अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा कैंसर के मरीज भारत में हैं. अब भी आधे मरीजों की मौत हो जाती है. इलाज के बाद भी दोबारा कैंसर हमला करता है, लेकिन कैंसर के सबसे बड़े हॉस्पिटल, टाटा अस्पताल के डॉक्टरों ने इसकी एक काट निकाली है. डॉक्टरों ने एक टैबलेट तैयार किया है, जिससे दोबारा कैंसर नहीं होगा और कीमो-रेडिएशन के साइड इफ़ेक्ट भी घटेंगे.
भारत के सबसे बड़े और सबसे अच्छे कैंसर अस्पतालों में से एक मुंबई का “टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल” जब भी देखें मरीज़ों से भरा रहता है. भारत में कैंसर के बढ़ते मामलों को देखते हुए टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी टैबलेट विकसित की है जो कैंसर का इलाज करने और दूसरी बार कैंसर होने से रोकने में मदद कर सकता है.
क्रोमेटिन कण रक्त प्रवाह के माध्यम से शरीर के अन्य हिस्सों में जा सकते हैं और जब वे स्वस्थ कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं तो वह उन्हें कैंसर सेल में बदल सकते हैं, जिस वजह से कैंसर से नष्ट होने के बाद भी वापस आ सकते हैं.
इस समस्या का समाधान खोजने के लिए ही डॉक्टरों ने चूहों को रेसवेरेट्रॉल और तांबा कंबाइंड प्रो-ऑक्सीडेंट टैबलेट दिए. ये टैबलेट क्रोमेटिन कण के असर को रोकने में फायदेमंद रहे. लगभग एक दशक से टाटा के डॉक्टर इस टैबलेट पर काम कर रहे थे और आखिरकार उन्हें सफलता मिल ही गई. फिलहाल, फ़ूड सेफ्टी एंड स्टैण्डर्ड अथॉरिटी (FSSAI) से टैबलेट को मंजूरी का इंतजार है.
टाटा मेमोरियल अस्पताल के वरिष्ठ कैंसर सर्जन, पूर्व निदेशक डॉ राजेंद्र बडवे ने कहा कि 100 रुपये में ये अब तक का सबसे सस्ता इलाज साबित होगा, जिसमें थेरेपी के साइडइफ़ेक्ट 50% कम होने की उम्मीद है और क़रीब 30% चांसेस हैं कि कैंसर दोबारा ना फैले.
डॉ राजेंद्र बडवे ने कहा, “ये टेबलेट कैंसर ट्रीटमेंट थेरेपी से होने वाले साइडइफ़ेक्ट को क़रीब 50% कम करेगा और दूसरी बार कैंसर रोकने के लिए क़रीब 30% कारगर है. जहां ट्रीटमेंट लाखों से करोड़ों के बजट में होता है वहीं ये टेबलेट सिर्फ़ 100 रुपये में हर जगह मिलेगी. जून-जुलाई तक इसकी मंज़ूरी मिलने की उम्मीद है.”
टाटा मेमोरियल हॉपिस्टल में देशभर से कैंसर मरीज़ और उनके परिजन आते हैं, जिन्हें अंदर बेड नसीब नहीं वो फुटपाथ को ही आशियाना बना लेते हैं. कैंसर पर हुई नई बड़ी खोज से इनमें भी हिम्मत बंधी है.
मरीजों का कहना है कि, “ऐसा हो गया तो बार-बार चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा. 2024 में तो लग रहा है मरीज़ों की बाढ़ आ गई है. हम लोग बिहार से हैं, खेती करता था लेकिन कैंसर के बाद डर लगता है दोबारा ना हो, इसलिए साल में बार-बार चक्कर लगाना पड़ता है.”