तमिलनाडु: जल्लीकट्टू फेस्टिवेल के दौरान हादसा, नाबालिग समेत दो लोगों की मौत

साल 2006 में मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के बाद जल्लीकट्टू (Tamilnadu Jallikattu) पर पहली बार प्रतिबंध लगाया गया था. साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पशु क्रूरता के आधार पर इस खेल पर रोक लगाई थी, लेकिन विरोध के बाद, तमिलनाडु सरकार ने 2017 में अस्थायी रूप से प्रतिबंध हटा दिया.

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तमिलनाडु में जल्लीकट्टू फेस्टिवेल के दौरान दो लोगों की मौत.

तमिलनाडु में जल्लीकट्टू फेस्टिवल (Jallikattu Festival) के दौरान दो लोगों की मौत हो गई. यह घटना तमिलनाडु के शिवगंगा जिले की है. यहां पर आज जल्लीकट्टू के आयोजन के दौरान सांडों ने एक लड़के समेत दो लोगों को मार डाला. दोनों ही पीड़ित सांडों को वश में करने का खेल देख रहे दर्शकों की भीड़ का हिस्सा थे,. इसी दौरान सांड उनसे टकरा गए, जिससे वे बुरी तरह घायल हो गए. जल्लीकट्टू के दौरान मौत की यह कोई पहली घटना नहीं है. एक दिन पहले तमिलनाडु के पलामेडु में जल्लीकट्टू के दौरान 14 पशु प्रशिक्षक और 16 दर्शकों समेत करीब 42 लोग घायल हो गए थे.इससे पहले भी इस तकह के मामले सामने आते रहे हैं.

 पोंगल त्योहार के दौरान तमिलनाडु के कई हिस्सों में सालों से आयोजित होने वाला जल्लीकट्टू एक पारंपरिक और विवादास्पद खेल है. सांडों को वश में करने वाला खेल जल्लीकट्टू सालों से बहस और लंबी कानूनी लड़ाई का मुद्दा रहा है. पशु अधिकार संगठनों ने स खेल में हिस्सा लेने वाले और बैल दोनों को चोट लगने के जोखिम का हवाला देते हुए खेल पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया है. हालांकि, खेल पर प्रतिबंध लगाने के किसी भी कदम पर इस खेल के समर्थक विरोध-प्रदर्शन करते हैं.  

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2014 में लगी जल्लीकट्टू पर रोक, 2017 में हटी

साल 2006 में मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के बाद जल्लीकट्टू पर पहली बार प्रतिबंध लगाया गया था. साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पशु क्रूरता के आधार पर इस खेल पर रोक लगाई थी, लेकिन विरोध के बाद, तमिलनाडु सरकार ने 2017 में अस्थायी रूप से प्रतिबंध हटा दिया. इसके बाद इसने खेल को कंट्रोल करने वाले कानूनों में संशोधन किया गया. पशु अधिकार ग्रुप्स ने सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती दी.

तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलीलों में, जल्लीकट्टू को "सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि महान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्य वाला एक कार्यक्रम" कहा था. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने 'जल्लीकट्टू' के आयोजनों की इजाजत देने वाले राज्य सरकार के कानून को बरकरार रखा था. न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि जब विधायिका ने 'जल्लीकट्टू' को तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा घोषित कर दिया है, तो न्यायपालिका अलग दृष्टिकोण नहीं अपना सकती.अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पशु क्रूरता निवारण (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017 "खेलों में जानवरों के प्रति क्रूरता को काफी हद तक कम करता है".

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पोंगल पर होता है जल्लीकट्टू का आयोजन

बता दें कि पोंगल के मौके पर तमिलनाडु में जल्लूकट्टू का आयोजन किया जाता है. इस दौरान तकातवर बैलों को वश में करने वाले निडर युवक अपनी-अपनी वीरता और कौशल का प्रदर्शन करते हैं. इस दौरान वहां बड़ी संख्या में लोग इस पारंपरिक खेल का आनंद लेने के लिए जुटते हैं.

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