एक मां अपने बेटे की सलामती की दुआ मांग रही है, एक पिता आंखों में आंसू लिए आसमान की ओर देख रहा है, और दूर तेलंगाना की एक सुरंग में फंसे आठ मजदूरों की जिंदगी अब सांसों की डोर पर लटकी है. शनिवार सुबह शुरू हुए इस हादसे से पूरा देश मर्माहत है. गौरतलब है कि श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (SLBC) परियोजना की सुरंग में छह मजदूर और दो इंजीनियर पिछले 60 घंटों से मलबे और पानी के बीच फंसे हैं. हर गुजरा पल उनके परिवारों के लिए न खत्म होने वाला इंतजार बनता जा रहा है. हर कोशिश उनके लिए उम्मीद की आखिरी किरण की तरह है लेकिन सवाल यह है कि क्या ये कोशिशें वक्त रहते उन तक पहुंच पाएंगी? क्या यह ऑपरेशन इन आठ जिंदगियों को बचा पाएगा?
युद्ध स्तर पर जारी है राहत और बचाव कार्य
हादसे की खबर मिलते ही तेलंगाना सरकार हरकत में आ गई. मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने तुरंत अधिकारियों को निर्देश दिए कि कोई कसर न छोड़ी जाए. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF), भारतीय सेना, नौसेना और सिंगरेनी कोलियरीज की टीमें मौके पर पहुंच गईं. बचाव कार्य में 584 से ज्यादा विशेषज्ञ शामिल हैं.
बचाव दल के सामने कई चुनौती
सुरंग में पानी और कीचड़ की वजह से बचाव कार्य बेहद मुश्किल हो गया है. 11 से 13 किलोमीटर के बीच पानी भरा है, जिसे निकालने के लिए मोटर पंप लगाए गए हैं. मलबे को हटाने के लिए गैस कटर और भारी मशीनें इस्तेमाल हो रही हैं. लेकिन चुनौतियां कम नहीं हैं. सुरंग की छत से पत्थरों के खिसकने की आवाजें आ रही हैं, जो बचाव दल के लिए खतरे का संकेत हैं. ऊपर से ड्रिलिंग भी मुमकिन नहीं, क्योंकि सुरंग के ऊपर 400 मीटर मोटी चट्टानें हैं.
- मलबे और कीचड़ का भारी जमाव: सुरंग में 200 मीटर का हिस्सा पूरी तरह मलबे और कीचड़ से भरा हुआ है. हादसे के बाद ढही छत और फिसला कंक्रीट खंड इसकी वजह बना है. NDRF के डिप्टी कमांडेंट सुकिंदु दत्ता के अनुसार, 13 किलोमीटर तक तो टीमें पहुँच गईं, लेकिन आखिरी 200 मीटर में मलबे ने रास्ता रोक रखा है. कीचड़ घुटनों तक होने से भारी मशीनों का इस्तेमाल भी सीमित भी संभव नहीं है.
- पानी का रिसाव और जलभराव: सुरंग के 11 से 13 किलोमीटर के बीच भारी मात्रा में पानी भरा हुआ है. हादसे से पहले रिसाव को रोकने के लिए लगाए गए कंक्रीट के बावजूद, पानी का बहाव रुक नहीं रहा. इससे बचाव दल को मलबा हटाने में दिक्कत हो रही है.
- चट्टानों के ढहने का खतरा: सुरंग की छत से लगातार पत्थर गिरने की आवाजें आ रही हैं, जो बचावकर्मियों के लिए खतरे के संकेत हैं. ऊपर से ड्रिलिंग भी संभव नहीं, क्योंकि सुरंग के ऊपर 400 मीटर मोटी चट्टानें हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि ढीली चट्टानों की वजह से कोई भी बड़ा कदम जोखिम भरा हो सकता है. इससे बचाव दल को सावधानी बरतनी पड़ रही है, जिससे ऑपरेशन में देरी हो रही है.
- फंसे हुए मजदूरों से नहीं हो रहा संपर्क: फंसे हुए आठ लोगों से अब तक कोई संपर्क नहीं हो सका है. बचाव टीमें उनके नाम पुकार रही हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. एंडोस्कोपिक और रोबोटिक कैमरे भी मलबे और पानी की वजह से सटीक तस्वीर नहीं दे पा रहे. जिला कलेक्टर बी. संतोष ने कहा कि संचार न होने से यह पता लगाना मुश्किल है कि वे कहां हैं और उनकी हालत क्या है.
- तकनीकी और लॉजिस्टिक चुनौतियां: सुरंग की संकरी बनावट और 14 किलोमीटर की गहराई तक भारी उपकरण ले जाना असंभव साबित हो रहा है. गैस कटर और बुलडोजर जैसे उपकरण पानी और कीचड़ में प्रभावी नहीं हो पा रहे. सिलक्यारा (उत्तराखंड) के रैट माइनर्स को बुलाया गया है, लेकिन उनकी टीम को भी पानी और दूरी की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि ऑपरेशन को तीन-चार दिन और लग सकते हैं.
20 साल में भी पूरा नहीं हुआ एसएलबीसी सुरंग
2005 में शुरू हुई यह परियोजना, जिसकी लागत तब 4,600 करोड़ रुपये थी, दुनिया की सबसे लंबी सिंचाई सुरंग मानी जाती है. इसके 35 किलोमीटर बन चुके हैं. दिलचस्प बात यह है कि सुरंग का काम अमराबाद टाइगर रिजर्व से 400 मीटर नीचे है. एसएलबीसी सुरंग परियोजना की मदद से कृष्णा नदी से क़रीब 30 टीएमसी (अरब क्यूबिक फ़ीट) पानी को मोड़ने की योजना है.
खतरे में मजदूरों की जिंदगी, कैसे बचेगी जान?
10 मीटर के इस छोटे से हिस्से में फंसे मजदूरों की हालत का अंदाजा लगाना मुश्किल है. सुरंग के भीतर ऑक्सीजन की कमी, भोजन और पानी का अभाव, और ठंड जैसे हालात उनकी जिंदगी को खतरे में डाल रहे हैं. उत्तराखंड में मजदूरों को पाइप के जरिए भोजन और ऑक्सीजन पहुंचाई गई थी, लेकिन तेलंगाना में अभी तक ऐसा कोई रास्ता नहीं बन पाया है. अगर मजदूर जिंदा हैं, तो हर मिनट उनके लिए कीमती है. इन मजदूरों के परिवारों का रो-रोकर बुरा हाल है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तेलंगाना सरकार से संपर्क कर मदद की पेशकश की है.
सुरंग में फंसे मजदूर किन राज्यों के हैं?
सुरंग में फंसे हुए 8 में से चार मजदूर झारखंड के हैं. बाकी यूपी, पंजाब, जम्मू-कश्मीर के हैं. इनकी पहचान यूपी के मनोज कुमार और श्री निवास, पंजाब के गुरप्रीत सिंह,जम्मू-कश्मीर के सनी सिंह, झारखंड के संदीप साहू, संतोष साहू, जेगता जेस और अनुज साहू के रूप में हुई है. इन 8 लोगों में दो इंजीनियर, दो ऑपरेटर और 4 मजदूर हैं.
जारी है उम्मीद की जंग
60 घंटे बीत चुके हैं. ऑक्सीजन की सप्लाई अभी बनी हुई है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इतने समय तक मलबे में जीवित रहना मुश्किल है. फिर भी, बचाव दल रात-दिन जुटा है. यह ऑपरेशन सिर्फ आठ जिंदगियों को बचाने की नहीं, बल्कि इंसानियत की उम्मीद को जिंदा रखने की लड़ाई है. क्या ये मजदूर अपने परिवारों से फिर मिल पाएंगे? जवाब अभी वक्त और मलबे के उस पार छिपा है.