एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ को 2002 के गुजरात दंगों के सिलसिले में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित रूप से सबूत गढ़ने के मामले में बीते सप्ताह अहमदाबाद जेल से रिहा कर दिया गया. वह 26 जून को गिरफ्तारी के बाद से साबरमती सेंट्रल जेल में बंद थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी.
जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने इंटरव्यू दिया, जिसमें उन्होंने उक्त बातें कहीं -
- सच कहूं तो, मुझे उम्मीद थी कि कानून की एक उचित प्रक्रिया का पालन किया जाएगा, एक नोटिस आवश्यक था, न कि उस तरह की कार्रवाई जो हुई थी.
- हमें विचाराधीन कैदियों की स्थिति को देखने की जरूरत है, जिसके बारे में हम बात नहीं करते हैं.
- मुझे महिला बैरक नं. 6 में रखा गया था. मुझे लगता है कि मेरी सुरक्षा बेहतर थी. वहां दोपहर के 6 से 12 बजे आप बाहर रह सकते हैं. हालांकि, ये कठिन है.
* मैं 26 जून को वहां पहुंची. रविवार से अगले शनिवार तक, मुझे एक बार के अलावा पूछताछ के लिए नहीं बुलाया गया था. बाकी समय मैं बस इधर-उधर बैठी रहती थी.
- जेल के अंदर अच्छी लाइब्रेरी है लेकिन अधिक समय वो बंद ही रहती है. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पास स्टाफ की भी कमी है.
- जेल को जेल मैनुअल द्वारा संचालित किया जाता है. लेकिन जब आप उसके अंदर होते हैं, तो आपको उसकी कॉपी नहीं दी जाती है, इसलिए, आप वास्तव में नहीं जानते कि आपके अधिकार क्या हैं.
- मैं कहना चाहता हूं कि इस देश में हमारे पास कई कानूनों है. वे कानून पुलिस द्वारा कुछ हद तक ईमानदारी से लागू भी किए जाते हैं. हालांकि, पुलिस के कार्यपालिका का हाथ न होने का पूरा मामला एक सवाल है. यह चिंताजनक है. अभी ऐसी स्थिति है, जहां पुलिस को इन गिरफ्तारियों और छापेमारी करने की आदत हो गई है, जो किसी के लिए भी खतरा है.
- हमें यह समझने की जरूरत है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, कारावास आदर्श नहीं हो सकता. मैंने 63 दिन जेल में बिताए, 7 पुलिस हिरासत में.
- जब मैं बाहर आई, तो मैट्रन, महिला कर्मचारी बहुत अच्छे से पेश आई. तो, कोई समस्या नहीं थी.
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