सुप्रीम कोर्ट ने 2:1 बहुमत से ‘वनशक्ति’ फैसला वापस लिया, अब पोस्ट-फैक्टो पर्यावरण मंज़ूरी फिर से मान्य

वनशक्ति बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में कोर्ट ने केंद्र सरकार को भविष्य में पोस्ट-फैक्टो (बाद में दी गई) पर्यावरण मंज़ूरी देने से रोका था. पुनर्विचार /रिकॉल याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई पीठ ने सुनवाई की थी.

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नई दिल्ली:

पोस्ट-फैक्टो यानी बाद में पर्यावरण मंज़ूरी सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने 2:1 बहुमत से वनशक्ति फैसला वापस ले लिया है. वनशक्ति फैसले में कोर्ट ने केंद्र को भविष्य में पोस्ट-फैक्टो (बाद में दी गई) पर्यावरण मंज़ूरी देने से रोका था. लेकिन अब तीन जजों की बेंच ने इस फैसले को वापस ले लिया है.

CJI बी आर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन बहुमत में रहे, जबकि जस्टिस उज्जल भुइयां ने इस पर असहमति जताई. जस्टिस भुइयां 2024 को वनशक्ति फैसला देने वाली बेंच में थे. सुप्रीम कोर्ट को एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए मई 2024 में दिए गए अपने वनशक्ति फैसले को 2:1 बहुमत से वापस ले लिया. 

वनशक्ति बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में कोर्ट ने केंद्र सरकार को भविष्य में पोस्ट-फैक्टो (बाद में दी गई) पर्यावरण मंज़ूरी देने से रोका था. पुनर्विचार /रिकॉल याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई पीठ ने सुनवाई की थी. CJI गवई ने कहा कि वनशक्ति के फैसले  में पहले के महत्वपूर्ण निर्णयों को नजरअंदाज कर दिया गया, जिनमें-

  • 2020 में दो-न्यायाधीश पीठ ने पोस्ट-फैक्टो EC को सामान्यतः अवैध कहा, लेकिन मौजूदा मामलों को जुर्माना लेकर नियमित भी किया. 
  • डी स्वामी बनाम KSPCB: जहां कहा गया कि विशेष परिस्थितियों में पोस्ट-फैक्टो EC दी जा सकती है.
  • CJI ने कहा कि 2021 और 2024 की OMs के तहत पोस्ट-फैक्टो EC सिर्फ वैध गतिविधियों में, और जुर्माना भरने पर ही दी जाती है.

उन्होंने यह भी कहा कि यदि सभी पोस्ट-फैक्टो EC अमान्य कर दी जाएं, तो बड़ी संख्या में निर्माणों को तोड़ने का विकल्प ही बचेगा, जिससे प्रदूषण घटेगा नहीं, बल्कि बढ़ेगा. CJI ने वनशक्ति फैसले को विरोधाभासी बताया क्योंकि उसने पुराने पोस्ट-फैक्टो EC को तो बचा लिया था, लेकिन भविष्य में रोक लगा दी थी—जो भेदभावपूर्ण है.

इसलिए CJI ने फैसला सुनाते हुए कहा कि वनशक्ति जजमेंट को वापस (रिकॉल) लिया जाता है. जस्टिस विनोद चंद्रन ने CJI से सहमति जताई और कहा कि इस फैसले पर पुनर्विचार आवश्यक, त्वरित और न्यायोचित है. हालांकि, जस्टिस भुइयां ने कहा कि पुनर्विचार का कोई आधार नहीं है. 

उनके अनुसार कॉमन कॉज (2018) और Alembic (2020) साफ तौर पर कहते हैं कि पोस्ट-फैक्टो EC अवैध है, इसलिए बाद के निर्णय—जैसे D. Swamy—गलत कानून के आधार पर हैं और बाध्यकारी नहीं हैं. उन्होंने कहा कि यह तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता कि निर्माण गिराने से प्रदूषण बढ़ेगा, क्योंकि कानून का उल्लंघन करने वाले ऐसे तर्क नहीं दे सकते. पर्यावरण मंत्रालय (MoEF) ने भी वनशक्ति फैसले की समीक्षा नहीं मांगी—यह भी महत्वपूर्ण है. 

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जस्टिस भुइयां के अनुसार ये याचिकाएं खारिज होनी चाहिए थीं. सुनवाई के दौरान SG तुषार मेहता (SAIL की ओर से): मे कहा कि वनशक्ति फैसला स्पष्ट तौर पर त्रुटिपूर्ण है क्योंकि इसने D. Swamy जैसे महत्वपूर्ण फैसले नहीं देखे. ASG ऐश्वर्या भाटी ने दलील दी थी कि करोड़ों के कई प्रोजेक्ट प्रभावित हो रहे हैं. 

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