड़ा क्यों ना बना देंगे, लेकिन भगवान की मूर्ति के सामने जाने के लिए लोगों को जगह तो चाहिए ही चाहिए. 

प्रश्न : क्या वास्तु के हिसाब से ये भी ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि रामनवमी के दिन जब सूर्य की किरणें आएंगी तो रामलला के ललाट पर पड़ेंगी ? 

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जवाब : जी, इसमें एक रिफ्लेक्टर जो लगा हुआ है उसी रिफ्लेक्टर से रामनवमी के दिन 12.39 मिनट भगवान के ललाट पर सूर्य की किरणें पड़ेंगी और ये हर साल होगा, ऐसा किया हुआ है. 

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