तेलंगाना में 32 एडिशनल डीएम को महामारी के इस काल में सरकार की तरफ से बोनस के तौर पर इस्तेमाल के लिए महंगी कारें दी गई हैं, जिस पर सियासी संग्राम शुरू हो गया है. मुख्यमंत्री चंद्रेशखर राव ने अधिकारियों के लिए 32 किआ कार्निवल कार खरीदी हैं. हर कार की अनुमानित कीमत 25 से 30 लाख के बीच में बताई जा रही है. विपक्ष ने कार खरीदी पर सवाल उठाते हुए इसे गैरजरूरी बताया है. विपक्ष का आरोप है कि ऐसे समय में जब राज्य कोविड महामारी से जूझ रहा है, प्रदेश पर करीब 40 हजार करोड़ का कर्ज है तो इन कारों की खरीद की क्या जरुरत थी.
रविवार को तेलंगाना के परिवहन मंत्री पुववाड़ा अजय कुमार ने हैदराबाद स्थित मुख्यमंत्री आवास से इन कारों को हरि झंडी दिखाई, इस मौके पर मुख्य सचिव सोमेश कुमार व अन्य अधिकारी मौजूद थे. इससे पहले खुद मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने इन कारों का निरीक्षण किया था. इस मामले को बीजेपी ने आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है. पार्टी के प्रवक्ता कृष्णा सागर राव ने मुख्यमंत्री राव के इस कम को "आपराधिक छल" कहते हुए इसे "नौकरशाहों को खुश करने" की कवायद कहा है. उन्होंने पूछा कि मुख्यमंत्री कैसे 32 लक्जरी गाड़ियों को खरीदने के लिए 11 करोड़ से ज्यादा खर्च करने को सही ठहरा सकते हैं? उन्होंने कहा कि ऐसे फैसले बिना सोचे समझे और डराने वाले होते हैं.
सागर के अनुसार, राज्य कोविड महामारी से जूझ रहा है, गरीब जनता इलाज के कारण भारी कर्ज में डूबी हुई है और प्रदेश के मुखिया जनता के पैसों की बर्बादी कर रहे हैं. बीजेपी ने कार खरीदी के फैसले को तुरंत वापस लेने की मांग की है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने सीएम राव के इस कदम को दुस्साहस करार दिया है. उन्होंने कहा कि केसीआर के एक कदम के कारण तेलंगाना को 4,00,00,00,00,000 के कर्ज के जाल में ढकेल दिया, जबकि सरकार के पास पहले से ही बेहतर स्थिति की कारें मौजूद थीं. कांग्रेस प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि TRS सरकार, राज्य के अस्पतालों में बेड बढ़ाने या फिर पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन में बसों की संख्या बढ़ाने के बजाय नौकरशाहों के लिए कारें खरीदकर पैसों का दुरुपयोग कर रही है.
बताते चलें कि तेलंगाना के वित्त मंत्री हरीश राव ने हाल ही बताया था कि राज्य में लगे लॉकडाउन के कारण राज्य को 4500 करोड़ से ज्यादा राजस्व का नुकसान हुआ है.वहीं इन लग्जरी वाहनों की खरीद को जायज ठहराते हुए मुख्यमंत्री राव ने का कहना है कि ऐसे वाहनों की जरूरत थी, ताकी कलेक्टर अपने अपने जिलों का दौरा कर सकें और अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें.