- आशीष डंगवाल ने केलसू घाटी में सड़क निर्माण में योगदान देकर बच्चों में संस्कार और समाजसेवा की भावना जगाई.
- श्रीकांत असराठी ने 41 वर्ष तक बिना ट्रांसफर सेवाएं देते हुए गांव के हर बच्चे को शिक्षित करने का मिशन पूरा किया
- भंवरलाल शर्मा ने स्कूल के लिए आर्थिक सहयोग कर कंप्यूटर शिक्षा शुरू कराई और छात्रों को आत्मनिर्भर बनाया.
किसी व्यक्ति का विकास इस बात पर निर्भर करता है कि उसे कैसे शिक्षक मिले. बचपन से ही शिक्षक, एक ऐसे कुम्हार की तरह होते हैं, जो कच्ची मिट्टी रूपी छात्रों को सही आकार देते हैं. स्कूली शिक्षा से लेकर कॉलेज और यूनिवर्सिटी तक, अगर आपको अच्छे शिक्षक मिलते हैं तो आपके जीवन को एक नई दिशा मिलती है. आपके भविष्य के सपने पूरे करने में उनका अहम योगदान होता है. आपको भी जीवन में ऐसे शिक्षक मिले होंगे, जिनसे आपका जीवनभर के लिए गहरा नाता बन गया हो. शिक्षक दिवस पर जाहिर तौर पर आप उन शिक्षकों को याद भी करते होंगे!
पिछले कुछ वर्षों में ऐसी कई कहानियां हमारी नजरों से गुजरी है, जब किसी शिक्षक की विदाई, ट्रांसफर या रिटायरमेंट पर केवल छात्र ही नहीं, बल्कि पूरा गांव फूट-फूटकर रो पड़ा. इन शिक्षकों ने आखिर ऐसा क्या कर दिया होगा! बच्चों की बेहतरी के लिए समर्पण, पढ़ाने का जुदा अंदाज, नवाचार, व्यवहार, छात्रों और गांव के साथ आत्मीय जुड़ाव... ये तमाम ऐसे गुण हैं, जिनके चलते ये शिक्षक लोगों के दिलों में उतर गए. अपने आदर्श व्यवहार से वे न केवल पढ़ाई में, बल्कि विद्यार्थियों के व्यक्तित्व निर्माण में भी मार्गदर्शक बने. उनकी विदाई पर गांव का भावुक होना बताता है कि एक सच्चे शिक्षक का प्रभाव कितनी दूर तक जाता है. आज शिक्षक दिवस पर प्रस्तुत है ऐसे ही 5 शिक्षकों की कहानियां.
आशीष डंगवाल- केलसू घाटी के प्रिय शिक्षक
रुद्रप्रयाग निवासी आशीष डंगवाल केलसू घाटी के एक स्कूल में शिक्षक थे. करीब 6 साल पहले जब उनका ट्रांसफर टिहरी हुआ तो उनके विदाई समारोह में न केवल उनके छात्र, बल्कि केलसू घाटी के 7 गांवों के लोग फूट-फूटकर रो पड़े. डीएवी पीजी कॉलेज से पढ़े आशीष डंगवाल न सिर्फ पढ़ाई में निपुण थे बल्कि वह बच्चों में आत्मविश्वास जगाने, सामाजिक विषयों पर चर्चा और गांव के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे. उनकी पोस्टिंग के समय गांव में सड़क नहीं थी, लेकिन उनके प्रयासों से सड़क बन गई. उनके व्यवहार से पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों में संस्कार, अनुशासन और समाजसेवा की भावना भी पनपी.
मधुरेंद्र कुमार- प्यार और अनुशासन के मिसाल
बिहार के मोतिहारी जिले के पवरिया टोला गांव के नवसृजित प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक मधुरेंद्र कुमार के ट्रांसफर पर बच्चों के साथ पूरा गांव रो पड़ा था. इसी साल जुलाई में जब उनकी विदाई हुई तो छोटे-छोटे बच्चे उनके गले लगकर बस एक ही विनती कर रहे थे-'सर मत जाइए'. मधुरेंद्र जी ने स्कूल में अनुशासन, नैतिक शिक्षा और बच्चों के सर्वांगीण विकास को सर्वोपरि रखा. वे बच्चों के परिवार से भी आत्मीय जुड़ाव रखते, उनकी समस्याएं सुलझाते और पढ़ाई को आनंदमय बना देते थे. ट्रांसफर के वक्त सभी की आंखें नम थीं, खुद शिक्षक भी भावुक थे.
भंवरलाल शर्मा- 20 साल सेवा, हाथी पर किया विदा
भीलवाड़ा जिले के अरवाड़ गांव के सरकारी स्कूल में 20 साल सेवा देने वाले शिक्षक भंवरलाल शर्मा के रिटायरमेंट पर गांववालों ने उन्हें हाथी पर बैठाकर जुलूस निकाला. उनकी विदाई पर ग्रामीणों के साथ-साथ बच्चे भी फूट-फूटकर रोए. भंवरलाल ने स्कूल के लिए दो लाख रुपये दान कर कंप्यूटर शिक्षा शुरू करवाई थी. वे बच्चों के व्यक्तित्व विकास और समाजसेवा में आगे थे. वे छात्रों को आत्मनिर्भर बनने का मंत्र देते थे. गांव के साथ भावनात्मक रिश्ता उनकी लोकप्रियता का बड़ा कारण था. आज भी गांववाले उन्हें श्रद्धा से याद करते हैं.
रेखा मैम- 22 साल तक मां जैसी शिक्षक
मुजफ्फरपुर के आदर्श मध्य विद्यालय की शिक्षिका रेखा ने 22 साल तक बच्चों को मां की तरह पढ़ाया. न सिर्फ शिक्षा, बल्कि उनकी देखभाल, व्यक्तिगत जरूरतें भी वो पूरा करने में लगी रहती थीं. उनकी आत्मीयता ने उन्हें पूरे गांव का प्रिय बना दिया, तभी तो उनके ट्रांसफर के समय विदाई समारोह में बच्चों के साथ-साथ मां-बाप और ग्रामीण भी रो पड़े. उन्हें खुली जीप में बिठाकर भावपूर्ण विदाई दी गई. विदाई पर हाथों में पोस्टर लिए बच्चों की आंखों में आंसू थे. उन्होंने कई गरीब परिवारों के बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया.
श्रीकांत असराठी- बिना ट्रांसफर 41 साल तक सेवा
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में नेर गांव के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक श्रीकांत असराठी ने बिना ट्रांसफर के 41 साल अपनी सेवाएं दीं. उनके रिटायरमेंट पर पूरा गांव, छात्र-छात्राएं, अभिवावक भावुक हो गए. उनकी खासियत थी उनका सरल, आत्मीय व्यवहार और घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल लाने की लगन. उनके पढ़ाने की शैली जुदा थी. गांव के हर बच्चे को शिक्षित करना उनका मिशन था. उनकी वजह से ही पूरे क्षेत्र में स्कूल की अलग पहचान बनी. 41 साल की इस सेवा का असर था कि एक परिवार जैसा रिश्ता बन गया था.
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