"हमें उन्हीं से पढ़ना है...", गुरु जी का हुआ ट्रांसफर और 133 बच्चों ने उसी स्कूल में ले लिया दाखिला

जिन बच्चों ने अपने अभिभावक को इस बात के लिए मनाया कि उनका दाखिला उसी स्कूल में कराया जाए जिस स्कूल में श्रीनिवास सर का ट्रांसफर हुआ है, वो पहली कक्षा से पांचवीं कक्षा तक के छात्र हैं. 

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तेलंगान में दिखा छात्र और शिक्षक के बीच अटूट रिश्ता (फोटो AI जेनरेटेड है)
नई दिल्ली:

वो कहते है ना कि किसी बच्चे के भविष्य को संवारने की जिम्मेदारी शिक्षक की होती है. अगर शिक्षक बेहतर मिल जाए तो बच्चे का भविष्य बुलंदियों पर होता है. इसी तरह शिक्षक के लिए भी ऐसे छात्र अनमोल होते हैं जो अपनी मेहनत से अपने गुरु को मान बढ़ाएं. यही वजह है कि हमारी परंपार में छात्र के लिए उसका गुरु भगवान की तरह होता है. अपने गुरु के प्रति छात्र के लगाव और प्यार की कई कहानियां आज भी प्रचलित हैं. ऐसी ही एक कहानी है द्रोणाचार्य और एकलव्य की. एकलव्य ने गुरु के कहने पर गुरु दक्षिणा में अपना अंगूठा ही काटकर दे दिया था. गुरु-शिष्य प्रेम की ये प्रथा हमारे देश में कई युगों से चली आ रही है. गुरु और शिष्य के बीच प्रेम की एक ऐसी ही मिसाल कुछ दिन पहले तेलंगाना के एक स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों ने पेश की है. यहां एक सरकारी स्कूल से जब एक शिक्षक का तबादला दूसरे स्कूल में हुआ तो उस स्कूल के छात्रों ने पुराने स्कूल को छोड़कर उसी स्कूल में अपना दाखिला करा लिया जहां उस शिक्षक का तबादला हुआ था. 

133 छात्रों ने छोड़ा पुराना स्कूल

ऐसा करने वाले छात्रों की तादात एक दो नहीं बल्कि कुल 133 थी. सभी 133 छात्रों ने एक साथ अपने पुराने स्कूल को छोड़कर नए स्कूल में दाखिला ले लिया. आपको बता दें कि जे श्रीनिवास तेलंगाना के एक सरकारी स्कूल में बतौर शिक्षक कार्यरत थे. उनका अपने छात्रों से और छात्रा का उनसे बेहद लगाव था. लेकिन जब छात्रों को ये पता चला कि अब श्रीनिवास सर का ट्रांसफर किसी दूसरे स्कूल में हो गया है और वो इस स्कूल में उन्हें पढ़ाने नहीं आ पाएंगे तो पहले तो वो इसे मानने को तैयार नहीं थे. लेकिन बाद में जब ये समझ आया कि सरकारी आदेश है और श्रीनिवास सर को जाना होगा तो इन छात्रों ने अपने पुराने स्कूल से नाम कटवाकर उसी स्कूल में दाखिला लेने का फैसला किया जहां श्रीनिवास सर का ट्रांसफर हुआ था. 

अपने शिक्षक के प्रति छात्रों के इस लगाव के बारे में जब तेलंगाना के शिक्षा अधिकारियों को पता चला तो वो भी हक्का बक्का रह गए. मंचेरियल जिले के शिक्षा अधिकारी ने छात्रों के इस लगवा को अनोखा बताया है. उन्होंने कहा कि अकसर होता है कि छात्र अपने शिक्षक से ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं. और जब उस शिक्षक का तबादला किसी दूसरे स्कूल में होते है तो छात्रों को इससे बेहद दुख पहुंचता है. लेकिन ये पहली बार सुनने में आ रहा है कि इतने छात्रों ने सिर्फ अपने शिक्षक से जुड़ाव की वजह से एक स्कूल को छोड़कर दूसरे स्कूल में दाखिला लिया हो. ये तो कमाल है. 

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आंसू के सैलाब में डूब गए थे छात्र

छात्रों को जब अपने श्रीनिवास सर के दूसरे स्कूल में तबादले की खबर मिली तो वो पहले तो इसे मजाक समझ बैठे, लेकिन जब उनको बताया कि तबादले को लेकर सरकारी ऑर्डर आ चुका है तब जाकर उन्हें इस पर भरोसा हुआ. इस खबर के स्कूल में फैलने के साथ ही चारों तरफ मानों मातम सा फैल गया. हर कोई आंसुओं के सैलाब में डूब सा गया. मानों छात्रों पर दुखों का पहाड़ टूट गया हो. 

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श्रीनिवास छात्रों को ढांढस बांधते रहे और कहते रहे कि देखो सरकारी आदेश है, उसे मानना होगा. मैं तुम्हारे टच में रहने की कोशिश करूंगा, तुम सब अच्छे से आगे की पढ़ाई करना. लेकिन छात्र कहां मानने वाले थे. उन्होंने कहा कि सर, हम आपको नहीं जाने देंगे अगर आप फिर भी जाएंगे तो हम उसी स्कूल में दाखिला लेंगे जहां आप ज्वाइन करने जा रहे हैं. इसके बाद छात्रों ने अपने अभिभावक से बात की और उसी स्कूल में दाखिला लेने के लिए आवेदन कर दिया. जिस स्कूल में श्रीनिवास का ट्रांसफर हुआ है वो अकापेल्लिगुडा में है. ये पुराने स्कूल से तीन किलोमीटर दूर है. 

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पहली से पांचवीं तक के छात्र हैं ये बच्चे 

अगर आपको लग रहा हो कि श्रीनिवास सर की वजह से जिन छात्रों ने दूसरे स्कूल में दाखिला लिया है वो बड़े बच्चे होंगे तो आप गलत हैं. जिन बच्चों ने अपने अभिभावक को इस बात के लिए मनाया है कि वह पुराने स्कूल की जगह नए स्कूल (जहां श्रीनिवास सर गए हैं) में दाखिला दिलाएं वो पहली कक्षा से पांचवीं कक्षा तक के बच्चे हैं. 

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"ये मेरे पर उनका भरोसा जताता है"

बच्चों और उनके अभिभावक के इस फैसले को लेकर श्रीनिवास ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि अभिभावकों का यह फैसला मेरे पढ़ाने के तरीके के प्रति उनके विश्वास को दिखाता है. मैं अपनी क्षमता के अनुसार बच्चों को पढ़ाता था. आगे भी मैं इसी तरह से बच्चों को पढ़ाऊंगा. आज के दौर में सरकारी स्कूल पहले से काफी बेहतर हो चुके हैं और मैं चाहूंगा कि अभिभावक सरकारी स्कूल में ही अपने बच्चों को भेजें.

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