हमारी आत्मा कांपती है... बुलडोजर से मकान गिराने पर सुप्रीम कोर्ट की 5 बड़ी बातें

कोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण को छह सप्ताह में प्रत्येक मकान मालिक को 10 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया. पीठ ने कहा कि यह अवैध और अमानवीय कार्रवाई का परिणाम है.

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नई दिल्ली:

मकानों को बुलडोजर से ढहाने की घटनाओं पर देश भर में चर्चा होती रही है. अब सुप्रीम कोर्ट ने इसे अमानवीय और अवैध करार देते हुए कड़ा रुख अपनाया है. न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने प्रयागराज की एक घटना पर सुनवाई करते हुए संवेदनशीलता और कानून के शासन पर जोर दिया है. अदालत ने पीड़ितो को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है. आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा.

  1. मकान गिराना अंतरात्मा को झकझोरता है: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से प्रयागराज में मकानों को ध्वस्त किया गया, वह बेहद चौंकाने वाला और अमानवीय है. पीठ ने इसे मनमाना कृत्य बताते हुए कहा कि इससे उनकी अंतरात्मा कांप उठी. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आश्रय का अधिकार मौलिक अधिकार है और इसे छीनने से पहले कानून की उचित प्रक्रिया का पालन जरूरी है. प्रशासन की यह असंवेदनशीलता नागरिकों के प्रति अन्याय को दर्शाती है.

  2. आश्रय का अधिकार और कानून का शासन अहम: कोर्ट ने जोर देकर कहा कि आश्रय का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न हिस्सा है और कानून का शासन संविधान की मूल संरचना का आधार है. प्रयागराज विकास प्राधिकरण को याद दिलाया गया कि नागरिकों के घरों को इस तरह बेतरतीब ढंग से नहीं गिराया जा सकता. पीठ ने प्रशासन को चेतावनी दी कि ऐसी कार्रवाइयों से संवैधानिक मूल्यों का हनन होता है.

  3. नोटिस देने में उचित प्रक्रिया का अभाव: सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि मकान गिराने से पहले नोटिस देने की प्रक्रिया में गंभीर खामियां थीं. कारण बताओ नोटिस को घरों पर चिपकाया गया, लेकिन व्यक्तिगत रूप से देने का वास्तविक प्रयास नहीं किया गया. पहली पंजीकृत डाक 6 मार्च 2021 को मिली और अगले ही दिन मकान ढहा दिए गए. इससे अपील का अवसर भी छिन गया, जो कानून का उल्लंघन है.

  4. मनमानी कार्रवाई के लिए मुआवजा जरूरी: कोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण को छह सप्ताह में प्रत्येक मकान मालिक को 10 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया. पीठ ने कहा कि यह अवैध और अमानवीय कार्रवाई का परिणाम है. अटॉर्नी जनरल के तर्क कि अवैधता की भरपाई नहीं होनी चाहिए, को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि उचित प्रक्रिया का पालन न करना गलत है.

  5. नोटिस चिपकाने का धंधा बंद हो: सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस चिपकाने की प्रथा पर सख्त नाराजगी जताई. पीठ ने कहा कि व्यक्तिगत रूप से नोटिस देने के बार-बार प्रयास होने चाहिए. यदि यह विफल हो, तभी चिपकाने या पंजीकृत डाक का विकल्प अपनाया जाए. कोर्ट ने इसे "चस्पा करने का धंधा" करार देते हुए कहा कि यह प्रथा बंद होनी चाहिए, ताकि नागरिकों को उचित मौका मिले.

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