बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन: सुप्रीम कोर्ट की 5 सबसे अहम टिप्पणियां; सिब्बल ने भी दीं जोरदार दलीलें

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान एक अहम टिप्पणी में कहा कि उसे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और ईमानदारी पर संदेह नहीं है क्योंकि यह एक संवैधानिक दायित्व है, लेकिन इस प्रक्रिया (बिहार में स्पेशल रिवीजन) की टाइमिंग संदेह पैदा कर रही है.

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  • सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में वोटर लिस्ट के स्पेशल गहन रिवीजन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणियां कीं.
  • अदालत ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर संदेह नहीं जताया लेकिन रिवीजन की टाइमिंग पर सवाल उठाए.
  • सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि बीएलओ को नागरिकता निर्धारित करने का अधिकार नहीं है, यह केवल सरकार का अधिकार है.
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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (special intensive revision - SIR) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को कई अहम टिप्पणियां कीं. अदालत ने मतदाता सूची के रिवीजन पर रोक नहीं लगाई. कोर्ट का कहना था कि 10 विपक्षी दलों के नेताओं सहित किसी भी याचिकाकर्ता ने इस प्रक्रिया पर अंतरिम रोक की मांग नहीं की है.

सुप्रीम कोर्ट की 5 सबसे अहम टिप्पणियां

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और ईमानदारी पर संदेह नहीं है क्योंकि यह एक संवैधानिक दायित्व है, लेकिन इस प्रक्रिया (बिहार में स्पेशल रिवीजन) की टाइमिंग संदेह पैदा कर रही है.

  • बेंच ने कहा कि हम किसी संवैधानिक संस्था को वह काम करने से नहीं रोक सकते, जो उसे करना चाहिए... लेकिन हम उन्हें वो काम भी नहीं करने देंगे, जो उन्हें नहीं करना चाहिए.
  • कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में हमारा मानना है कि वोटर लिस्ट के स्पेशल रिवीजन के दौरान आधार कार्ड, वोटर आईडी, राशन कार्ड को भी दस्तावेज के तौर पर स्वीकार करने पर विचार किया जा सकता है.
  • अदालत ने कहा कि वोटर लिस्ट के विशेष गहन रिवीजन की कवायद महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो लोकतंत्र की जड़ों से जुड़ा है और यह मतदान के अधिकार से संबंधित है.
  • कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन आयोग का किसी व्यक्ति की नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है और यह गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है... निर्वाचन आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत आता है और पिछली बार ऐसी कवायद 2003 में की गयी थी.

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने चुनाव आयोग से तीन मुद्दों पर जवाब मांगते हुए पूछा कि क्या उसके पास मतदाता सूची में इस तरह स्पेशल रिवीजन करने का अधिकार है? इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल रिवीजन के लिए अपनाई जा रही प्रक्रिया और ऐसा रिवीजन कब किया जा सकता है, इसे लेकर भी आयोग से जवाब दाखिल करने को कहा है. अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी. 

कपिल सिब्बल ने क्या दलीलें दीं?

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि BLO (ब्लॉक स्तर के अधिकारी) को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता कि वह लोगों की नागरिकता निर्धारित करें. सिर्फ भारत सरकार ही किसी नागरिक की नागरिकता पर सवाल उठा सकती है. इस तरह के छोटे अधिकारियों को ऐसा करने का अधिकार नहीं है. यह साबित करने का काम चुनाव आयोग का है कि जिस व्यक्ति का नाम वोटर लिस्ट में नहीं है, वो देश का नागरिक नहीं है. 

आरजेडी सांसद मनोज झा की तरफ से पेश हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि जिस वक्त लोगों को वोटर लिस्ट से हटाया जाता है, उसी वक्त वह संविधान के आर्टिकल 19 में मिले अधिकार खो देता है. एक नागरिक के तौर पर मिलने वाले उसके सभी अधिकार खत्म हो जाते हैं. उन्हें ऐसा करने का अधिकार नहीं है.

लाइव लॉ के मुताबिक, कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि चुनाव आयोग ने स्पेशल रिवीजन के लिए जो दस्तावेज निर्धारित किए हैं, वो बिहार में बहुत कम संख्या में लोगों के पास हैं. पासपोर्ट सिर्फ 2.5 पर्सेंट और मैट्रिक सर्टिफिकेट 14.71 प्रतिशत लोगों के ही पास हैं. इसके अलावा फॉरेस्ट राइट सर्टिफिकेट, रेजिडेंसी सर्टिफिकेट, ओबीसी सर्टिफिकेट रखने वालों की संख्या भी नाममात्र की है. आयोग ने बर्थ सर्टिफिकेट, आधार और मनरेगा कार्ड को लिस्ट से बाहर कर रखा है. 

सिंघवी की दलील पर जज बोले, सही बात है

सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एक भी योग्य मतदाता को मताधिकार से वंचित करने से उसे मिले समानता के अवसर प्रभावित होते हैं, लोकतंत्र प्रभावित होता है और मूल संरचना प्रभावित होती है. इस पर बेंच ने भी सहमति जताई. सिंघवी ने सवाल उठाया कि मतदाताओं के लिहाज से बिहार दूसरा सबसे बड़ा राज्य है, इसके बावजूद चुनाव आयोग ने स्पेशल रिवीजीन की यह कवायद ऐसे समय ही क्यों शुरू की, जब चुनाव महज कुछ महीने दूर हैं.
 

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