'हम कानून पर कानून नहीं बना सकते', हाथरस पीड़िता की तस्वीर छापने पर रोक लगाने से SC का इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम याचिकाकर्ता के इस मामले को हमारे संज्ञान में लाने के प्रयासों की सराहना करते हैं लेकिन हम इस मामले में कानून नहीं बना सकते. कोर्ट ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं और विश्वास करते हैं कि प्रतिवादी इस पर गौर करेंगे.

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जस्टिस रमना ने कहा कि इन मुद्दों का कानून से कोई लेना-देना नहीं है.
नई दिल्ली:

मीडिया में हाथरस गैंगरेप (Hathras Gangrape) पीड़ित की तस्वीर के प्रकाशन के खिलाफ एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दखल देने से इनकार कर दिया है. हालांकि, कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पीड़िता की तस्वीर छापी गई. जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मामले की सुनवाई की. जस्टिस रमना ने कहा कि इन मुद्दों का कानून से कोई लेना-देना नहीं है. लोग ऐसी चीजें करना चाहते हैं. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है. इसके लिए पर्याप्त कानून है लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी घटनाएं होती हैं.

जस्टिस रमना ने कहा, "हम कानून पर कानून नहीं बना सकते. यहां कानून बनाने के लिए अदालत का विवेक सही नहीं होगा. सरकार को प्रतिनिधित्व किया जाना चाहिए." 

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम याचिकाकर्ता के इस मामले को हमारे संज्ञान में लाने के प्रयासों की सराहना करते हैं लेकिन हम इस मामले में कानून नहीं बना सकते. कोर्ट ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं और विश्वास करते हैं कि प्रतिवादी इस पर गौर करेंगे.

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दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर कहा गया था कि हाथरस रेप पीड़िता की तस्वीर मीडिया में प्रकाशित की गई थी. अदालत इसके खिलाफ आदेश जारी करे.

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बता दें कि हाथरस के एक गांव में 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित लड़की से चार लड़कों ने कथित रूप से बलात्कार किया था. 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान पीड़िता की मौत हो गई थी. 30 सितंबर को रात के अंधेरे में उसके घर के पास ही कथित तौर पर पुलिस ने जबरन अंतिम संस्कार कर दिया था. परिवार का आरोप है कि पुलिस ने जल्द से जल्द उसका अंतिम संस्कार करने के लिए मजबूर किया था. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि परिवार की इच्छा के मुताबिक ही अंतिम संस्कार किया गया

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